tag:blogger.com,1999:blog-23622272390083947452024-03-14T07:35:36.431+05:30gossipsurendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-55516876109200446272016-01-07T22:01:00.001+05:302016-01-13T09:36:17.550+05:30अदृष्य<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-indent: .5in;">
घटना - १<br />
<div style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कभी न कभी ऐसी घटनाएं अवश्य घटती हैं, जिनकी चाहत
उसके अन्तःकरण में रहती हैं; परन्तु असम्भव प्रतीत होती हैं और उसके लिए उसका
प्रयास भी नगण्य रहता है, ऐसी घटनाओं के होने पर हममें से अनेकों को लगता है कि,
इसके पीछे किसी अदृष्य शक्ति का हाथ है, जो हम सबका निरंतर ध्यान रखती है | ऐसी ही
कई छोटी-मोटी घटनाएं मेरे स्वयं के जीवन में भी घटी हैं, उनमें से एक का यहाँ
उल्लेख कर रहा हूँ |</span><o:p></o:p></div>
</div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-indent: .5in;">
<div style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">बात १९९३ की है मैं दूरसंचार विभाग में कानपुर में जूनियर इंजीनियर के पद पर
कार्य करता था | विभागीय प्रोन्नति के लिए परीक्षा दी थी और उसमें मैं उत्तीर्ण भी
हो गया था, आगे की प्रोन्नति सहायक अभियंता के पद पर होनी थी, और कुछ लोगों की (जो
बहुत वरिष्ठ थे) प्रोन्नति सूची आ गई थी, सभी को जहाँ वे कार्यरत थे उस स्थान से
दूर कहीं दूसरे नगर में भेजा जा रहा था | मुझे बहुत प्रयाषों के उपरान्त अपने
खर्चे पर नौकरी के १३ वर्षों पश्चात कानपुर मिला था | कानपुर में अम्मा-बाबूजी थे,
दोनों वृद्ध और अम्मा का स्वास्थ्य निरंतर खराब रहता था, बाबूजी को पार्किन्सन था
(यद्यपि हम एक नगर में रहते हुए भी उनसे १५ कि.मी. दूर रहते थे और किसी विपरीत
परिस्थिति में सूचना मिलने के १ घंटे उपरान्त ही पहुँच सकते थे), बच्चे ऐसी
क्लासों में आ गए थे कि मेरे विचार से उस समय उन्हें मेरे सहारे और मार्ग दर्शन की
आवश्यकता थी, अतएव मैं अपनी प्रोन्नति के अवसर को छोड़ने का मन बना रहा था और इसकी
चर्चा अपने सहकर्मियों से कर दी थी; पता नहीं कैसे इस बात का पता बाबूजी को लग गया
और वे मेरे इस निर्णय से खिन्न तथा रुष्ट हो गए थे; इस बात का पता तब लगा, जब मैं
रविवार को उनसे मिलने गया और उन्होंने मुझसे बात नहीं की, बहुत पूछने पर उन्होंने
प्रोन्नति छोड़ने का कारण पूछा, मैं अवाक, मैंने बताया कि बच्चों के मार्गदर्शन के
लिए मुझे कानपुर में रहना आवश्यक है, और प्रोन्नति में कानपुर छोड़ना निश्चित है |
इस पर उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा ‘<b>तुम्हारे साथ एक अच्छी बात है कि तुम्हे
भविष्य की जानकारी है, और यह भी जानते हो कि बच्चों का भविष्य तुम्हारे प्रयाषों पर
निर्भर है, यह समझलो अवसर हर बार दस्तक नहीं देते हैं</b> |’ मैं सन्न, और प्रोन्नति
न छोड़ने का निश्चय कर वापस चला गया |</span><o:p></o:p></div>
</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-indent: .5in;">
<div style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">लगभग एक वर्ष पश्चात मेरे सभी साथियों की प्रोन्नति सूची प्रकाषित हुई, सभी को
कानपुर से दूर पोस्टिंग दी गई थी (जबकि उनमें से अधिकाँश के परिचय विभागीय
उच्चाधिकारियों, राजनेताओं मंत्रियों आदि से थे और कानपुर पोस्टिंग के लिए सभी ने
प्रयास भी किये थे); उस सूची में केवल मेरा नाम नहीं था, मेरी कहीं पहुँच और परिचय
भी नहीं था; मुझे लगा किसी कारण से मेरी प्रोन्नति नहीं हुई होगी | लगभग एक माह
पश्चात (तब तक सभी कानपुर छोड़कर नए स्थान पर चले गए थे ) अचानक कार्यालय में मेरे
उच्चाधिकारी का फ़ोन आया ‘मि. अग्रवाल क्या आपको कानपुर पोस्टिंग चाहिए?’ मैं कुछ
समझ नहीं सका, पूछा ‘क्या कानपुर मिल सकता है?’ उन्होंने कहा प्रयाष तो करो,
डी.जी.एम्. साहब से बात कर लो | सब कुछ अचानक और अविश्वनीय था, खैर मैंने
डी.जी.एम्. से बात की और पूछा कि सर क्या मुझे कानपुर मिल सकता है? उन्होंने कहा,
भई हम सबको तो बाहर नहीं भेज सकते, कोई तो काम करने वाला समर्पित व्यक्ति हमें भी चाहिए
( यहाँ यह बताना आवश्यक है कि जिन्हें बाहर भेजा गया था उनमें से अधिकाँश मुझसे
अधिक कर्मठ और समर्पित थे), एक प्रार्थना पत्र इस आशय का कि तुम्हे कानपुर में
क्यों रखा जाए, तुरंत फैक्स कर दो | यहाँ यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि अगले एक
घंटे के अन्दर मेरी प्रोन्नति का पत्र कानपुर के लिए ही मेरे हाथों में था, और
अगले दिन मैंने ज्वाइन कर लिया |<o:p></o:p></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
घटना - २</div>
<div style="text-align: left;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; text-align: justify; text-indent: 0.5in;">बात १९७४ की है सितम्बर का अंतिम रविवार था, उन दिनों में जोशीमठ में
(बद्रीनाथ से ४२ कि.मी. पहले) पोस्टेड था, पावस ऋतु समाप्त हो चुकी थी, आकाश साफ़
और मौसम सुहाना था, अभी जाड़ा प्रारम्भ होने में लगभग एक माह का समय शेष था, इन
दिनों राते ठंडी और दिन गर्म रहता था | उस दिन भविष्य बद्री जाने का निश्चय हुआ |
यहाँ यह बताना आवश्यक है, कि ऐसी पौराणिक मान्यता है, कि जिस दिन विष्णुप्रयाग
स्थित जय-विजय पर्वत गिर जाएंगे, और अलखनंदा का मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा, उस दिन
वर्तमान बद्रीनाथ के स्थान पर भविष्य बद्री प्रारम्भ हो जाएगा | भविष्य बद्री का
मार्ग जोशीमठ से मलारी की ओर जाने वाले मार्ग से निकला है | उस दिन प्रातः ८:३० पर
मैं, पत्नी और हमारे साथ विभागीय टेक्नीशियन राजकुमार तीनों एक टैक्सी से भविष्य
बद्री के लिए निकले, साथ में, मार्ग के लिए भोजन ले लिया गया था | मार्ग में
टैक्सी वाले ने पूछा कि हम लम्बे मार्ग से जाना चाहेंगे या छोटे मार्ग से | हमने
पूछा कि लम्बा मार्ग कितना लम्बा और छोटा कितना छोटा है, उसने बताया कि लंबा मार्ग
लगभग १०-१२ कि.मी. होगा और छोटा ३-४ कि.मी. | हमने छोटे मार्ग से जाने का निश्चय
किया, हमने इस बात का ध्यान नहीं दिया था कि छोटा मार्ग निश्चित कठिन चढाई वाला होगा
| टैक्सी वाले ने हमें सड़क किनारे एक पगडंडी के समीप छोड़ दिया, जो पहाड़ पर सीधी
चढ़ाई पर ले जाती हुई गंतव्य तक जाती थी | यह पगडंडी काफी सकरी थी (जिससे लगता था
कि उस मार्ग से लोगों का आव-गमन बहुत कम होता होगा) और उसके दोनों ओर बहुतायात में
बिच्छू घाष उगी हुई थी, जिसके छू जाने से खुजली हो जाती है | इस पगडंडी पर हम
तीनों एक के पीछे एक (पहले मैं, फिर पत्नी और अंत में राजकुमार) ऊपर की ओर चढने
लगे, सहारे देने के लिए मैं, पत्नी का हाथ पकडे हुए था | थोड़ी देर में ही सूर्य की
किरणें सीधी सर के ऊपर पड़ने लगी, और निरंतर चढाई के कारण थकान सी अनुभव होने लगी
थी; परन्तु उस समय युवावस्था थी, अतएव थकान के पश्चात भी, निरंतर चढाई चढ़ते हुए
११:३० के लगभग २-२.५ कि.मी. चढ़ चुके थे, बीच बीच में चीड के घने वृक्ष मिलते थे
जिनसे थोड़ी धूप रुकती थी | एक स्थान पर अचानक ४-५ पगडंडीयाँ अलग अलग दिशाओं के लिए
छंट गईं थीं | चारों और सन्नाटा था दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था | इस
सन्नाटे को तोड़ते हुए कभी कभी पक्षियों का स्वर सुनाई पड़ जाता था | एक अनजान पहाडी
रास्ता, किधर जाएं? यदि गलत पगडंडी पर चले गए, तो संध्या होने पर जंगली जानवरों और
वर्षा का भय | तमाम विचार एक साथ दिमाग में आने लगे, और अंत में निराश हो कर, किसी
प्रकार का ख़तरा न लेते हुए वापस आने का निश्चय कर लिया | भूख लगी थी, अतएव समीप ही
एक निर्मल जल के झरने के किनारे विशाल देवदार के वृक्ष के नीचे, हम लोग भोजन करने
बैठ गए | भोजन के समय निरंतर सोच रहा था, कि लगता है भविष्य बद्री के दर्शन भाग्य
में नहीं हैं; इसी मध्य एक कुत्ता किसी पगडंडी से वहां आ गया, मानों डूबते को
तिनके का सहारा मिला हो, कभी एक कहानी सुनी या पढी थी, कि कुत्ता गाँव से जंगल की
ओर जाता है, अचानक वह कहानी यद् आई, और मैंने कहा कि, यह कुत्ता जिस मार्ग से आया
है, हम उसी मार्ग पर चलते हैं</span><span style="text-align: justify; text-indent: 0.5in;">, </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal, serif; text-align: justify; text-indent: 0.5in;"> और हम चल पड़े,
परन्तु यह क्या ? वह कुत्ता थोड़ी दूर तक हमसे आगे चला गया, फिर वापस आ गया, जैसे
कोई देवदूत हमें गंतव्य की ओर निरापद ले जा रहा हो, पूरे रास्ते इसी प्रकार वह कुछ
दूर आगे जाता, फिर वापस आ कर हमें साथ लेता, इस प्रकार उसके मार्गदर्शन में हम
१.५-२ कि.मी. चल कर एक बस्ती में पहुँच गए, उसके पश्चात वह देवदूत वापस नहीं लौटा
| गाँव वालों ने बताया, हम सही आए हैं, आगे एक सरकारी सेव का बगीचा है, जिसका
रखवाला ही हमें भविष्य बद्री के दर्शन कराएगा | हम लोग उस बगीचे में पहुंचे, तो
वहां एक कुत्ता बंधा हुआ था, जिसे देखकर, हम तीनों के मुख से अचानक निकला ‘ यही
कुत्ता तो हमें यहाँ तक लाया है’ इस पर उस बाग़-रक्षक ने कहा, यह तो प्रातः से ही
यहाँ जंजीर से बंधा है, इसे केवल रात्रि में बाग़ की रखवाली के लिए खोला जाता है,
और यह बहुत खूंखार है, उस रक्षक के अतिरिक्त किसी पर भी आक्रमण कर देगा | तब हमें
याद आया रहीम का दोहा</span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-indent: .5in;">
<o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-indent: 0.5in;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">रन, बन, व्याधि, विपत्ति में रहिमन मरिये न रोय |</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-indent: .5in;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> जो रक्षक, जननी जठर, सो हरि गयऊ न सोय ||</span><o:p></o:p></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><br /></span></div>
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><br /></span>
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><br /></span></div>
</div>
surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-8480004961612183392015-08-12T19:16:00.002+05:302015-08-12T19:16:52.110+05:30सांसद निधि <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> यूं तो मैं संसद की कार्यवाही कभी गलती से
भी टेलीविजन पर नहीं देखता हूँ; क्यों कि संसद का दृष्य और वार्तालाप बहुत कुछ
पुरातन सम्मिलित भारतीय परवारों के जैसा ही दिखता है, जिसमें दोपहर में मर्दों
(जनता) के घर से चले जाने के पश्चात सास-बहू, देवरानी-जिठानी, या ननद-भाभी के
उलाहने और आरोप-प्रत्यारोप खुल कर होते हैं, कभी कभी जब बात हद से अधिक बढ़ जाती
है, तो एक दुसरे की चारित्रिक पर्तों का जो अनावरण होता है, वह आश्चर्यचकित कर
देने वाला होता है | यदि कभी आप उसे स्वयं सुन पाते, तो पता चलता कि जिस बहन,
बेटी, पत्नी या पुत्रवधू को आप सर्वाधिक सुसंस्कृत समझते रहे हैं, वास्तव में वह
कहीं से उसके आस-पास भी नहीं है | कभी कभी तो जब किसी कुकृत्य में दो लोग सम्मिलित
होते हैं और फिर किसी बात पर मत भिन्नता होने पर एक दुसरे को लांक्षित करते हुए
आरोप लगाते हैं, और वही लोग किसी पर्व पर, जब उनको अपने सबके लिए नए वस्त्र-आभूषण
खरीदने होते हैं तो उनका आपसी सामंजस्य और आपसी प्रेम देखते हैं, तो ठीक भारत की
संसद का सा दृष्य दिखाई पड़ता है | लेकिन आज कल के बच्चों को तो इस प्रकार के
परिवारों का अनुभव ही नहीं है; क्यों कि अधिकाँश परिवारों में तो एक ही बच्चा होता
है तो नन्द-भोजाई या देवरानी-जिठानी की तकरार दिखाई नहीं देती, इसी लिए इस नई पीढी
को संसद की कार्यवाही देख कर कुछ अटपटा सा लगता होगा, परन्तु इससे उन्हें एन्टीक
भारतीय परिवारों के वातावरण के विषय में जानकारी मिलती है | हाँ तो मैं कह रहा था
कि ७ अगस्त २०१५ को अचानक टी. वी. खोला तो लोकसभा चैनल खुल गई, जिसमें कोई
बी.जे.पी. के सांसद बोल रहे थे, शायद विषय था सांसद निधि, उनका कहना था कि पांच
करोड़ सांसद निधि बहुत कम रहती है इसे बढ़ाकर १५ करोड़ किया जाना चाहिए, इस पर पूरे
सदन से समवेत स्वरों में आवाज आई १५ नहीं २५ करोड़, इसे कहते हैं संसदीय एकता,
ध्यान रहे २१ जुलाई से आज तक किसी विषय पर संसद हंगामे के अतिरिक्त कभी एक मत
दिखाई नहीं दी | वास्तव में यह मांग है भी न्याय संगत, भई महंगाई बढ़ गई है ५ करोड़
पर २०% के हिसाब से केवल एक करोड़ ही तो कमीशन बनता है, इतने में तो दिल्ली जैसे
शहर में एक अच्छासा फ़्लैट भी नहीं मिलेगा, अब २८ रु के भोजन और संसद सत्र में बगैर
काम किये भी मिलने वाले वेतन-भत्ते से कितनी कमाई होगी? हर किसी को तो मंत्रीमंडल
या क्रिकेट बोर्ड जैसी कमाऊ संस्थाओं में जगह मिल नहीं जाती कि विभिन्न कामों में
मोटा कमीशन लेकर, अधिकारियों के ट्रान्सफर-पोस्टिं आदि में अलग से मोटी कमाई कर
सके; न ही क्वात्रोच्ची एवं ललित मोदी जैसे लोग हर एक को आर्थिक लाभ पहुँचाएँगे |
ऐसे में सामान्य सांसदों, विधायकों एवं अन्य जन प्रतिनिधियों का सहारा तो एक मात्र
यही निधि है, इसी से इस चुनाव का करोड़ों रु और अगले चुनाव का खर्च भी निकालना है,
अब हर कोई तो इतना भाग्यशाली है नहीं कि उसका चुनावी खर्च बड़े बड़े उद्योगपती उठा
लें, उसके लिए बड़ी बड़ी बाते और बड़े बड़े वादे करने का सीना चाहिए | </span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> बात केवल अपने तक सीमित होती तब भी ठीक था,
अब अपने नालायक, आवारा एवं पप्पू किस्म के बेटों, दामादों, बहुओं, बेटियों आदि को
भी तो इसी राजनीति में स्थापित करने के लिए प्रचुर धन चाहिए | अब क्या कहें यह
व्यवस्था भी यदि हिन्दू वर्ण व्यवस्था जैसी होती, (जहाँ ब्राहमण की </span><span lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> अयोग्य संतान भी
ब्राह्मण और पूज्य होती है | डरने वाली क्षत्रिय की संतान बहादुर क्षत्रिय ही होती
है, व्यापार का ककहरा न जानने वाला वणिकपुत्र वणिक ही होता है, परन्तु सचरित्र और
प्रखर विद्वान् शूद्र की संतान सदैव अस्पर्श्य ही रहती है, यद्यपि विद्वान् बार
बार सद्ग्रंथों का उदाहरण प्रस्तुत करते है कि वर्ण व्यवस्था जन्म से न हो कर कर्म
से रही है और उसके लिए एक-दो उदाहरण भी प्रस्तुत करते हैं, यथा बाल्मीकी,
विश्वामित्र अपने कर्मों से महान संत बन गए) तो कोई समस्या नहीं होती फिर तो,
जनप्रतिनिधि का बेटा, बेटी, दामाद आदि स्वतः जन प्रतिनिधि होते फिर कोई खर्च नहीं
करना पड़ता; यद्यपि कुछ क्षेत्रों में तो हो गया है, जैसे प्रधानमंत्री का बेटा
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री का बेटा मुख्यमंत्री और पार्टी अद्ध्यक्ष का बेटा
पार्टी अद्ध्यक्ष बनने लगा है, बेटा बड़ा न हो तो निरक्षर पत्नी भी मुख्यमंत्री बन
सकी है; परन्तु सामान्य जनप्रतिनिधि को तो अभी संघर्ष ही करना पड़ता है, अभी
गणतंत्र बने ७० वर्ष भी तो नहीं हुए हैं, इतने में ही बहुत कुछ जन्म के आधार पर हो
गया है, यद्यपि संविधान भारतीय सद्ग्रंथों की तरह अपने दिशा निर्देश दे रहा है |</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> लोग कहते हैं राजनेता चुनाव के लिए झूठे
वादे करते हैं; तो यह हमारी अपनी समझ की कमी है, कांग्रेस ने कहा कि गरीबी हटाओ,
तो अभी पिछले चुनावों में कहा गया “अच्छे दिन आने वाले -----हैं” अब खुद सोचें जन
प्रतिनिधि का तात्पर्य क्या है, जनता के एक समूह का प्रतिनिधि अर्थात उसको देखकर
उस जनता के विषय में आप अनुमान लगा सकते हैं, जिसका वह प्रतिनिधि है | अब खिचडी
में एक या दो चावल ही तो देखते हैं कि वे पक गई या नहीं, पूरी की पूरी खिचडी तो
मसल कर देखते नहीं इसी प्रकार गरीबी हटी या नहीं, अच्छे दिन आए या नहीं इन जन
प्रतिनिधियों को देख कर ही अनुमान लगाया जा सकता है, न कि पूरी की पूरी १२५ करोड़
आबादी को | तो अब आप स्वयं देख लें कोई भी सांसद या विधायक शायद ही कई करोड़ से कम
का मालिक हो, और तो और साईकिल से चलता हुआ किराए के मकान में रहने वाला एक व्यक्ति
सभासद या सरपंच चुना जाता है तो एक वर्ष पूरा होते होते बड़ी चौपहिया से चलने लगता
है, और कई प्लाट, फ़्लैट, आदि का स्वामी हो जाता है, और कितनी तीव्र गति से आप वादे
पूरे होते देखना चाहते हैं ?</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">अब बात विदेशों में जमा काले धन की, तो जो कुछ कहा गया था, सत्ता से बाहर रहते
हुए कहा गया था, वह एक अनुमान था कि भृष्ट लोगों के खाते विदेशों में हैं, जिनमें
खरबों रु जमा होंगे; परन्तु अब पता चला कि जनप्रतिनिधियों के खातों में तो कोई
काला धन है ही नहीं, वह तो जनता की गाढी कमाई का धन है, भई जनप्रतिनिधि तो जनता का
है, इसलिए जनता का सब कुछ उनका अपना है, वैसे भी जन सामान्य मोह-माया से दूर रहने
के कितने उपाय करता है, इसके लिए कितने साधू-संत प्रयासरत हैं, वही काम तो माननीय
कर रहे हैं, वे तो एक कदम आगे बढ़ कर स्वयं भी माया को अपने से बहुत दूर दूसरे देश
में रखे हैं, अब कुछ बड़े व्यापारी, वे तो अहर्निश राष्ट्र सेवा में लगे हैं, हर
चुनाव में जनतंत्र को मजबूत बनाने के लिए सुपात्रों के चुनाव का बड़ा खर्च उठाते
हैं, तो राष्ट्र का धन राष्ट्र में ही व्यय होता है, फिर भी सरकार पूरी गंभीरता से
प्रयासरत है कि जो भी काला धन विदेशों में है उसे शीघ्र वापस ला सके | मेरे एक
परिचित बोले कि पूरा मानसून सत्र बेकार चला गया कोई काम नहीं हुआ; अब उन्हें कौन
समझाए कि यह व्यवधान सता पक्ष एवं विपक्ष की आपसी सहमति से ही होता है, दोनों पक्ष
के लोगों को सरकारी वेतन-भत्ते के साथ अपने कुछ अति आत्मीय एवं अन्तरंग लोगों से
मिलने का समय भी चाहिए होता है, पिछले तमाम सत्रों में देख लीजिये अंत के तीन-चार
दिन ही कुछ कार्य होता है, साथ ही यदि संसद में जी.एस.टी., भूमि अधिग्रहण जैसे
फालतू के बिल लाए जाएंगे तो सत्र में हंगामा नहीं होगा तो क्या होगा? अरे इनके पास
होने से माननीय लोगों को क्या मिलेगा ? माननीय लोगों के वेतन-भत्ते बढाने, सांसद
निधि बढाने जैसे प्रस्ताव लाइए देखिये संसद कैसे एक मत हो कर चलती है, विद्यालयों
में पुष्टाहार बांटने जैसे जन-कल्याणकारी प्रस्ताव आने चाहियें, बच्चों को खराब
आहार न मिल जाए इसलिए इसे सतर्क प्रषाशन के मंत्री से लेकर संतरी तक सभी चख कर
देखते हैं, और चखने चखने में आधा ही बच्चों के लिए शेष बच पाता है; लेकिन कोई बात
नहीं दूध और दलिया सुपाच्य और सही पुष्टाहार है | दूध में आप कितना भी पानी मिलाते
जाएं, स्टेशन की चाय के दूध से भी पतला होने पर भी उसे दूध ही कहा जाएगा, इसी
प्रकार दलिये में कितना भी पानी मिला दीजिये, जब तक गेंहूं का दाना दिखेगा, वह
दलीया ही कहलाएगा | अब महिला आरक्षण विधेयक को ही लीजिये कितने प्रयाष के पश्चात
भी अभी तक पारित नहीं हो सका; कारण वह प्रस्तुत ही गलत तरीके से किया गया था | यदि
कहा गया होता कि लोकसभा में जो भी पुरुष सांसद हैं, उनकी पत्नी, पुत्री, प्रेयसी
आदि ही राज्य सभा की सदस्य होंगे, उसी प्रकार जो महिला सांसद है उनके पुरुष साथी
ही राज्य सभा में आएँगे, आशा ही नहीं विश्वाष है कि प्रथम प्रयाष में ही यह बिल
पास हो गया होता और नारी शक्ति को उचित प्रतिनिधित्व भी मिल गया होता | हम सभी ने
अनुभव किया होगा कि जिस कार्य को वेतन भोगी चार कर्मचारी पांच दिन में कर पाते
हैं, उसी कार्य को उन्ही में से तीन कर्मचारी ठेके पर मात्र तीन दिन में पूरा कर
देते हैं; तो संसद को ठेके पर भी चलाने पर विचार किया जा सकता है | यथा पहले अक्सर
संसद में मद्ध्यावधि चुनाव की तलवार लटकी रहती थी, और कई बार हुए भी; परन्तु जबसे
माननीयों को सांसद निधि के रूप में मानदेय की व्यवस्था की गई है, मद्ध्यावधि चुनाव
अब बीते समय की बात हो गई है |</span><o:p></o:p></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> पता नहीं क्यों लोग माननीयों की व्यर्थ
आलोचना करने में अपना समय और ऊर्जा व्यतीत करते हैं; जिनका अपना सम्पूर्ण जीवन ही
नहीं, अपितु पूरा परिवार ही राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित है, उनके लिए इस प्रकार
की अभद्र टिप्पड़ी सुन कर बहुत कष्ट होता है, कि ये बहुत ही निर्लज्ज होते हैं,
जिनका नाम बैंक धोखाधड़ी में आय हो या सैनिक सामान की दलाली में आया हो ऐसे लोगों
को भी भारत रत्न से अलंकृत कर दिया जाता है ; अब इन अल्प बुद्धि लोगों को कौन
समझाए कि यह पुरस्कार है ही मुख्यरूप से इन माननीयों के लिए था, जन सामान्य के लिए
नहीं, क्योंकि जिसे आप दूषण कह रहे हैं, वह माननीयों का आभूषण है; जैसे गंगा के जल
में कितने भी गंदे नाले मिल जाएं गंगा पवित्र और पतित-पावन ही रहती है, उसी प्रकार
जितनी भी सांसारिक बुराइयां और विकार हैं उन सबको अपने में आत्मसात करते हुए भी ये
माननीय निर्लिप्त, सत्य सनातन शिव तत्व हैं, इसी लिए तो भारत रत्न हैं |<o:p></o:p></span></div>
</div>
surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-6005518924767146142014-02-17T18:21:00.001+05:302014-02-18T10:38:37.719+05:30 कस्मसाते सपने <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-indent: .5in;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् से ही कांग्रेस के संरक्षण में जिस प्रकार
निरंतर भृष्टाचार बढ़ता गया और आम आदमी उसकी तपन में झुलसता रहा, अलग अलग
सिद्धांतों को लेकर अनेकानेक राजनैतिक दल सामने आए और हरबार एक नई आशा का संचार आम
आदमी के अन्दर उदय होने के पूर्व ही दम तोड़ गया क्योंकि सभी राजनीतिक दल उसी गटर
का जल पी कर उसी नाली के कीड़े बन गए, जिसमें कांग्रेस आकंठ डूब चुकी थी. संघ के
चरित्रवान और अनुशाषित संघठन से उत्त्पन्न भारतीय जनसंघ, जो बाद में भारतीय जनता
पार्टी हो गई या बेबस और शोषित कामगारों को न्याय दिलाने वाली कमुनिष्ट पार्टी हो
या जय प्रकाशजी के आन्दोलन से निकले लालू की पार्टी या बोफोर्स के नाम पर
जनभावनाओं से खेलने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह सभी ने एक बार तो जनाकांक्षाओं को
आशा की किरण दिखाई लेकिन तत्काल ही उन आशाओं और अपेक्षाओं पर तुषारापात हो गया और
आम आदमी ठगा का ठगा सा रह गया, मंत्री से लेकर संतरी तक पूरा सरकारी तंत्र
भृष्टाचार में लिप्त हो गया और बड़े व्यापारी घराने, दलाल, तस्कर, मीडिया और
अपराधियों का सरकार के साथ गठबंधन हो गया नेता और राजनैतिक दल अनैतिकता के हाथों
बिक चुके हैं, इतना ही नहीं चुनिन्दा ईमानदार कर्मचारियों और संवैधानिक संस्थाओं
का काम करना कठिन ही नहीं असंभव हो गया, अनैतिक लोगों को क़ानून का भय समाप्त हो
गया और नैतिकता के पुजारी, अनैतिक कानून से भयभीत होने लगे, ऐसे में अन्ना एक नई
आशा की किरण ले कर जनता के बीच आए, जिसे निरंकुश सरकार ने बुरी तरह कुचल दिया,
परन्तु उस आन्दोलन से दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में एक नई सोच का
उदय हुआ जिसका नाम था “<b>आम आदमी पार्टी</b>” और इस नई पार्टी को दलित,व्यथित आम
आदमी का प्रचंड समर्थन भी प्राप्त हुआ, अपेक्षा के विपरीत इस दल को दिल्ली
विधानसभा में २८ सीटें मिल गईं और भृष्ट कांग्रेस ने राजनैतिक खेल खेलते हुए आआप
को बिन मागा समर्थन दे कर सीमित अधिकारों के साथ सत्तासीन कर दिया, काम कठिन था,
वादे बड़े और विपक्क्ष में बैठने के आधार पर किये गए थे लेकिन अपने ही गले आ पड़े ऐसे
में केजरीवाल के आचरण से स्पष्ट झलकने लगा कि वो दूसरों के माथे ठीकरा फोड़ कर
सत्ता से हटने का सहज मार्ग तलाश रहे हैं, और इसके लिए उन्होंने हठधर्मिता पूर्वक
जनलोकपाल का बहाना बना कर सत्ता छोड़ दी और आम आदमी एक फिर किंकर्तव्यविमूढ़ ठगा सा रह
गया. </span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-indent: .5in;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दुनिया में तीन प्रकार के लोग होते हैं १. वे जो बाधाओं के भय से कोई कार्य
प्रारम्भ ही नहीं करते २. वे जो कार्य तो प्रारम्भ करते हैं लेकिन बाधाओं के आने
पर उस कार्य को छोड़ देते हैं, इनके प्रकृति पलायनवादी होती है और ऐसे लोग किसी
दुसरे का तो क्या अपना भी भला नहीं कर सकते ३. वे जो एक बार कार्य प्रारम्भ करने
के पश्चात समाप्त किये बगैर नहीं छोड़ते. केजरीवाल अभी तक के अपने आचरण से दुसरे
प्रकार के व्यक्ति मालूम पड़ते हैं, जो एक वादा करते हैं कसमें खाते है और अगले ही
पल उसे तोड़ देते हैं. वे अनेक आन्दोलनों और संस्थाओं से जुड़े लेकिन सभी से पलायन
कर गए, कहीं भी स्थायित्व प्राप्त नहीं किया, इसी प्रकार दिल्ली के मुख्यमंत्री
बने लोगों की आकांक्षाओं को उड़ान दी और जनमानस को निराश करते हुए दो माह की
अल्पावधि में ही पलायन कर गए. इसमें एक और बात है नवजात राजनैतिक दल को जो
अप्रत्याषित सफलता मिली उसने इनकी आकांक्षाओं को अत्यधिक बढ़ा दिया और कुछ माह
पश्चात् होने वाले लोकसभा चुनावों में उसी प्रकार की सफलता की आश लिए निष्प्रयोजन
कार्य करने में तत्पर हो गए जिससे उपहास के पात्र तो बने ही आम जनता में शाख भी
गई. “<b>बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताए. काम बिगारे आपनो, जग में होत हंसाय</b>”
दिल्ली की सत्ता पर कब्जा करने की हडबडी में, इन्होने वही गलती दोहराई जो
चन्द्रगुप्त मौर्य ने की थी, जब वो नन्द वंश के विरुद्ध कौटिल्य के साथ सघर्ष कर
रहे थे तो मगध जैसे शक्तिशाली साम्राज्य के विरुद्ध पाटलिपुत्र में विद्रोह खडा
करने का प्रयास किया और परास्त हुए, उस अवस्था में दोनों क्षद्म वेश में छुपते हुए
एक वृद्धा के घर में आश्रय लेने पहुंचे तो रात्रि में गर्म खिचडी खाने के लिए
उतावले पन में चन्द्रगुप्त ने बीच से खिचडी खा ली और मुह जला बैठे, तब उस वृद्धा
ने कहा “तुमने भी वही गल्ती की जो चन्द्रगुप्त ने की, जिस प्रकार पहले बाहर के
राज्यों पर अधिकार करना चाहिए था, उसी प्रकार गर्म खिचडी किनारे से खानी चाहिए थी”
केजरीवाल को भी पहले दिल्ली को सुधारना चाहिए था और दिल्ली की लोक सभा सीटों को
कब्जे में कर एक दो अन्य राज्यों पर कब्ज़ा कर वहां भृष्टाचार मुक्त सुषाशन करके
दिखाना चाहिए था. यदि जनलोकपाल पर सहमती नहीं बन रही थी अपने तरीके का लोकायुक्त
लेकर आते और अपने राजनैतिक वादे पूरे करते हुए पूर्व के भृष्ट नेताओं और
अधिकारियों को दण्डित करवाते तो लोक सभा तो स्वयं कब्जे में आ जाति; परन्तु
केजरीवाल के पलायनवादी व्यवहार ने आम आदमी को एक बार पुनः निराश किया है. अब यह
भविष्य ही बताएगा कि केजरीवाल भी पूर्व के लोगों की भाँती सत्तालोलुप और
महत्वाकांक्षी हैं या उससे अलग कुछ अच्छा कर गुजरने की लालसा रखते हैं? भविष्य में
जो कुछ भी हो लेकिन उनके अभी तक के आचरण ने तो लोगों को निराश और हताश ही किया है.<o:p></o:p></span></div>
</div>
surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-7833621246840882792014-02-06T19:52:00.001+05:302014-02-07T11:40:52.276+05:30नफरत से उत्पन्न एक और दल आआप <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif;"> </span><span style="font-family: Mangal, serif;">न केवल भारत में अपितु सम्पूर्ण विश्व
में जब जब अन्याय और अत्याचार बढ़ा है तब तब प्रतिक्रिया स्वरुप नई परिस्थितियों का
जन्म हुआ है (यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवत ....) और उन्होंने समाज में एक नई
आशा का संचार भी किया, परन्तु वे बहुत समय तक उस रूप में अक्षुण नहीं रही हैं और
लोगों की अपेक्षाओं को आशानुरूप पूर्ण नहीं किया है. जब विश्व के कई अलग अलग
हिस्सों में औद्योगीकरण के कारण कलकारखानों का चलन बढ़ा तो पूंजीवाद बढ़ा और सामान्य
व्यक्ति जिसे कामगार कहते थे, के साथ अन्याय और अत्याचार बढ़ता गया. राष्ट्र की
सत्ता पर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से पूंजी पतियों का शाषन होगया तब उन्होंने नियम
क़ानून अपने पक्ष में बना लिए और सामान्य नागरिक गुलामों का जीवन जीने पर विवश हुआ,
उसके पास किसी प्रकार के राजनैतिक सामजिक अधिकार नहीं थे. मुट्ठीभर लोग पूरी जनता
पर अत्याचार कर रहे थे तब इस अत्याचार के विरुध्द जर्मनी के विचारक कार्ल मार्क्स
ने १८४० में साम्यवाद का विचार दिया जो पूँजीवाद के विरुद्ध एक नफरत थी और उसी के
आधार पर अनेक राष्ट्रों में क्रांति हुई जिसमे १९०५ में रूस में जारों के अत्याचार
के विरुद्ध हुई क्रांति सर्वाधिक विख्यात हुई; परन्तु इनमें से कोई भी परिवर्तन
अपने उद्येश्य में पूर्णतया सफल नहीं हुए और शनैः शनैः समाप्त हो गए. कहने को तो
सत्ता कामगार के हाथों में आई परन्तु वास्तव में क्रांति के अगुआ बने लोग ही सत्ता
के केंद्र रहे और कमोबेश जनता उसी प्रकार अगले परिवर्तन की बाट जोहने को विवश बनी
रही. वास्तव में किसी भी क्रिया के विरुद्ध प्रतिक्रिया स्वरूप जो क्रिया होती है
उसमें चिंतन और योजना का सर्वथा अभाव रहता है, अतएव वह तात्कालिक होती है, इसीलिये
उस का लाभ आन्दोलन की अगुआई करने वालों को समर्थ बनाने तक सीमित रह जाता है.</span><br />
<div class="MsoNormal">
<o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> इस वैश्विक घटना के सामान ही भारत में
भी सामजिक असमानता के चलते बहु संख्यक जनता (पिछड़े, अनुचूचित जाति, जन जाति आदि)
तथाकथित सवर्णों (ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य) के अत्याचारों से त्रस्त थी. देखने में
यह जाति या वर्ग भेद दिखता है; परन्तु वास्तव में यह भी अन्य वैश्विक देशों की तरह
सामर्थ्य आधारित था, बुद्धि, अर्थ और भुज बल (सरस्वती,लक्ष्मी,दुर्गा) से युक्त
लोगों ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था और शेष को दासों से भी बदतर जीवन व्यतीत
करने को विवश कर रखा था. भारत में इन तीन शक्तियों से युक्त लोगों ने अपना
जातिआधारित समूह बना लिया था, इसलिए यहाँ का भेद जाति भेद के रूप में दिखाई दिया.
१५ अगस्त १९४७ के पश्चात् आशा बंधी थी कि यह जाति भेद समाप्त होगा भारत सरकार इसके
लिए कठोर कदम उठा कर इस अभिशाप को समाप्त करेगी, परन्तु वैसा कुछ नहीं हुआ, क़ानून
तो बना परन्तु वह कागज़ पर ही रहा. इन पिछड़े हुए और पददलित किये लोगों को बराबरी पर
लाने के लिए शिक्षा, नौकरी आदि में आरक्षण की व्यवस्था भी की गई, परन्तु ईमानदारी
से नहीं, स्वतंत्र भारत में सत्ता में बैठे लोगों को शीघ्र समझ में आगया कि इन
दलितों और पिछड़ों को केवल आश्वाषनों के दम
पर वोट के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है; जब तक ये पिछड़े हैं, दलित हैं तभी तक
निर्द्वंद शाषन किया जा सकता है. परन्तु इन पिछड़े और दलित वर्ग के युवा जब राजनीति
में आए तब उन्होंने देखा कि सत्तासीन लोग किस प्रकार निरंतर उन्हें मूर्ख बना कर
धूर्तता पूर्वक राज्य कर रहे हैं, लोकनायक जयप्रकाशजी के भ्रष्टाचार एवं व्याप्त
असमानता के विरुद्ध जनान्दोलन से निकले लालूजी से जनपेक्षाएँ थीं कि वे भारतीय
राजनीति को नई दिशा देंगे, परन्तु सत्ता में आते ही उन्होंने सवर्णों के प्रति
घृणा का ऐसा भाव फैलाया कि अपने एक वर्ग विशेष को संगिठित कर निरंतर सत्ता में बने
रहने का उपक्रम किया और स्वयं उसी सत्ता के अंग बन गए जिसके विरुद्ध संघर्ष किया
था और जनता वहीं की वहीं उसी स्थिति में बनी रही. इसी प्रकार काशीरामजी और मायावती
ने सत्ता में बने रहने के लिए दलितों और सवर्णों के मध्य उसी घृणा का आश्रय लिया
(तिलक तराजू और तलवार इनमें मारो.....) और स्वयं उसी भृष्ट शाषन का अभिन्न अंग बन
कर रह गईं. न तो दलितों का कोई भला किया और न ही राष्ट्र का. १९९१ में जब
नर्सिंघराव भारत के प्रधान मंत्री बने तब उनकी सरकार अल्पमत में थी, उसे अक्क्षुन
बनाए रखने के लिए सांसद निधि के नाम पर प्रत्येक सांसद को अप्रत्यक्ष घूष की पेशकश
की गई और उसके पश्चात से लगभग सभी जनप्रतिनिधि भ्रष्टाचार और दलाली के दल दल में डूबते
चले गए, साथ ही क़ानून बनाने के अपने अधिकार का दुरूपयोग कर के अपने पक्ष में नित
नए क़ानून बना कर इन जनप्रतिनिधियों ने स्वयं को जनता से अलग सामंतों की स्थिति में
कर लिया, विभिन्न प्रकार की सुविधाएं और अधिकार अपने लिए एकत्रित कर लिए, क़ानून
इनके सामने बौना हो गया. अपराधियों दलालों मुनाफाखोर व्यापारियों और जनप्रितिनिधियों
का एक ऐसा गठबंधन बना कि अब घोटालों की बाढ़ सी आने लगी धीरे धीरे ये घोटाले लाख
करोड़ तक जा पहुंचे और इन घोटालों की भरपाई के लिए नए नए कर लगा कर महंगाई को
बेलगाम छोड़ दिया गया. जनप्रतिनिधि इतने निर्लज्ज, भृष्ट और अनैतिक हो गए कि कोई
अभद्र से अभद्र गाली भी उनके आचरण के सामने लज्जित होने लगी. नेता अति विशिष्ट
शैली के नाम पर सैकड़ों सुरक्षा कर्मियों के मध्य सुरक्षित हो गए और सामान्य
व्यक्ति भगवान् भरोसे पूर्णतः असुरक्षित हो गया, वह लूट, डकैती, बलात्कार जैसी
घटनाओं से पीड़ित किसी से व्यथा कहने योग्य भी नहीं था. सभी सरकारी विभागों में
छोटे से छोटे काम के लिए रिश्वत आवश्यक हो गई और इस रिश्वत में हिस्सा संत्री से
लेकर मंत्री तक सभी का है . ऐसे में त्राहि त्राहि करती जनता को संबल प्रदान करने
अन्ना हजारेजी और बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनआन्दोलन छेड़ा जिसे सत्ता
के मद में चूर सरकार ने निर्ममता पूर्वक कुचल दिया, जिसके कारण सामान्य जन में
जनप्रतिनिधियों और इस राजनैतिक सड़ी गली व्यवस्था के विरुद्ध एक नफरत का गुबार उठ
पड़ा और इसी नफरत को हवा देते हुए उस जनान्दोलन से आम आदमी पार्टी का अभ्युदय हुआ
जिसके मुखिया अरविन्द केजरीवाल सहित सभी सदस्यों ने सत्ता प्राप्त करने के लिए बड़े
बड़े और झूठे वादे किये और नेताओं के प्रति नफरत को खूब हवा दी , दिल्ली के
मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने जनसभा में स्पष्ट कहा कि भारत सरकार का
गृहमन्त्री दिल्ली पुलिस से धन उगाई करता है, निश्चित यह गंभीर आरोप है जो
सवैधानिक पद पर आसीन एक उत्तरदायी व्यक्ति ने लगाया है, यदि यह झूठ था तो केजरीवाल
को पद पर बने रहने का एक पल भी अधिकार नहीं था उन्हें बंदी बना लिया जाना चाहिए था
और यदि यह सत्य था तो शिंदे को तत्काल हटा कर बंदी बना लेना चाहिए था. परन्तु वैसा
कुछ नहीं हुआ. केजरीवाल ने पूर्व राजनेताओं के विरुद्ध केवल नफरत बढानी थे और
गृहमन्त्री द्वारा पूर्व की भाँती निर्लज्जता का परिचय देना था. जनता ने आआप पर विश्वाष
किया और हर बार की तरह फिर ठगी गई. सत्ता प्राप्ति के साथ ही सभी कसमें वादे स्वतः
टूटने लगे और सत्ता का रंग चढने लगा. आज स्थापित राजनैतिक दलों को आम आदमी पार्टी
से यही खास परेशानी है कि जिस प्रकार के झूठे वादे और नौटंकी चुनाव पूर्व ये दल
करते थे; यह नवजन्मा दल इन सबसे कहीं आगे निकला और उसी प्रकार का ड्रामा करने को
इन्हें न केवल विवश होना पड़ा(संजय निरूपम द्वारा धारण, कई मुख्यमंत्रियों द्वारा
निज सुरक्षा में कमी दिखाना आदि), अपितु जनाधार भी खिसका और सत्ता सुख से भी विमुख
होना पड़ा. आम आदमी तो फिर वहीं का वहीं है जहाँ पहले था. नफरत की प्रतिक्रिया से
कभी भी किसी का कोई भला नहीं होने वाला है, हाँ आआप के नेताओं को अवश्य सत्ता सुख
मिल गया है और कुछ समय तक मिलता भी रहेगा.</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> जनप्रतिनिधियों में व्याप्त भ्रष्टाचार और
अहंकार की जड़ में इनके द्वारा ही अपने पक्ष में क़ानून बनाने की विशेष सुविधा है
जिसे तत्काल समाप्त किया जाना चाहिए. सभी जनप्रतिनिधियों के विशेषाधिकार और
विभिन्न सुविधाओं में कोटे समाप्त कर दिए जाने चाहियें, इनको दी जाने वाली विकास
निधि समाप्त करने सहित इन्हें किसी भी लाभ के पद पर नियुक्ति नहीं मिलनी चाहिए.
यदि वेतन कम हो तो उसे निश्चित बढ़ाया जाए, परन्तु इनके किसी भी छोटे बड़े अपराध की
जांच प्राथमिकता के आधार पर निश्चित समयावधि में त्वरित की जानी चाहिए. जब तक
इन्हें विशेष सुविधा प्राप्त रहेगी जन प्रतिनिधि और सामान्य जन के मध्य दूरी
निरंतर बढ़ती रहेगी और जनप्रतिनिधि बनने के लिए चुनाव व्यय बढ़ता रहेगा जो
भ्रष्टाचार का मूल कारण है. </span><o:p></o:p></div>
</div>
</div>
surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-82009683055890007592013-11-26T16:23:00.000+05:302013-11-29T13:34:49.096+05:30तहलका<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-indent: .5in;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">१६ मई २००८ को जिस १४ वर्षीय नाबालिग बालिका आरुषी एवं एक नौकर हेमराज की
हत्या की गई थी, जिसने पूरे देश में एक तहलका मचा दिया था। दिनांक २५ नवम्बर २०१३
को न्यायालय का निर्णय आगया है, जिसमें आरुषी के माता-पिता ‘नूपुर’ एवं राजेश
तलवार को दोषी पाया गया है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक माता-पिता को अपने ही कलेजे
के टुकड़े की हत्या करनी पडी। जांच से पता चला कि १५ मई २००८ की रात्रि में इस
नाबालिक पुत्री को अपने नौकर हेमराज के साथ अत्यधिक आपत्ति जनक स्थिति में देखा था
और वे अपने ऊपर संयम नहीं रख सके। एक बात निश्चित है कि यह योनाचार आपसी सहमति से
हो रहा था। प्रश्न उठता है कि क्या इस नाबालिक बालिका के साथ सहमति से हो रहे यौनाचार
को सहजरूप में लेना चाहिए था? तलवार दंपत्ति धन कमाने और आधुनिकता की दौड़ में कुछ
इस प्रकार संलिप्त हुए कि अपनी बच्ची से ध्यान हटा बैठे और नौकर पर अति विश्वास कर
लिया। स्त्री स्वातन्त्रके हिमायती संभवतः इसमें कुछ भी बुरा न माने परन्तु आधुनिक
जीवन यापन करने वाले तलवार दंपत्ति अन्तःकरण से पुरातन भारतीय परम्परा के हिमायती
थे जो पुत्री के कुंवारेपन पर आई आंच को सह नहीं पाए और अपराध कर बैठे। आज इस राष्ट्र
के प्रत्येक महत्वपूर्ण संस्था में और दैनिक जीवन में जो यौन उत्पीडन की घटनाएं
सुनाई देतीं हैं उसके मूल में यह दोहरे मापदंडों में जी रहे लोगों की दुविधा का
परिणाम दिखता है। एक ओर हमारे अंतःकरण में पुरातन मान्यता कूट कूट कर भरी हुई है
जिसमें नारी को अति पवित्र माना गया था और उसकी काया को कुत्सित भाव से कोई नहीं
छू सकता था। नारी काया पर मात्र उसके पति का ही अधिकार होता था। अपनी उस काया को
आततायी से बचाने और अपने सतीत्व की रक्षा के लिए यहाँ की वीरांगनाएँ जौहर करके
स्वयं को जीवित जला देती थीं। यहाँ ‘यत्र नार्यस्तु पूजन्ते रमन्ते तत्र देवता’ का
भाव रखते हुए नारी को माता और बहन के रूप में देखने की पवित्र परम्परा रही है,
इसीलिये यहाँ के समाज में आदर्श रूप में भगवती सीता, माता अनुसुइया और महान सती
सावित्री जैसी विभूतियाँ रही हैं। नारी को पूज्या और शक्ति का प्रतीक माना गया उसे
कभी भी भोग्य नहीं माना गया, यद्यपि इस पुरुष प्रधान समाज में कुछ मध्यकालीन
कवियों ने अपनी कृति में अनावृत नारी सौन्दर्य का नखशिख कामुक वर्णन किया है और
उसमें विद्वानों को सौन्दर्य बोध भी होता है उसी प्रकार प्रसिद्ध चित्रकार
मक़बूलफ़िदा हुसैन को भी निर्वस्त्र नारी कलेवर की चित्रकारी में ही सौन्दर्य दिखता
था। इनलोगों को यह सौन्दर्य बोध निर्वस्त्र पुरुष में क्यों नहीं दिखा? इतना सब
होने पर भी उस काल में संचार माध्यम इतने सशक्त न होने से यह गंदगी जन जन तक नहीं
फ़ैल सकी और बच्चे बचपन से अपनी दादी-नानी द्वारा महान सतियों की कहानी सुनकर
स्त्री जातिके प्रति अलौकिक सम्मान और श्रद्धा भाव से संस्कारित होते रहते थे,
उन्हें राम का एक पत्नीवृत्त, शिवाजी का नारी जाति के प्रति आदरभाव और इसी प्रकार
की विभिन्न ऐतिहासिक-पौराणिक कथाएँ जिनमें नारी रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग तक करने
की घटनाएं रहती थीं सुनने और पढने को मिलती थीं। नारी-पुरुष का आपसी आकर्षण
प्राकृतिक और स्वाभाविक है परन्तु वह किस प्रकार का संयमित हो यह देखने को मिलता
है जब भगवान् राम भगवती सीता को प्रथम बार पुष्प बाटिका में देखते है और मोहित
होते हैं परन्तु छोटे भाई के साथ होने से तत्काल स्वयं को सम्हालते हैं और कहते
हैं ‘राघुवन्शिंह कर सहज सुभाऊ, मन कुपंथ पग धरहि न काऊ ‘ यही भाव संस्कारों
द्वारा हमारे अंतःकरण में बहुत गहरे तक समाया हुआ है और दूसरी ओर हम अन्य
संस्कृतियों का अनुँकरण कर नारी को भोग्या और सहज उपलब्ध मानते हैं जहां एक हेलो
हाय के पश्चात कोई न कोई बाला सहज रूप से डेट पर आपके साथ हो लेती है और थोड़ा सा
धन व्यय कर सहमति से उसके साथ मनमानी करते हैं, जिसका परिणाम है कि उन संस्कृतियों
में शायदही कोई बालिका युवावस्था पूर्व यौनानुभाव से बचती हो और बहुत बड़े परिणाम
में १३ वर्ष तक की बालिकाएं गर्भ धारण कर लेती हैं। </span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-indent: .5in;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">आज हम बाह्य रूप में तो आधुनिकता और आधुनिक प्रगति की दौड़ में सम्मिल्लित हो
गए हैं परन्तु अंतःकरण से उन्ही पुराने संस्कारों में जकड़े हुए हैं। दिखावे के रूप
में बच्चों को पूर्ण और अनावश्यक स्वतंत्रता प्रदान करते हैं, उनकी निजता का ध्यान
रखते हुए अलग कमरा, एकांत में कहीं भी अपने मित्रों से मिलने की छूट प्रदान करते
हैं और उसी का परिणाम आज समाज के प्रत्येक क्षेत्र में बढ़ते दिख रहे यौन अपराध
हैं, फिर चाहे वह धर्म का क्षेत्र हो, न्याय का क्षेत्र हो, राजनीति का या मीडिया
का, चाहे आशाराम हों, तहलका के तरुण तेजपाल, पूर्व जज या राजनेता एक बात इन सभी
में सामान्य है कि जिन युवतियों का यौन उत्पीडन इनके द्वारा हुआ वह बन्दूक या चाकू
की नोक पर नहीं हुआ, उस यौन अपराध में युवतियों की इस अनाचार को सहने के पीछे कुछ
पाने की लालसा थी। कहीं मोक्ष तो कहीं पदोन्नति, नौकरी या ख्याति और धन। पुरुष को
परमात्मा से शारीरक संरचना में ऐसा वरदान मिला है कि उसकी इक्षा के विरुद्ध उसके
साथ यौनाचार नहीं हो सकता जबकि स्त्री इतनी भाग्यशाली नहीं है, ऐसे में नारी को
अपनी अस्मिता बचाने के लिए स्वयं सतर्क रहना ही पड़ेगा. क्या आज नारी अपनी
स्वतंत्रता के नाम पर निज उत्तेजनात्मक कायावयवों को प्रदर्शित करने वाले परिधान
धारण नहीं करती? आज स्त्रियों के प्रति बढ़ते अपराधों के लिए आज का परिवेष और
स्त्री स्वयं उत्तरदायी है। यदि स्त्री चाहती है कि समाज उसमें अपनी माँ, बहन और
अच्छे मित्र की छवि देखे तो उसे अपने आचरण को गरिमापूर्ण बनाना होगा और समाज के
समक्ष उसी रूप में प्रस्तुत करना होगा। आज सिनेमा और बुद्धू बक्सा समाज और बच्चों को सर्वाधिक प्रवाभित करने वाले साधन हैं जिनके द्वारा आज हम बच्चे को बचपन से स्त्री को किस रूप
में दिखा रहे हैं? आज के इस औद्योगिक और विज्ञापन के बाजारू युग में यदि सर्वाधिक
विज्ञापन किसी का हुआ है तो वह नारी है, किसी भी उत्पाद का विज्ञापन हो बगैर
स्त्री के पूरा नहीं होता। चाहे वाहन का विज्ञापन हो, पुरुष परिधान का या सेविंग
क्रीम का विज्ञापन हर विज्ञापन में स्त्री का विद्रूप स्वरूप ही सामने आता है। एक
परफ्यूम के विज्ञापन में जिस प्रकार अर्धनग्न उत्तेजनात्मक रूप में कई बालाएं
पुरुष के चारों ओर लिपट जाती हैं, इसी प्रकार स्वास्थ्य वर्धक औषधि के विज्ञापन
में पुरुष की बलिष्ठ काया को जिस वासनात्मक रूप में निहारती है ये स्त्री की गरिमा
को बाजारू बना देती है और बचपन से बच्चे के मष्तिष्क में नारी माँ-बहन के रूप में
न होकर एक उत्पाद के साथ सहज और मुफ्त में उपलब्द्ध बाजारू औरत के रूप में व्याप्त
हो जाती है। इन विज्ञापनों के लिए इन बालिकाओं को बन्दूक की नोंक पर विवश नहीं
किया जाता है। आज के इन अपराधों के लिए केवल पुरुष समाज को और कानून को कोसने वाले
नारी संघटनों को सोचना पड़ेगा और उसे बाजारू छवि से मुक्त करना होगा अन्यथा
कितने भी कड़े क़ानून बनालें और बहस करलें ये अपराध तब तक समाप्त नहीं होंगे जब तक
लडकी सहज रूप से डेट के नाम पर एक प्याला मदिरा और एक बर्गर में उपलब्ध न हो जाए.
आज हमारे आदर्श बदल गए हैं, सीता सावित्री के स्थान पर आज हमारे आदर्श वो सिनेमा
तारिकाएँ हैं जो विवाह पूर्व तीन-चार पुरुषों के साथ लम्बे समय तक अन्तरंग रूप से
रह चुकी हैं, छोटे छोटे बच्चे ‘चोली के पीछे क्या है’ ? ढूँढने में लगे हैं फिर
समाज को इसके परिणाम तो भोगने ही पड़ेंगे. </span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-indent: .5in;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">आज हर प्रकार के बढ़ते अपराधों के पीछे मदिरा के चलन का भी बहुत बड़ा हाथ है.
पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण करते हुए अभिजात्य वर्ग में इसका चलन बहुत अधिक
बढ़ गया है. कोई भी अवसर हो, उत्सव या आवश्यक मंत्रणा बैठक बगैर मदिरा के पूर्ण
नहीं होती. यह वर्ग विद्वान् और धनवान है अतएव इसके पक्ष में अकाट्य तर्क भी
प्रस्तुत करने में पीछे नहीं रहता है. जबकि मदिरा पान की स्थिति में गाडी चलाना
अपराध है तब मदिरा पान करके कोई सार्थक निर्णय लेना कैसे सही है? मदिरा पान आज अनावश्यक
स्टेटस सिम्बल बन गया है. तहलका के तरुण तेजपाल ने कहा लडकी के साथ जो हुआ वह
मदिरा के नशे में हुआ. जब सब जानते हैं तब मदिरा छोड़ क्यों नहीं देते. इस मदिरा के
कारण उस तेजपाल को जिसने कभी अपनी खोजी पत्रकारिता से तहलका मचा दिया था पूरे
विश्व के सामने न केवल लज्जित होना पड़ा हो सकता है जेल भी जाना पड़े . </span><o:p></o:p></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify; text-indent: .5in;">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">यदि वास्तव में हम समाज में स्त्रियों के प्रति नित्यप्रति बढ़ते अपराधों को
रोकना चाहते है तो इस आधुनिकता की अंधी दौड़ से हट कर बच्चों को प्रारम्भ से उच्च
संस्कारों से संस्कारित करना होगा और नारी को सौम्य एवं गरिमामय रूप में प्रस्तुत
करना होगा . भारत की संस्कृति भिन्न हैं यहाँ की बालाएं योग्य, मेघावी और
आत्मसम्मान की रक्षा करने में समर्थ हैं. आज वे जीवन के हर क्षेत्र में बढ़-चढ़ कर
अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहीं हैं; ऐसे में महिला संघठनों को तत्काल उन सभी
विज्ञापनों पर जिनमें उनकी गरिमा को गिराया जाता है न केवल प्रतिबंध लगवाना होगा
अपितु कठोर दंड का भी प्राविधान करना होगा, इसी प्रकार नारी सौन्दर्य के नग्न
प्रदर्शन वाले आईटम गीतों और दृश्यों को फिल्माने और दिखाने पर रोक लगानी होगी क्योकि
महिला के साथ अभद्र व्यवहार के लिए केवल कठोर क़ानून से काम नहीं बनेगा पुरुषों और
समाज को नारी के गरिमामय रूप के दर्शन फिर से कराने होंगे और उनके दिल में श्रद्धा
और सम्मान का भाव संस्कारित करना होगा .<o:p></o:p></span></div>
</div>
surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-40079693242064185062013-09-26T15:39:00.003+05:302013-09-26T15:54:49.429+05:30नागरवाला से वाहनवती तक <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: inherit;"> नागरवाला से वाहनवती तक एक लम्बा समय व्यतीत हो चुका है। केवल नाम बदले हैं शेष सब कुछ वैसा ही है। सुना था इतिहास अपने आप को दोहराता है; लेकिन इतनी शीघ्र दोहराएगा अपेक्षा नहीं थी। २१ मई १९७१ को सोनिया गांधी की सास और भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्द्रागांधी की आवाज में एक फ़ोन स्टेट बैंक के पार्लियामेंट स्ट्रीट शाखा के वरिष्ठ कैशिअर वेदप्रकाश महरोत्रा के पास आता है कि मैं रुश्तम सोहराब नागरवाला को भेज रही हूँ उसे अविलम्ब ६० लाख रु दे दें। नागरवाला रा. में कप्तान थे और इन्द्रागांधी के विशवास पात्र थे। नागरवाला बैंक पहुंचे और फ़ोन के अनुसार उनको ६० लाख रु दे दिए गए, और वे वह रु लेकर निकल गए। जब महरोत्रा प्रधानमंत्री कार्यालय से ६० लाख रु की रसीद लेने पहुंचे तो बताया गया इन्द्राजी ने कोई रुपया नहीं मंगाया था। कैशिअर के पैरों तले जमीन खिसक गई, उसने पुलिश थाने में प्रथिमिकी दर्ज करवाई, पुलिश तत्काल हरकत में आई और उसी दिन नागरवाला को बंदी बना लिया गया और लगभग पूरा धन बरामद हो गया। न्यायालय में महरोत्रा और नागरवाला ने आश्चर्यजनक रूप से अपना अपराध मान लिया और अति तत्परता से मात्र १० मिनट में ही न्यायालय की सुनवाई समाप्त हो गई और नागरवाला को चार वर्ष का करावाष का दंड दे दिया गया, न तो कैशिअर से पूछा गया कि उसने इतनी बड़ी धनराशि बगैर किसी रषीद के या लिखित आदेश के क्यों दे दी और न ही यह पता किया गया कि नागरवाला इन्द्राजी की आवाज निकाल भी सकता है या नहीं। नागरवाला ने अपराध स्वीकार किया और उसे सही मानकर दण्डित कर दिया गया, इतना ही नहीं बाद में जब नागरवाला ने कुछ कहने की इक्षा व्यक्त की तो संदिग्ध परिस्थितियों में उसकी मृत्यु हो गई और इस सम्पूर्ण घटना की जांच के लिए नियुक्त जांच अधिकारी डी.के. कश्यप की भी संदिग्ध तरीके से कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई अब किसका सहस था जो जांच करके वास्तविकता को सामने ला पाता और वही हुआ वास्तविक सच कभी सामने नहीं आया। <span style="background-color: white; color: #222222; font-size: x-small; text-align: left;"> </span></span><span style="color: #222222; font-size: x-small; text-align: start;">(</span><a href="http://archive.tehelka.com/story_main34.asp?filename=Ne201007TheNAGARWALA.asp" style="color: #1155cc; font-size: small; text-align: start;">http://archive.tehelka.com/story_main34.asp?filename=Ne201007TheNAGARWALA.asp</a><span style="color: #222222; font-size: x-small; text-align: start;">)</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: inherit;"><span style="background-color: white; color: #222222; font-size: x-small; text-align: left;"> </span><span style="background-color: white;"><span style="font-size: x-small; text-align: left;"> </span><span style="text-align: left;"><span style="font-size: x-small;"> </span> <span style="font-family: inherit;"> यह मात्र एक संयोग है या कुछ और कि गांधी परिवार की और देश की शसक्त महिला (इन्द्रागांधी की बहु) सोनिया गाँधी की </span></span><span style="font-family: inherit;"><span style="text-align: left;"> </span><span style="text-align: left;">की आवाज में </span><span style="text-align: left;">अभी ५ सितम्बर २०१३ को एक फोन भारत के महाधिवक्ता (एटार्नी जनरल ) जी. ई. वाहनवती को न्यूयार्क से आ</span><span style="text-align: left;">या और उन्हें निर्देश दिया गया कि कोयला घोटाले से सम्बंधित मामले में न्यायालय में </span><span style="text-align: left;">बहुत तत्परता न दिखाएँ और इस केस की गति को धीमा रखें, जरूरत से अधिक कर्मठ बनने की आवश्यकता नहीं है। जितना कहा जा रहा है उतना करें वर्ना अपना पद छोड़ दें। ध्यान रहे कि उस समय सोनियाजी न्यूयार्क में अपना इलाज कराने गई हुई थीं। वाहनवती यदि बात मान लेते और अपना पद छोड़ देते या इस केस की सुनवाई में शिथिलता वर्तते तो कोई बात ही नहीं उठती ; परन्तु उन्होंने इस फोन काल के विषय में बता दिया और बात बिगड़ गई अब फर्जी काल के लिए किसी को तो बलि का बकरा बनाया ही जाएगा, आखिर मामला सीधा गांधी परिवार से जुड़ा है। उपरोक्त दोनों फोन कालों में समानता है दोनों गांधी परिवार से सम्बंधित हैं, दोनों घोटालों से सम्बंधित हैं। कांग्रेस का पुराना इतिहास रहा है कि वह अपने अपराधों को छिपाने में और अपने अपराधी लोगों को बचाने में सिद्ध हस्त है, फिर चाहे नागरवाला कांड हो, बोफोर्स दलाली कांड हो, कोयला घोटाला हो या आदर्श घोटाले सहित अनेकानेक घोटालों के दोषियों को बचाया गया है। चाहे १९८४ के दंगों में लगभग २७०० सिखों की हत्या के दोषी भगत हों, जगदीश टाइटलर हों या सज्जन कुमार और बात जब गांधी परिवार से सम्बंधित हो तो चाहे बाड्रा का जमीन घोटाला हो या ३ दिसंबर २००६ को अमेठी में राहुल गांधी और उनके दोस्तों द्वारा २४ वर्ष की लडकी सुकन्या से किया गया सामूहिक बलात्कार का मामला हो पूरी पार्टी बेशर्मी के साथ बचाव में आजाती है।</span></span></span></span><span style="background-color: white;"><span style="font-family: arial; font-size: x-small; text-align: start;">(</span><a href="http://shashi-dubey.blogspot.in/2013/03/rahul-gandhi-involved-in-rape.html" style="font-family: arial; font-size: small; text-align: start;">http://shashi-dubey.blogspot.in/2013/03/rahul-gandhi-involved-in-rape.html</a><span style="font-family: inherit; text-align: left;">) जिस प्रकार अपराधी जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध </span><span style="font-family: inherit; text-align: left;">न्यायालय के आदेश को अंगूठा दिखा कर अध्यादेश पारित करके अपने दल के राशिद मसूद सहित </span><span style="font-family: inherit; text-align: left;">तमाम अपराधियों को बचाने का षड्यंत्र किया जा रहा है, वह इस दल की सहज अपराधी मानसिकता और व्यवहार को समझने के लिया पर्याप्त है। </span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: x-small;"><br /></span></div>
</div>
surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-75163219956355714622013-09-14T19:46:00.001+05:302013-09-18T14:43:59.659+05:30मुज़फ्फर नगर में प्रायोजित नर संघार <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
पिछले दिनों मुज़फ्फर नगर में कुछ हुआ वह बहुत ही दुखद और पीड़ा दायक था। प्रश्न उठता है कि जो कुछ हुआ क्या अचानक हुआ या पूर्व नियोजित था ? तथ्यों को देखने पर प्रतीत होता है यह पिछले कई महीनों से मुज़फ्फर नगर में चल रहा था; एक विशेष समुदाय के लोगों द्वारा बहु संख्यक समुदाय की बहू बेटियों के साथ निरंतर छेड़ छाड़ और बलात्कार की घटनाएं हो रहीं थीं; परन्तु प्रशासन आँखें बंद किये बैठा रहा। कुछ घटनाएं बलात्कार की जो प्रकाश में आईं, दिसंबर २१, २४, २९, ३०/२०१२ को १८ फरवरी २०१३ को, ३ अप्रैल, ३ जून २०१३ को, जुलाई ८ एवं २९ को, फिर अगस्त २३, २४ एवं २७ को (<a href="http://indiawires.com/25917/news/national/series-of-rapes-behind-muzaffarnagar-riots/" style="text-align: left;">http://indiawires.com/25917/news/national/series-of-rapes-behind-muzaffarnagar-riots/</a>) आखिर एक समुदाय को कब तक दुसरे समुदाय के अत्याचारों को सहन करना चाहिए था, क्या उनकी बहन बेटियों की इज्जत लुटती रहे और वे दर्शक बन कर देखते रहें या प्रतिकार करें। इतनी दर्दनाक घटनाओं के बाद भी प्रशासन की निद्रा नहीं टूट रही थी और लोगों में अशंतोष तथा गुस्सा बढ़ता जा रहा था। कायदे से प्रशासन को चाहिए था कि अपराधी की धर्म जाति का विचार किये बगैर, वे तत्काल पकडे जाते और पीड़ितों को स्वान्तना देनी चाहिए थी; परन्तु अधिकारी ऐसा कैसे करते, दुर्गाशक्ति नागपाल का उदहारण उनके सामने था। ऐसे में एक दिन तो लावे को फूटना ही था, २७ अगस्त को कवल गाँव में एक छेड़ छाड़ की घटना का विरोध करने पर हिंसा प्रारम्भ हो गई जिसमें तीन लोगों की म्रत्यु हुई, जिसमें छेड़ छाड़ करने वाला मुसलमान युवक सहनवाज़ कुरेषी था और जाट लडकी के दो भाई सचिन और गौरव सिंह थे; परन्तु पुलिष ने छेड़ छाड़ और जाट युवकों की ह्त्या को संज्ञान में ना लेकर, केवल मुसलमान युवक को मारने के अपराध में पीड़ित लडकी के परिवार वालों को ही बंदी बना लिया था ( <a href="http://en.wikipedia.org/wiki/2013_Muzaffarnagar_riots" style="text-align: left;">http://en.wikipedia.org/wiki/2013_Muzaffarnagar_riots</a>) प्रशासन पूरी तरह अल्पसंख्यक समुदाय के साथ था। हालात कश्मीर घाटी जैसे बनाए जा रहे थे, जहां कश्मीरी पंडितों की बहु बेटियों के साथ मुस्लिम आतंकवादी सरेआम बलात्कार करते थे और प्रशासन कुछ नहीं सुनता था, अंत में वे वहां से भागने को विवश हुए और घाटी हिन्दू विहीन हो गई; ठीक वही हालात समाजवादी पार्टी द्वारा मुज़फ्फरनगर में उत्पन्न किये जा रहे थे, आखिर समाजवादी पार्टी को मुसलमानों के वोट चाहिए थे। </div>
<div style="text-align: justify;">
इस घटना के विरोध में जाटों ने २८ अगस्त को पंचायत करने का निश्चय किया जिसे क़ानून व्यवस्था का उल्लेख कर प्रशासन ने रोक दिया और जाटों ने क़ानून का साथ देते हुए पंचायत टाल दी; परन्तु दूसरी ओर ३० अगस्त शुक्रवार को नमाज के बाद मुसलामानों की एक बड़ी पंचायत हुई जिसमें विभिन्न राजनैतिक दलों के नेताओं ने बहुसंख्यक समुदाय के विरुद्ध भड़काऊ भाषण दिए, इन नेताओं में समाजवादी पार्टी के राशिद सिद्दीकी, बी.एस.पी. के क़दीर राणा और नूर सलीम राणा तथा कांग्रेस के सैद्दुज्जाम प्रमुख थे। इतना ही नहीं वहां प्रशासनिक अधिकारी भी उपस्थित थे। क्या केवल दो दिन बाद क़ानून व्यवस्था सुधर गई थी? क्या यह खुले तौर पर सरकार द्वारा एक पक्षीय व्यवहार नहीं था? फिर ३१ अगस्त को जाटों की पंचायत हुई; परन्तु पंचायत से वापस जाते हुए खातिमा रोड पर एक परिवार की कार पर हमला करके उनकी कार जला दी गई, परन्तु सरकार अभी भी निश्चिन्त थी। निश्चित यह सब कुछ किसी भी समुदाय के लिए सहन शक्ति की पराकाष्ठा थी। जाटों द्वारा बहु बेटी बचाओ अभियान के अंतर्गत ७ सितम्बर शनिवार को एक बड़ी पंचायत बुलाई गई। इस पंचायत में निश्चित ही भड़काऊ भाषण होने थे और हुए, पंचायत के बाद जब लोग वापस जा रहे थे तब गंग नहर के किनारे मुसलमान गुंडों ने अचानक आक्रमण कर दिया और तमाम लोगों को मौत के घाट उतार कर नहर में फेंक दिया और उनके ट्रेक्टर भी नहर में फेंक दिए गए, अभी तक १७ ट्रेक्टर नहर से निकाले जा चुके हैं; चूंकि केवल बहुसंख्यक समाज के लोग मारे जा रहे थे अतएव सरकार और मुसलमान नेता निश्चिन्त थे; परन्तु यह हिंसा की आग अचानक गाँवों में फ़ैल गई और अल्पसंख्यक समुदाय के निर्दोष लोग भी मारे जाने लगे तब सरकार हरकत में आई, लेकिन राजनैतिक दलों का काम हो चुका था, वोटों का ध्रुवीकरण हो चुका था, समाज में वैमनस्य बढ़ चुका था। </div>
<div style="text-align: justify;">
इस सबसे एक बात निश्चित है कि साम्प्रदायिक दंगे तभी होते हैं जब सरकारों द्वारा किसी एक समुदाय के साथ पक्षपात पूर्ण व्यवहार किया जाता है। जब देश का प्रधानमंत्री ही बेशर्मी के साथ कहता हो कि इस देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है तब दंगे और वैमनस्यता कैसे रोकी जा सकती है? एक बात और निश्चित है कि दंगे की पहल भी कभी बहुसंख्यक समुदाय द्वारा नहीं की जाती है, वह तो पानी सर से ऊपर निकल जाने के बाद केवल प्रतिकार करता है। चाहे वह गुजरात हो (जहां पहले २७ फरवरी २००२ को गोधरा में एक रेल के डब्बे के ५८ यात्रियों को जो हिन्दू थे मुसलमान गुंडों ने ज़िंदा जला दिया था ) या मुजफ्फरनगर हो। हाँ हिन्दुओं के मरने पर कोई हो हल्ला नहीं मचता, किसी को अपराधबोध नहीं होता फिर चाहे गोधरा में मारे गए हिन्दू हों या मुजफ्फरनगर में या कश्मीर घाटी में या १९८४ के दंगों में २७०० सिक्ख क़त्ल कर दिए गए हों; परन्तु अल्पसंख्यकों की म्रत्यु पर सालों साल मातम मनाया जाता है। जबकि मौत किसी की भी हो पीड़ादायक है और हर मृत्यु पर सरकार सहित सभी को पूरी तरह संवेदनशील होना चाहिए। किसी भी सरकार के लिए धर्म या जाति के आधार पर किसी भी प्रकार का पक्षपात उस देश के लिए सदा घातक है और कभी भाईचार नहीं बन सकेगा। अपराधी केवल अपराधी होता है उसका कोई धर्म या जाति नहीं होती जिस दिन ये सरकारें और नेता इस बात को समझ लेंगे उस दिन तमाम समस्याओं का अपने आप निदान हो जाएगा। <br />
उपरोक्त सभी बातें १७ सितम्बर को आजतक चेनल और इंडिया टुडे द्वारा दिखाए गए वीडियो द्वारा सिद्ध हो गई है। मुज़फ्फरनगर में कोई हिन्दू-मुस्लिम दंगा ना होकर सपा के आजमखान के गुंडों द्वारा केवल हिन्दुओं का नरसंघार कर राजनैतिक लाभ लेने की योजना थी और पश्चिम उत्तरप्रदेश के मुस्लिम बाहुल जिलों से हिन्दू परिवारों को पलायन करने पर विवश करना है, जिसमें कांग्रेस बराबर की सहयोगी है क्यों कि भारत का प्रधानमन्त्री केवल मुस्लिमों से कैम्पों में मिले और हिन्दू पीड़ितों से केवल सड़क पर ही मिल लिए। २००२ के लिए रात-दिन आंसू बहाने वाले न्यूज चैनल और धर्मनिर्पेक्ष तीस्ता सीतलवाड़ और आम आदमी पार्टी के लोग अब चुप क्यों हैं?</div>
</div>
surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-6607373815582156942013-08-27T19:19:00.002+05:302013-09-03T19:28:06.024+05:30अपराधी तंत्र या संत <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
आज कल एक समाचार सर्वाधिक चर्चा में है '<b>पूज्य संत आशाराम बापू द्वारा एक नाबालिग लड़की से बलात्कार</b> ' आप अपने टी वी के किसी समाचार चैनल पर जाएं पिछले एक सप्ताह से चौबीस घंटे यही एक समाचार दिखाया जा रहा है आखिर दर्शक बढाने की होड़ जो लगी है। आज सभी राष्ट्रिय अंतर्राष्ट्रीय समाचार इस एक समाचार के सामने बौने हो गए है। अपराध सिद्ध होगा या नहीं होगा यह तो समय बताएगा परन्तु भारतीय मीडिया ने उन्हें बलात्कारी घोषित ही कर दिया है। संत आशारामजी के करोड़ों अनुयाई और शिष्य है बगैर आरोप निश्चित या सिद्ध हुए उन पर इस प्रकार का बर्बर आरोप लगा करसबकी नजरों में उनका मान गिराने का क्या औचित्य है , यदि आरोप निश्चित या सिद्ध नहीं हुए तो उनके सम्मान की जो अपूर्णीय छति हो रही है उसकी भरपाई कौन करेगा। क्या इस अपराध के लिए इन चैनलों पर कार्यवाही की जाएगी? क्या यह कोई षड्यंत्र नहीं हो सकता है ? क्या इस घ्रडित कार्य के लिए शासन द्वारा या उसके संकेत पर उन्हें बदनाम करने का कार्य नहीं किया जा रहा है ? यह सर्व विदित है कि आशारामजी अपने प्रवचनों में कई बार भ्रष्ट तंत्र के विरुद्ध आक्रामक हो जाते हैं और भारत में कहने को तो प्रजा तंत्र है परन्तु वास्तव में राजतंत्र ही है। विशेष रूप से उन राजनैतिक दलों की सरकारों के विरुद्ध बोलना जो एक वंश या एक व्यक्ति की धरोहर हैं। केंद्र की कांग्रेस सरकार कहने को तो एक परिवार की पार्टी की सरकार नही है ; परन्तु यह सर्वज्ञ है कि इन्द्राजी के समय से यह एक ही परिवार की पार्टी बनकर रह गई है और उस दल की सरकार के विरुद्ध बोलने का परिणाम क्या हो सकता है ? रामदेवजी से अधिक कौन जान सकता है ? यदि आशारामजी ने इस प्रकार का जघन्य कृत्य किया है तो उन्हें कठोर से कठोर दंड दिया जाना चाहिए। व्यक्ति कितना भी महान हो कितना भी सचरित्र हो उससे अपराध हो सकता है और यदि अपराध हुआ है तो वह केवल और केवल अपराधी है और उसे कठोर दण्ड मिलना ही चाहिए लेकिन वह सबके लिए सामान होना चाहिए, चाहे फिर वह संत हो, जनप्रतिनिधि हो, सामान्य व्यक्ति हो, प्रभावशाली बाहुबली हो, हिन्दू हो, मुसलमान हो, मंत्री हो या संत्री हो । व्यक्ति के आचरण में गिरावट के लिए एक छण चाहिए , अपराध मानसिक और दिमागी कमजोरी से होता है। वह किसी में कभी भी आ सकती है। विश्वामित्र जैसे महान तपस्वी भी एक छण में पथभ्रष्ट हो गए थे। </div>
<div style="text-align: justify;">
उपरोक्त विषय में पुलिस की अति तत्परता और आश्चर्य चिकत कर देने वाली कार्यवाही के कारण षड्यंत्र की बू आती है , जो पुलिस थाने के सीमा विवाद के चलते घायल व्यक्ति को घंटों चिकित्सालय नहीं ले जाती और वह घायल मर जाने को विवश हो जाता है, अक्सर पीड़ित व्यक्ति को भगा देती है और उसकी प्राथिमिकी नहीं लिखती जब तक सुविधा शुल्क नहीं दिया जाता या कोई ऊंची सिफारिश नहीं होती । वहीं इस मामले में लडकी छिंदवाडा के छात्रावाष में रहती है ,बलात्कार जोधपुर आश्रम में होता है, बलात्कार के बाद भी वह लडकी तत्काल किसी को कुछ नहीं बताती, माँता-पिता को भी नहीं, इसकी शिकायत भी जोधपुर में पुलिस से नहीं करती। कई दिन पश्चात दिल्ली में शिकायत लिखवाई जाती है और पुलिश तत्काल तत्परता से जाँच में लग जाती है। भारतीय पुलिस इतनी तत्पर कब से हो गई, यदि वास्तव में इतनी तत्पर यह पुलिस हो जाए तो भारत से अपराध समाप्त होने में समय नहीं लगेगा। कल दिनांक २६ को सभी चैनलों पर बार बार दिखाया गया कि आशारामजी के ऊपर से बलात्कार की धारा हटा ली गई क्यों? यदि बलात्कार हुआ था तो धारा क्यों हटाई गई और नहीं हुआ था तो धारा क्यों लगाई गई। क्या सब कुछ पुलिस की मर्जी पर है या उच्च स्तरीय षड्यंत्र ?</div>
<div style="text-align: justify;">
ऐसे एक नहीं कई प्रमाण है जब शाषन के अनाचार के विरुद्ध किसी महान से महान व्यक्ति ने कोई आचरण किया है तो उसे गंभीर परिणाम भोगने पड़े है। तमिलनाडु में शंकर नेत्रालय को लेने की इक्छा मुख्यमंत्री जयललिता की अन्तरंग सहेली शशिकला ने व्यक्त की जिसे कांची कामकोठी के शंकराचार्य पूज्य जयेंद्र सरस्वती ने ठुकरा दिया तो उन्हें ११ नवम्बर २००४ को ह्त्या के आरोप में बंदी बना लिया गया। यदि आरोप सही थे तो क्या यह एक संयोग मात्र था या षड्यंत्र ? </div>
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इसी प्रकार उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के एक मंत्री अमरमणि त्रिपाठी पर एक कवियित्री मधुमिता शुक्ला के साथ यौन सम्बन्ध बनाने और गर्भवती हो जाने पर ९ मई २००३ को उसकी हत्या करने का आरोप लगा तो उनको बचाने के लिए आई.आई.टी. कानपुर के होनहार छात्र अनुज मिश्रा पर झूठा आरोप मड दिया गया इतना ही नहीं एक पंडित ने उस बच्चे का विवाह मधुमिता से कराने की झूठी गवाही भी दे दी और इसे मीडिया ने खूब चटखारे ले कर दिखाया । दैवयोग से उन तारीखों में वह अनुज अपने साथियों के साथ भ्रमण पर बाहर गया हुआ था और इस कुत्सित षड्यंत्र के विरुद्ध सभी आई.आइ.टी. के छात्र एवं अध्यापक मजबूती से खड़े हो गए इसलिए उस निर्दोष का जीवन बर्बाद होने से बच गया तथा अमरमणि को आजन्म कारावाष हुआ, यदि अनुज बाहर नहीं गया होता तो आज अनुज जेल में होता ।<br />
फूलन देवी का नाम सभी ने सुना है १४ फरवरी १९८१ को उसने उत्तर प्रदेश के बहमई गाँव में अन्धाधुन्त गोली बरसा कर २२ लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। उस अपराध में जब वह जेल में थी तभी १९९४ में मुलायम सिंह की उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सभी वाद वापस ले लिए गए और उसे जेल से रिहा कर दिया गया। फूलन देवी १९९६ का समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ी और सांसद हो गई, तो अपराधों का क्या हुआ? न्याय और कानून कहाँ गया? कोई अपराधी है या नहीं यह सरकार निश्चित करती है न्याय प्रक्रिया नहीं। सरकार की इक्षानुसार साक्ष्य बनाए और मिटाए जाते हैं। </div>
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केंद्र सरकार के घोटालों, काले धन और दलाली विरुद्ध आवाज उठाने पर अन्ना हजारे पर किस प्रकार जुर्म ढाए गए , रामदेवजी के शांतिपूर्ण आन्दोलन पर लाठी और गोलियां बरसाईं गईं और उन पर तथा उनके साथी बालकृष्ण पर किस प्रकार अनेकानेक आरोप लगा दिए गए। क्या जो सत्ता का साथ दें उन्हें अपराध करने की छूट है ?विरोध करने पर अपराध दिखाई देने लगते हैं। इसी प्रकार अरविन्द केजरीवाल , प्रशांत भूषण, किरण वेदी आदि पर भी अचानक खूब आरोप लगाए गए और इन सभी आरोपों को मीडिया में रात - दिन नमक मिर्च लगा कर खूब दिखाया। </div>
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परन्तु ३ सितम्बर २००१ में जामां मस्जिद दिल्ली के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के विरुद्ध लोधी कालोनी दिल्ली में राष्ट्र विरोधी कार्य करने का केस दर्ज हुआ जिसमें न्यायलय से गैर जमानती वारंट तक निकाला गया परन्तु वे न्यायलय के समक्ष उपस्थित नहीं हुए लगभग ११ वर्ष बाद २०१२ में फिर वारंट ही नहीं निकला अपितु उन्हें भगोड़ा भी घोषित कर दिया गया परन्तु वे उपस्थित नहीं हुए। क्या इस समाचार को भी इन बिकाऊ चैनलों ने इस तत्परता से दिखाया ?</div>
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कहीं भारतीय चैनलें हिन्दू विरोधी सरकार के साथ मिल कर सोची समझी निति के तहत हिन्दू संतों उपदेशकों को बदनाम करने के कार्य में तो नहीं लगे हैं। अभी कुछ दिन पूर्व निर्मल बाबा के विरुद्ध ऐसा ही एक अभियान इन समाचार चैनलों द्वारा छेड़ा गया और वह कार्यक्रम थोड़े समय के लिए बंद भी हो गया परन्तु फिर किस प्रकार प्रारम्भ हो गया ? प्रारम्भ ही नहीं हुआ अपितु उन्ही समाचार चैनलों द्वारा दिखाया जा रहा है जिन्होंने इसे ठगी बताया था। </div>
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surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-4924985298740443692013-08-19T19:54:00.001+05:302013-08-20T10:49:13.920+05:30डूबता रुपया और गिरती शाख <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="font-size: large;"> </span> पहले भारत सोने की चिड़िया कहलाता था, जिसे लूटने के लिए निरंतर विदेशी आक्रमण हुए और उन्होंने खूब लूटा भी, अंततोगत्वा लगभग १००० वर्ष की दासता और संघर्ष के पश्चात १९४७ में जब भारत स्वतंत्र हुआ तो १ रुपया १ डॉलर के बराबर था ; परन्तु १९४७ के पश्चात् जबसे भारत में देशी सरकार बनी तभी से लूट और भ्रष्टाचार की भी स्वतंत्रता मिल गई और रुपया धीरे धीरे अपनी चमक खोने लगा। डॉलर बढ़ने लगा और रुपया घटने लगा , ज्यों ज्यों काला धन बढ़ने लगा त्यों त्यों रुपए की कीमत घटने लगी। नेताओं, तस्करों एवं व्यापारियों का गठजोड़ बनने लगा और इस देश का लाखों डॉलर हर वर्ष काले धन के रूप में भारत से बाहर विदेशों में जमा होने लगा परिणाम स्वरूप भारत की संचित पूंजी चोरी चोरी कम होने लगी। यह कुख्यात गठजोड़ धीरे धीरे कानून से ऊपर उठ गया परिणाम स्वरुप क़ानून का भय समाप्त होने लगा और मंत्री से लेकर संतरी तक सभी सरकारी विभाग घूषखोरी और दलाली में संलिप्त होते चले गए, काला धन बढ़ता चला गया और फिर हर वर्ष करोड़ों डॉलर का धन या सोना चांदी बैंक लाकरों में बंद होने लगा, इस संचित धन की पूर्ती के लिए नए नए कर लगते चले गए ; परन्तु चोरी और काला धन इतना अधिक बढ़ रहा था कि रूपए का अवमूल्यन होता चला गया। अपराधियों और कालाबाजारियों ने देखा कि चुनाव लड़कर नेता बनने पर कानून का कोई भय नहीं रहता तो ये लोग स्वयं चुनाव लड़कर संसद और विधान सभाओं में पहुँचने लगे। जहाँ पहले नेता अपराधियों को संरक्षण देते थे अब अपराधी ही देश के कर्णधार होने लगे और इस प्रकार जनतंत्र के मंदिर अपराधियों के सुरक्षित अड्डे बन गए जहाँ से सीधे दलाली,तस्करी , डकैती, फिरौती, हत्या जैसे जघन्य अपराध होने लगे और इन नेताओं की सम्पन्नता बढ़ती गई जिसके कारण लाखों करोड़ डालर हर वर्ष या तो बहार चले गए या बैंक लाकरों में बंद होने लगे। देश में घुन लग चुका था जो शनै: शनै: रुपए को चाटने लगा और इस देश की छवि एक महा भ्रष्ट देश के रूप में विश्व पटल पर उभरने लगी। पूरे संसार में यहाँ के लोगों को हिकारत की नज़र से देखा जाने लगा रूपए के साथ यह राष्ट्र भी अपनी गरिमा खोने लगा। </div>
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इस दलाली और चोरी का इन नेताओं को ऐसा चस्का लगा कि अधिकाँश मंत्री लाखों करोड़ की दलाली और चोरी के आरोपों में घिर गए और तो और सर्वाधिक सम्मानित और गरिमामय प्रधानमंत्री का पद भी इस कालिख से मुक्त नहीं रह सका। खेल हों,रेल हो,सैनिक साज सामान हो,कोयला हो, रेत हो, गरीबों का अनाज हो, स्टाम्प पेपर हों, चीनी हो यूरिया हो हर जगह चोरी बढ़ती गई क़ानून और दंड का भय समाप्त हो चुका है, हया और शर्म तो कब की मर गई न्यायालय के अंकुश को भी उखाड़ फेंका। त्रस्त जनता के शांतीपूर्ण आन्दोलन को लाठी और बन्दूक से दबा दिया(अन्ना हजारे और रामदेवजी के आन्दोलनों का हश्र जग जाहिर है) और बिल्कुल निरंकुश होकर लूट चालू कर दी। यह स्वयं तक सीमित नहीं रहा जनता को भी अपने रंग में रंगने का प्रयास किया गया। </div>
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जनता की गाढ़ी कमाई को मुफ्त में लुटाया जाने लगा, सांसद निधि के नाम पर खुली लूट मची , मनरेगा और मद्यान्ह भोजन द्वारा व्यक्ति को अकर्मण्य बनाया जाने लगा और मुफ्तखोरी की आदत डाली जाने लगी , उद्यमशीलता समाप्त होने लगी, सस्ते अनाज द्वारा और कर्जे माफ करके लोगों में 'यावद जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत' अर्थात कर्ज लो और मौज करो का भाव जागृत किया गया जिससे लोगों में आपराधिक प्रवृत्ति बढी है ; और जो धन मूल सुविधाओं यथा बिजली , पानी, परिवहन आदि पर व्यय होना चाहिए था वह वोट के लिए जनता को घूष देने में व्यय कर दिया , जिससे सत्ता निरंतर बनी रहे और लूट का सिलसिला निरंतर चलता रहे। यदि मूल सुविधाएँ बढ़ती तो कृषक को खेती का समुचित मूल्य मिलता ,उद्योग धंधे बढ़ते तो रोजगार के अवसर बढ़ते। हर प्रकार का उत्पाद यहाँ होता तो हर छोटी मोटी उपयोग की वस्तु विदेशी कम्पनियों से नहीं खरीदनी पड़ती और देश का पैसा देश में रहता। क्या हम शरबत,साबुन, पापड़,चटनी टी वी ,फ्रिज जैसी चीजें भी बनाने में सक्षम नहीं हैं। मूल सुविधाएं होती तो हमारे उत्पाद सस्ते भी होते जिसे हम निर्यात करके विदेशी मुद्रा कमाते ; परन्तु फिर नेताओं को लूट का अवसर नहीं मिलता। </div>
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अब प्रश्न उठता है कि क्या सरकार को जन कल्याणकारी कार्य नहीं करने चाहियें ? अवश्य करने चाहियें; परन्तु यहाँ भावना ही गलत है, भावना वोटकी है, प्रचार की है, सत्ता की है, अभी उत्तराखंड त्रासदी पर जो सहायता राशि भेजी गई उसका उद्येश्य सहायता नहीं प्रचार था , इसीलिये जब तक झंडी नहीं दिखाई गई सामग्री नहीं भेजी जा सकी, उस पर बैनर लगाना आवश्यक था भले ही उस देरी में सामान खराब हो गया । रूपए का मूल्य आज भी बिलकुल नहीं गिरा है, संभवतः अब तक अरबों करोड़ डॉलर जो विदेशी बैंकों में जमा है क्यों कि हाल के वर्षों में केवल केंद्र सरकार के जो घोटाले सामने आए उनमें से प्रत्येक कई लाख करोड़ का है, और जो नहीं खुले वह अलग फिर राज्य सरकारों के घोटाले, सरकारी कार्यालयों में हर छोटे बड़े कार्य के लिए दी जाने वाली घूष , दलाली, फिरौती, आदि जघन्य कार्यों से अर्जित अकूत धन वह भी पिछले ६६ वर्षों का। यदि उसे वापस ले आया जाए और उससे भी अधिक मूल्य का सोना चांदी काले धन के रूप में तिजोरियों में पड़ा है ; यदि यह सब चलन में आजाए तो फिर पहले जैसी स्थिती या उससे अच्छी हो सकती है ; क्यों कि सरकार के आंकड़े और प्रयाष बताते हैं कि यदि विदेशी मुद्रा का आगमन होगा तो रुपए की सेहत सुधरेगी, इसके लिए सरकार यहाँ के छोटे से छोटे धंधे में विदेशी निवेश आमंत्रित करने को आतुर है यदि उपरोक्त धन आ जाए तो इस प्रकार के पागलपन के कार्य नहीं करने पड़ेंगे ; परन्तु यह करेगा कौन ? ऐसा लगता है सर्वाधिक काला धन देश में और विदेशों में इन नेताओं का ही है; तभी तो विदेशों में जमा धन हो या देश का काला धन उसे निकालने के नाम पर सब चुप हो जाते हैं, सबको सांप सूंघ जाता है । </div>
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surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-68825039830358204322012-10-19T17:50:00.000+05:302012-10-19T18:00:45.248+05:30एक था कफन खाशोट <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक राजा था कफन खसोट, वह मुर्दों का कफन छीन लेता था, प्रजा उसके अत्याचार से दुखी थी . जब वह राजा मरने लगा उसने अपने पुत्र से कहा "<b>बेटा तुम कुछ ऐसा करना कि लोग मेरे अत्याचारों को भूल जाएं ". पुत्र ने राजा बनते ही घोषड़ा करवा दी </b>"<b>अब से कफन के साथ एक कान भी देना पडेगा </b>", और प्रजा कहने लगी इस राजा से तो पहले वाला ही ठीक था . ठीक यही स्थिति आज के राजनैतिक दलों की है, प्रत्येक पांच वर्षों के शासन में जनता अत्याचार से कराह कर पहले वाले को अच्छा मान बैठती है, और यही क्रम चलता चला आ रहा है .<br />
पुरानी तमाम कहावतें और दन्त कथाएँ वर्तमान शासन पर खरी उतरती प्रतीत होती हैं, जैसे "<b>अंधेर नगरी चौपट राजा - टके सेर भाजी टके सेर खाजा </b>" आज भी मोटा अनाज (चना, सवां, काकुन ) महँगा -गेंहू सस्ता , तेल महँगा - डालडा सस्ता, पानी महँगा - दूध सस्ता, सब्जी महंगी - फल सस्ते, आदि .<br />
एक रावण था, जिसकी सोने की लंका थी, उसने गरीबों और साधू -संतों का रक्त तक निकलवा लिया था। आज भी संसद और विधान सभाएं रावणों से भरी पडी हैं, जो असहाय जनता के रक्त की अंतिम बूँद तक पीने को तत्पर हैं . इन्होंने केवल दो घोटालों में (कामन वेल्थ और 2जी ) लग भग ढाई लाख करोड़ रु (25000000000000) लूट लिये, जिससे उस समय 12500 टन स्वर्ण खरीदा जा सकता था, जो सोने की लंका से अधिक ही रहा होगा, जो महमूद गजनवी द्वारा लुटे गए सोमनाथ खजाने से लग भग 625 गुना अधिक रहा होगा। यह तो केवल बानगी है, कोयला लूट, जमीन लूट, और ना जाने क्या क्या? इन्होंने किसानों के खेत और विकलांगों का धन भी लूट लिया, उसे भी नहीं छोड़ा और या लुटेरे एक सड़क के आदमी से (जो इनकी नज़रों में नाली का कीड़ा है ) डर गए। रावण को उसके अपराध के लिए हम आज तक मारते चले आ रहे हैं, परन्तु इन पराभक्छी, रक्त पिपासू दुष्टों का कब संघार करेंगे?</div>
surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-42001957209892196672011-06-16T17:45:00.003+05:302011-06-16T18:37:50.680+05:30दम तोड़ता जन लोकपालभ्रस्टाचार और काले धन के विरुद्ध खड़े हुए जन आन्दोलनों से सरकार जिस कठोरता से निपट रही है उसकी प्रस्तुति १९७५ के लोकनायक के आन्दोलन फिर ३५ वर्ष बाद ४ जून २०११ की रात १ बजे राम लीला मैदान में देखने को मिली। सिविल सोसाइटी द्वारा प्रस्तुत जन लोकपाल विधेयक का यही हस्र होना लग भग तय हो चुका है। वास्तव में सरकार के अतरिक्त कोई भी राज नैतिक दल और कोई जन प्रतिनिधि इस रूप में इसे नहीं चाहते हैं, जिसमें उनके ऊपर कोई शिकंजा कस सके, क्योंकी सभी राजनैतिक दल और उनके नेता आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं, सभी प्रान्त सरकारें, केंद्र सरकार और उनके मुखिया भी कही ना कही भ्रष्टाचार से जुड़े है। जहां तक केंद्र सरकार की बात है वह तो भ्रष्टाचार का अवतार है जिसमें एक के बाद एक मंत्री(ऐ राजा, कलमाडी, दया निधि मारन, फिर चिदम्बरम और परतें खुलने दीजिये--) सम्मिलित हैं। आखिर एक लाख छेहत्तर हजार करोड़ (१७६०००००००००००) की लूट है। आखिर सब के हिस्से में कुछ ना कुछ आया होगा।<br />सिविल सोसाइटी का जन लोकपाल प्रस्ताव कुछ ऐसा ही है, जैसे चोरों से त्रस्त कुछ लोग चोरों से ही कहें कि भाई एक ऐसा सख्त थानेदार बनाओ जो चोरों और उनके मुखिया को पकड़ कर दण्डित भी करे, भला वो ऐसा क्यों करेंगे। अरे कम से कम मुखिया को तो छोड़ दो, यदि वह छूटा रहा तो अपने गैंग के चोरों उचित हिस्सा मिलने पर बचा लेगा( जैसा शीला के एक मंत्री को निर्दोष करार दिया)। भारत में लोकतंत्र स्थापित होने के बाद से ही घोटालों का दौर प्रारम्भ हो गया, परन्तु ना कोई अपराधी पकड़ा गया और ना ही पैसा वसूला जा सका; जीप घोटाला, स्टीम इंजन घोटाला, नागर वाला कांड से बोफोर्स तक, यूरिया घोटाला, कमान वेल्थ घोटाला,२जी घोटाला आदि, ये सब केंद्र सरकार कें हैं। इसी प्रकार राज्य सरकारों के अपने घोटाले हैं। आम तौर पर जितनी भी चोरी चोर करते हैं, उनके मुखिया को सब पता रहता है और हर चोरी का एक बड़ा हिस्सा मुखिया लेता है और बदले में अपने गेंग के चोरों को बचाता है(जैसे ऐ राजा और कलमाड़ी का बचाव मनमोहन और सिब्बल ने किया)। किसी किसी गेंग का मुखिया चालाक होता है और वह परदे के पीछे रहता है और गेंग का संचालन कोई और करता है इस प्रकार अपराध बोध से बचा रहता है। जब कभी चोर पकडे जाने की स्थिती में होता है तो पीछे भागती भीड़ पर कुछ धन उछाल देता है और भीड़ वह धन बटोरने में लग जाती है(सांसद निधि से मन रेगा तक तमाम अवसर जन प्रितिनिधियों को दिए गए हैं)<br />लगभग यही हल इस समय केंद्र एवं राज्य सरकारों और नेताओं का है। वास्तव में चोरी उनकी विवशता है, जो व्यक्ति करोड़ों रुपये व्यय करके चुनाव जीतता है उसकी भरपाई बगैर चोरी कैसे करेगा; इसीलिये कुछ नेता और मंत्री सिविल सोसाइटी के लोगों को चुनाव लड़ने की सलाह दे रहे है। यदि ये वास्तव में ईमानदार हैं तो इतना धन होगा नहीं कि चुनाव लड़ सकें और यदि एक दो लोग जीत भी गए तो वे कुछ भी कर नहीं सकेंगे। चोरी तभी रुक सकती है जब एक सक्छाम और ईमानदार थानेदार हो। यदि पूरा थाना ही चोर हो तो क्या हो सकता है। अन्ना ने ठीक ही कहा है 'यह आजादी की दूसरी लड़ाई है' जो पहली लड़ाई से अधिक कठिन है।surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-27556277034037586532009-04-11T15:12:00.002+05:302009-04-11T16:16:52.396+05:30१९८४ के हत्यारे डायर<div align="justify">यद्यपि १९४७ में भारत कहने को स्वतंत्र हो गया परन्तु यहाँ की सत्ता एक बार फिर जिनके पास आई वो अंग्रेजों के कम जालिम या जल्लाद नही निकले, उनके कार्य करने का तरीका और न्याय प्रडाली भी अंग्रजों की तरह ही है जनता के लिए कुछ और तो नेताओं के लिए कुछ और उसका ताजा उदाहरण है १९८४<span class=""> के </span>सिखों के हत्यारों को राष्ट्र की सबसे विश्व्स्य्नीय गुप्तचर संस्था द्वारा निरपराध घोषित कर देना। यदि हम इतिहास के पन्नों को पलटें और दासता के उस काले दिन का स्मरण करें, जब १३ अप्रैल १९१९ को अमृतसर के जलियाँ वाला बाग़ में चल रही एक शान्ति पूर्ण सभा में एकत्रित लगभग २००० निहत्थे और निरपराध लोगों पर जनरल डायर ने अंधाधुंध गोलियाँ बरसा कर सैकडों लोगों को मौत के मुह में धकेल दिया था, और अंग्रेज सरकार ने उसे कोई सजा नही दी थी। लोगों के सब्र का बाँध टूटा और ८ अप्रैल १९२९ को सरदार भगत सिंह ने अस्सेम्ब्ली के गलियारे में बम फ़ेंक कर सरकार के बहरे कानो को जगाने का प्रयास किया; परन्तु व्यर्थ रहा अंत में वही हुआ जो नही होना चाहिए था २१ वर्ष पश्चात लोगों ने क़ानून अपने हाथ में लिया और सात समुन्दर पार जा कर एक बहादुर शहीद ऊधम सिंह ने इंग्लैंड की धरती पर कैक्स्तों हाल में १३ मार्च १९४० को हत्यारे जनरल डायर को गोलियों से भून कर राष्ट्रिय अपमान का बदला ले लिया। </div><div align="justify"><span class="">१३ अप्रैल १९१९ से लेकर ८ अप्रैल १९२९ तक का इतिहास फिर दोराने का प्रयास किया गया है। ३१ अक्टूबर १९८४ को देश की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की ह्त्या कर दी गयी, कहते हैं उसमें एक सिक्ख का हाथ था और बस कांग्रेस के निर्देशन में दिल्ली सहित सम्पूर्ण राष्ट्र में सिक्खों का बर्बरता पूर्वक कत्ले आम किया गया, उन्हें जिंदा जलाया गया और यह सब कांग्रेसी नेताओं के समक्च्छ उनके निर्देशन में हुआ और यह नंगा नाच एक दो घंटे नही पूरे तीन दिनों तक चला। भारत का बहादुर परन्तु शान्ति प्रिय सिक्ख समुदाय २५ वर्स तक यहाँ की न्याय प्रडाली पर भरोसा किए रहा; परन्तु हद तब हो गयी जब १९८४ के ह्त्या कांड के दोषियों को सजा देने के स्थान पर उन्हें sansad में pahunchaane का marg prasast कर दिया गया और nirparaadhee भी घोषित कर दिया गया तब prtikriyaa swaroop सरदार भगत सिंह की तरह बहरे कानों को सुनाने के लिए एक patrkaar ने grahmantree पर जूता फ़ेंक कर मारा, उसका उद्येश्य ना तो गृहमंत्री को अपमानित करना था और ना ही उन्हें छाती पहुचाने का था। यदि अभी भी यह साकार नही चेती तो कहीं फिर किसी ऊधम सिंह का उदय ना हो और १३ मार्च १९४० की घटना की पुनरावृत्ति ना हो यह इस सरकार को देखना है सिक्ख समुदाय को नही। जब जनता को न्याय का भरोसा नही रहता है तभी गुजरात और कंधमाल जैसी घटनाएँ होती है। जहाँ प्रधान मंत्री स्वयं इस राष्ट्र के संसाधानूं पर पहला अधिकार एक विशेष समुदाय का बताता है, जहाउसी समुदाय के दवाब में सर्व्च्च न्यायलय के निर्णय को बदल दिया जाता हो, जहाँ एक व्यक्ति के दोष के लिए सरकार द्वारा स्वयं सम्पूर्ण समुदाय कीअ संघार कराने की परिपाटी डाली गयी हो वहां गोधरा कांड की प्रतिक्रया क्या होनी चाहिए थी, स्वामी लाक्सामानानंद<span class=""> की ह्त्या की प्रतिक्रिया पूर्व की प्रतिक्रिया का अनुसरण मात्र है । यदि लोगों में कानून का भय और विश्वाश उत्पन्न करना है तो जनता और shaasak दोनों के लिए समान क़ानून लागू कराने होंगे अन्यथा इन नेताओं को जूतों से भी भयानक कुछ और झेलना <span class="">पडेगा। </span></span></span></div>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-64294075152944984562009-03-13T18:37:00.004+05:302009-03-13T19:23:41.949+05:30प्रधान मंत्री की बेंच<div align="justify">भारत में अगले चुनाव घोषित हो चुके हैं और तमाम राजनीतिक दलों का दलदल सा दिखाई देने भी लगा है। इतने राजनैतिक दल देख कर किसी को भी भ्रम हो सकता है कि भारत में सुशाशन देने के लिए अलग अलग नीतिया होंगी अलग अलग उद्येश्य होंगे परन्तु यह आश्चर्यजनक किंतु सत्य है कि सभी दलों का उद्येश्य एक ही है। अपने अपने दल के प्रमुख को प्रधान मंत्री बनाना। यदि कोई ऐसी युक्ति निकल आए कि इन सभी को प्रधान मंत्री बनाया जा सके तो चुनाव की आवश्यकता ही नही रहेगी। इन दलों की ना तो कोई अलग आर्थिक नीति है, ना कोई अलग विदेश नीति है। वैसे इस का हल राज्यों में तो ढूंढा गया था ६, ६ महीने के लिए मुख्य मंत्री बना कर परन्तु अभी तक यह दो तक ही सीमित रहा हैअब प्रधान मंत्री के लिए बहुत उमीदवार है ऐसे में प्रधान मंत्री की कुर्सी हटा कर वहां प्रधान मंत्री बेंच या तखत डाल दिया जा सकता है जिसमें थोड़ा थोड़ा दब कर एक बार में ६ से ७ प्रधान मंत्री तक बैठ सकते हैं और तखत में तो १० से १५ तक बैठ सकते हैं। हर दो महीने बाद दूसरे लोगों को अवसर प्रदान कर दिया जाय। इस प्रकार बगैर चुनाव के ही राष्ट्र के उन सभी लोगों को जो सरकारी धन पर विदेश जाना चाहते हों, अपनी और अपने परिवार वालों की गंभीर बीमारियों का मुफ्त में इलाज करवाना चाहते होंएक अवसर मिल सकेगा। चुनाव में जो धन व्यर्थ होता है उसी धन से इन प्रधान मंत्रियों की कड़की दूर हो जायेगी और चुनाव प्रक्रिया में जो तमाम लोगों की जाने जाती हैं वो भी बच जायेंगी। वैसे भी जो प्रतिनिधि चुन कर जाते हैं उन्हें २०% से अधिक मत नही मिले होते हैं, ८०% लोग तो उनके विरुद्ध ही होते हैं। ५०% लोग तो चुनाव प्रक्रिया में भाग ही नही लेते, जो वोट पड़ते भी हैं उनमे काफी तादाद फर्जी वोटों की होती है। ऐसे में सभी को प्रधान मंत्री बनने का अवसर देने में बुराई भी क्या है, कम से कम प्रधान मंत्री बनने की लालसा में कोई चरण सिंह जैसा कार्य तो नही करेगा , यदि बहुत उतावला होगा तो बेंच पर ज़रा सा दब कर बैठ जायेगा और अपनी हसरत पूरी करलेगा। </div>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-42905718819153410062009-01-30T15:57:00.002+05:302009-01-30T16:33:35.181+05:30चन्द्र मोहन से चाँद मोहम्मद<div align="justify">हरियाणा के पूर्व उप मुख्य मंत्री चन्द्र मोहन अपनी पहली पत्नी एवं बच्चों के रहते हुए दूसरा विवाह करने के लिए इस्लाम स्वीकार करके चन्द्र मोहन से चाँद मोहम्मद बन गए क्यों कि हिन्दू कानून इस प्रकार की लम्पटता की अनुमति नहीं देता है जबकि इस्लाम में एक साथ चार-चार विवाह करने की छूट है। इसी छूट का लाभ लेने के लिए चन्द्र मोहन ने इस्लाम स्वीकार किया। यह कार्य उन्होंने पहली बार किया है ऐसा नही है इसके पूर्व भी समय समय पर लोग इस सुविधा का लाभ उठाते रहे है। धर्मेन्द्र - हेमामालिनी की घटना तो सभी को स्मरण होगी। चाँद मोहम्मद का इस्लाम स्वीकारना तो समझ में आता है परन्तु अनुराधा बाली को क्या सूझा था? उन्हें क्या मिला अनुराधा से फिजा बन कर? चाँद मोहम्मद को तो चार बीबी एक साथ रखने का असीमित अधिकार मिल गया और जब किसी से मन भर जाए जो अति निर्विकार भाव से उसे तीन बार तलाक कहना है। ना तो कोई कानूनी अड़चन ना कोई गुजारे भत्ते का झंझट। हरम में स्थान खाली हो गया उसे यदि किसी हसीना पर मन आ जाए तो उससे फिर भर लो। परन्तु अनुराधा को क्या मिला? सुना है वो पढी लिखी हैं कानून की जानकार है; परन्तु उनके सर पर इश्क का भूत कुछ ऐसा सवार हुआ कि किसी की बसी बसाई गृहस्थी उजाड़ने में भी संकोच नही लगा। अब वो फिजा बन गयी हैं अब उनके समस्त अधिकार छीन गए हैं, ना तो वो अपनी इक्षा से तलाक दे सकती हैं और ना गुजारे भत्ते की मांग कर सकती हैं और ना ही एक पतेके होते दूसरा आदमी रख सकती हैं । चाँद मोहम्मद का जब तक मन चाहेगा उनके जिस्म से खेलेगा और जब मन भर जायेगा कोई दूसरी हसीना अपने हरम में ले आएगा, यदि इन्होने विरोध किया तो तीन बार तलाक का आसन मार्ग खुला है। विवाह के मात्र ५० दिन पश्चात ही संभवतः फिजा जी इस सत्यता से परिचित हो गयी हैं और इसी लिए उन्होंने आत्महत्या का मार्ग चुनने का प्रयाष किया परन्तु असफल रही आख़िर उस पत्नी की आहें भी तो पीछा कर रही होंगी जिसकी अच्छी खासी गृहस्थी इन्होने उजाड़ी है। </div><div align="justify"><span class="">मुस्लिम उलेमा जहाँ छोटी छोटी बातों पर नित नए नए फतवे जारी किया करते हैं क्या उन्हें यह दिखायी नही देता है कि लोग किस प्रकार अपनी लम्पटता और कुत्सित वासनाओं की पूर्ति के लिए इस्लाम का सहारा लेते हैं, क्या यह सब इस्लाम में जायज है?</span></div>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-39146677246167277712009-01-17T20:58:00.002+05:302009-01-17T21:26:16.561+05:30राजनीति का पहला पाठ<div align="justify">आज १७ जनवरी को प्रसिद्ध नायक श्री संजय दत्त जी समाजवादी पार्टी की ओर से भारतीय गंदी राजनीती में प्रवेश करने के लिए लखनऊ आए थे। आज लखनऊ में उन्होंने रोड शो किया और राजनीती का पहला पाठ याद किया 'अराजकताऔर जाम' इसमें उनका साथ दिया राजनीति के धुरंदर माननीय मुलायम सिंघजी, अमर सिंघजी और जाया बच्चनजी ने। </div><div align="justify">ये लोग इस प्रकार के रोड शो करने के अभ्यस्त हैं इनके इस शो से किसी को कितनी भी तकलीफ हो, कितना भी कष्ट हो इनकी बला से। चारों ओर जाम ही जाम कोई बीमार व्यक्ति अस्पताल ना पहुच पाने के कारण अपने प्राण त्याग दे इनकी बला से, किसी की ट्रेन छूट जाए और वह अपना नौकरी की परीक्छा ना दे पाये इनकी बला से, कोई अपने काम पर समय से ना पहुच पाये इनकी बला से। इन्हे तो अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना है और कभी किसी नेता का रोड शो तो कभी किसी दल की रैली। लोगों की असुविधा से इन्हे ना कोई हया आती है और ना कोई संकोच होता है। यही भारतीय राजनीति का पहला पाठ है कि कुछ एसा करो जिससे अधिक से अधिक लोगों को असुविधा हो और वे आपको अधिक दिनों तक याद रख सकें। यह पाठ संजयजी ने सीख ही लिया अब आगे के दूसरे पाठ भी शीघ्र ही सीख जायेंगे और एक बेशर्म, भ्रस्ट राजनीतिक होने की भारतीय राजनीति की पावन परम्परा का निर्वहन करेंगे। </div>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-23683220073176431272009-01-10T12:29:00.001+05:302009-01-11T14:54:01.713+05:30मेंधर में शर्मनाक सैन्य पराक्रम<p align="justify">जिस प्रकार से ३१ दिसम्बर से ८ जनवरी तक लगभग ९ दिन तक कश्मीर के मंधेर में सेना और आतंकियों के मध्य एक लम्बी मुतभेड बे नतीजा समाप्त हो गयी और सभी आतंकी सुरक्छित भाग निकलने में सफल रहे, उससे भारतीय सेना का गौरवपूर्ण इतिहास कलंकित हुआ है। वैसे यह विषय अति संवेदनशील है परन्तु मुतभेड के समाचार जिस प्रकार प्रारंभ से ही प्रसारित होते रहे उसके पश्चात जनता को उसके परिणाम जानने और समीक्छा कराने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। समाचारों में निरंतर बताया जा रहा था की मुतभेड में तीन भारतीय जवान शहीद होगये और चार आतंकी भी ढेर कर दिए गए, तथा ८-१० आतंकियों के और होने की संभावना है जिन्हें किसी भी हाल में भागने नही दिया जाएगा। सेना विशेष रणनीति के तहत तेज आक्रमण नहीं कर रही है और कमान्डोस को भी नही उतारा जा रहा है। बाद में पता चला केवल तीन भारतीय सैनिक शहीद हुए है और कोई आतंकवादी न तो मारा गया और ना ही जिन्दा पकड़ा गया, सभी सकुशल भागने में सफल हुए। क्या यही हमारी रणनीति थी? उन्हें भागने के लिए सुरक्छित मार्ग दे दिया जाय। कहें उन आतंकियों के सम्बन्ध कुछ अति विशिष्ठ व्यक्तियों से तो नहीं रहे, जिनके पकड़े जाने से भारतीय राजनीति में भूचाल आने की संभावना थी, अतएव उन्हें भाग जाने दिया गया। या भारत पर कोई अंतर्राष्ट्रीय दवाब तो नही था? कारण जो भी हो इससे भारत की जनता और सेना का मनोबल गिरा है। जो राष्ट्र अपने घर में घुसे थोड़े से आतंकियों का कुछ नहीं बिगड़ सका वह उनके छेत्र में घुस कर उन पर कार्यवाही कैसे करेगा। इस प्रकार की किसी कार्यवाही के लिए इस्राइल जैसा शाहस और श्री लंका जैसी प्रतिबद्धता चाहिए। संभवतः हमारे राष्ट्र नेता इस बात को जानते हैं और अपनी कमजोरी को पहचानते हैं इसीलिये पाकिस्तान के विरुद्ध कोई ठोस कार्यवाही ना करके केवल बातों के गोले दाग रहे हैं और दूसरे राष्ट्रों पर निर्भर हैं। कल्पना करते हैं कोई दूसरा राष्ट्र भारत के लिए पकिस्तान को दण्डित करेगा और आतंकवादियों पर लगाम लगायेगा। </p>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-73153018519744531172009-01-08T18:14:00.000+05:302009-01-08T18:40:49.502+05:30आख़िर लोकतंत्र जीत गया<div align="justify">आज झारखण्ड के मुख्यमंत्री शेबुशरेन उर्फ़ 'गुरूजी' को विधान सभा उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा। एक समय उन्हें न्यायालय ने हत्या के अपराध का दोषी पाया था और आजन्म कारावास की सजा भी सुनाई थी, परन्तु अपने प्रभाव और रसूख के चलते ऊपरी न्यायालय से कमजोर और अपर्याप्त साक्छों के आधार पर निर्दोष करार दिए गए थे, और वे झारखंड के मुख्यमंत्री बन गए, जिससे सम्पूर्ण जनता स्तब्ध और अपने को ठगा सा अनुभव कर रही थी। परन्तु जिस प्रकार जनता ने चुनावों में अपना निर्णय दिया है वह एक शुभ लक्छान है, जनता ने बता दिया है की ' <span style="color:#cc0000;">ये पब्लिक है सब जानती </span><span class=""><span style="color:#cc0000;">है।</span> </span>ऐसा प्रतीत होता है जनता ने निश्चय कर लिया है की अब वह इनके झांसे में ना आकर अपने विवेक से मतदान कर के अपराधियों और भ्रस्ट नेताओं को देश की बागडोर नही सौंपेगी। ये नेता न्यायालय और क़ानून की आंखों में धूल झोंक सकते है, परन्तु जनता को बहुत दिनों तक मूर्ख नहीं बना सकते हैं। क्या यह जागरूकता निरंतर बनी रह सकेगी और आगे आने वाले चुनावों में बाहुबली, अपराधियों और भ्रस्ट नेताओं का सफाया हो सकेगा। झारखंड के इस चुनाव परिणाम को देख कर तो ऐसा ही प्रतीत होता है। </div>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-91270096066020685712009-01-05T18:29:00.000+05:302009-01-05T18:29:21.475+05:30Blogs Pundit| Blogging, Templates, tutorials, tips, ineternet, resources and inspiration<a href="http://blogspundit.blogspot.com/2008/12/what-is-right-time-of-writing-comments.html#comment-form">Blogs Pundit Blogging, Templates, tutorials, tiनमस्कार राजीवजी मेने अभी भी लिखना प्रारंभ किया है ना तो लेखन का अनुभव है और नाही इस टेक्नोलॉजी का किसी लेख पर हिन्दी में सीधे टिप्पणी किस प्रकार लिखी जाय, रोमन में लिखने पर वह हिंदी में बदलता नहीं है, आप जैसे स्थापित और विद्वान् लोग यदि मेरे लिखे ब्लोग्स पर बेबाक टिप्पणी और मार्ग दर्शन देंगे तो कुछ सीखने को मिलेगा, अनुसरण करना क्या है इसे क्यों किया जाना चाहिए ps, ineternet, resources and inspiration</a>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-2360562750393902442009-01-04T16:47:00.000+05:302009-01-04T17:54:25.928+05:30दिशाहीन नेतृत्व<div align="justify">स्वतन्त्रता के पश्चात् से इस राष्ट्र में निरंतर अराजकता और असंतोष बढ़ता चला जा रहा है, आज वो लोग जिन्होंने दासता देखी थी और उसके विरुद्ध संघर्स भी किया था यह कहते हुए पाये जाते है की इससे तो गुलाम ही अच्छे थे केवल अंग्रेजों के ही जुल्म सहने पड़ते थे वाकी जनता तो कानून का पालन करती थी, दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के ६१ वर्ष पश्चात भी यहाँ के राजनायिक राष्ट्रीय प्राथमिकताएं निर्धारित नहीं कर सके हैं, ऐसी प्राथमिकताएं जिनका अनुसरण सभी सरकारें करें चाहे वो किसी भी दल की हों, कभी गरीबी हटाओ, कभी छुआ छूत हटाओ, कभी कर्ज माफ़ करो कभी कारखाने लगाओ, कभी राष्ट्रीयकरण करो तो कभी सब प्राइवेट सेक्टर में दे दो, कभी रोजगार योजना, कभी बेकारी भत्ता, कभी पुस्ताहार योजना तो कभी विकास निधि के नाम पर लूट की छूट, कुछ भी निश्चित नही है सब सनक पर आधारित है, परिणाम सामने है किसी भी छेत्र में कोई भी कार्य संतोष जनक तरीके से पूरा नाहे हुआ है और चारों ओर आतंकवाद, विद्रोह, अशंतोश, लूट,ह्त्या, बलात्कार, डकैती का वातावरण बना हुआ है, जन सामान्य असुरक्छित है, अशंतोस बढ़ता जारहा है, हर घटना के पश्चात उसकी और कड़े शब्दों में भर्त्सना कर दी जाती है अपराधी निर्द्वंद और उन्मुक्त घूम रहें हैं, जनता का न्याय व्यवस्था से विश्वाश उठाता जारहा है, सरकारें सामान्य विरोध या मांग को ताकत से कुचलने का प्र्यास तब तक करती है जब तक वह हिंसक नहीं हो जाता है, हर समस्या से मुह मोडे रख कर सत्ता में बने रहने का उपक्रम करती रहती है, चाहे किसी प्रान्त के पुनर्गठन की मांग हो, बँगला देशी घुसपैठ का मामला हो, धर्मांतरण का मामला हो, राष्ट्रध्वज के अपमान का मामला हो, वन्देमातरम गीत का अपमान हो, सरकार शान्ति की भाषा समझती ही नही है, संवाद के लिए आवश्यक है की दोनों पक्छ एक ही भाषा जानते हों और सरकार केवल गोली की भाषा ही समझती है इसलिए अराजकता तो फैलेगी ही, जब मुख्य मंत्री अपने जन्मदिन पर तोहफे पर धन वसूली करवा रहा<span class=""> हो तब अपराधियों का साहस तो बढेगा ही, पहली प्राथमिकता सबको रोटी, तन ढकने को कपडा सिक्छा, सदाचार और सुरक्च्छा होनी ही चाहिए, संसाधनों का समान रूप से सम्पूर्ण राष्ट्र में बटवारा होना चाहिए नाकि प्रभावशाली नेताओं के छेत्र में ही विकास कार्य हों</span></div>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-14363774421917549892008-12-31T19:08:00.000+05:302008-12-31T19:49:49.097+05:30वाणी की स्वतंत्रता<div align="justify">सर्व प्रथम सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं, किसी भी बात की स्वतन्त्रता का तात्पर्य किसी दूसरे को कष्ट पहुचाना कदापि नही है परन्तु इन माननीय जनप्रतिनिधियों को कौन समझाए की उनकी असयंत वाणी से न केवल इस राष्ट्र की जनता दिग्भ्रमित होती है अपितु किसी का चरित्र हनन भी होता है और इन की विश्वसनीयता भी समाप्त होती है २००८ इसी प्रकार की बातों के लिए भी स्मरण किया जायेगा, दिल्ली की मुख्मंत्री शीला दिक्सित का यह कहना की 'लड़कियों को अधिक रोमांचकारी नही होना चाहिए' ,राज ठाकरे का उत्तर भारतियों के प्रति लगातार विष वमन करना, भीम सिंह द्बारा मुफ्ती मोहम्मद सईद पर अक्छरधाम के आतंकियों को सन्रक्छन देने का आरोप लगाना, अंतुले और अमर सिंह द्बारा आतंकियों के विरुद्ध संघर्स करते हुए वीर सहीदों की सहादत पर शंका करना, दिग्विजय सिंह और श्रीप्रकाश जैसवाल द्वारा आतंकवादियों द्बारा फिरौती की मांग के विषय में बोल कर सम्पूर्ण राष्ट्र को दिग्भ्रमित करने का प्रयास करना और इसी प्रकार भारतीय जनता पार्टी के नकवी द्वारा शहीदों को श्रद्धांजली देने वाली बहनों के लिए अभद्र टिप्पडी करना, विनय कटियार द्बारा यह कहना की मुंबई के आतंकी एक कांग्रेसी नेता के यहाँ ठहरे थे, आदि अनेक घाव है जो ये माननीय निरंतर देते रहते हैं, क्या इनकी इस वाणी पर संयम लगाने का कोई तरीका नही है यदि अनर्गल प्रलाप तीन प्रकार के लोग करते है तो उसका प्रभाव किसी पर नही पड़ता है , १- अबोध बच्चा (जो ये हैं नहीं), २- पागल(दिमागी रूप से), ३- सनकी या मानसिक विच्छिप्त ये लोग इनमें से किस श्रेणी में आते है, और यदि इनमें से कुछ हैं तो क्या इन्हें जनप्रतिनिधि होना चाहिए </div>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-1615655845962224312008-12-29T13:06:00.000+05:302008-12-29T14:03:36.518+05:30चुनाव सुधार<div align="justify">आज जनप्रतिनिधियों की अराजकता एवं गुंडा गर्दी जिस प्रकार बढ़ गयी है, उससे जन सामान्य अत्यधिक भयभीत और असुरक्छित अनुभव करता है, उसकी एक बानगी बसपा विधायक शेखर तिवारी द्वारा मुख्य मंत्री मायावती के जन्म दिन पर देने के लिए चन्दा ना देने पर एक अभियंता की पीट पीट कर हत्या कर देना है रक्छक ही भक्छक बन गया है, <span style="color:#cc0000;">यथा राजा तथा</span> <span style="color:#cc0000;">प्रजा, </span>इसीलिये चारों ओर अपराध, अत्याचार और अनाचार का बोल बाला है ,इसके लिए जन प्रतिनिधि कानून में कठोर प्राविधान बना कर इन नेताओं पर अंकुश लगाना परम आवश्यक है, उसके लिए निम्न सुझाव प्रस्तुत है</div><ol><li><div align="justify">सभी को मत देना आवश्यक कर दिया जाय परन्तु उसके पूर्व मत पत्र में 'इनमें से कोई नही ' का खाना जोड़ा जाय और यदि इस खाने में ३०% या अधिक मत पड़ जाएँ तो उन सभी प्रत्यासियों को अगले ६ वर्स के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाय </div></li><li><div align="justify">इनको मात्र जन प्रतिनिधि ही रहने दिया जाय, इनका वशेष रूतबा और सभी विशेष अधिकार तथा सुविधाएं समाप्त कर दी जाय </div></li><li><div align="justify">हर महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व के लिए योग्यता निर्धारित कर दी जाय और मंत्री से लेकर संतरी तक सभी की जवाब देही सुनिश्चित की जाए </div></li><li><div align="justify">जन प्रतिनिधियों को महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व देने के पूर्व उनकी योग्यता, चरित्र एवं आपराधिक प्रवृत्ति की सूछ्म जांच कराई जाय तथा उनकी एवं उनके निकट सम्बन्धियों की चल अचल संपत्ति की अति सूछ्म जांच कराई जाय और वह उत्तरदायित्व छोड़ने पर पुन्हा जांच कराई जाय यदि जांच बाद में ग़लत पायी जाय तो जांच अधिकारी के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही की जाय </div></li><li><div align="justify">विकास निधि आदि तत्काल समाप्त कर दी जाय और इनको पेंशन केवल उन्ही को प्रदान की जाय जो लगातार १५ वर्स तक जन प्रतिनिधि रहा सकें </div></li></ol><p align="justify">मुंबई हमलों के पश्चात जो लोगों का क्रोध उत्पन्न हुआ था उसे बनाए रखा जाना आवश्यक है, यदि ये सुझाव ठीक है तो आप विद्वान् और प्रभावशाली लोग इन्हे और धार दार बना कर अपने प्रभाव का प्रयोग कर प्रचारित करें और राष्ट्रपति, चुनाव आयुक्त तथा मुख्य न्यायाधीश को व्यक्तिगत रूप से नए वर्स में करोड़ों करोड़ों पोस्टकार्ड भेज कर दवाब बनाए और एक स्वास्थ चर्चा सम्पूर्ण राष्ट्र में करें, अन्यथा वह दिन बहुत दूर नही है जब जनसामान्य का धैर्य छूट जायेगा और सम्पूर्ण राष्ट्र एक अराजकता की चपेट में आजायेगा </p>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-13241149052146147482008-12-26T18:18:00.000+05:302008-12-26T19:12:08.453+05:30निरीह या चालाक सरकार<div align="justify">मुंबई आतंकी आक्रमण को एक माह व्यतीत हो गया जनता का नेताओं के प्रति क्रोध भी ठंडा पड़ने लगा है अंतुले ने जिस प्रकार पाकिस्तान के राष्ट्रपति के स्वर में स्वर मिला कर इस घटना में पाकिस्तान का हाथ होने पर संदेह व्यक्त किया है और केन्द्रिय सत्ता ने उसे सामान्य तरीके से टालने का प्रयास किया वह अंतुले को सही सिद्ध करता हुआ लगता है<span class=""> क्या </span>यह वोट बैंक के भय के कारण हुआ है, क्या समस्त मुस्लिम समाज अंतुले के विचारों से सहमत है निश्चित नहीं क्यों की इस आतंकवादी घटना के विरुद्ध जिस प्रकार सम्पूर्ण राष्ट्र एक साथ उठ खड़ा हुआ उसमें मुस्लिम समाज और उलेमा भी थे, यहाँ तक की आतंकियों के मृत शरीर को कब्रिस्तान में स्थान देने तक से भी मना कर दिया उसके पश्चात मुस्लिम समाज के अंतुले के साथ होने का कोई प्रश्न ही नही उठता है फिर सरकार अंतुले के विरुद्ध कार्यवाही करने में क्यों हिचक रही है कहीं इस आतंकी घटना के पीछे यहाँ के प्रभाव शाली नेताओं के ही हाथ तो नहीं है और अंतुले के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही करने से उसके खुल जाने का भय हो उस दिन ताज होटल में चार सांसदों का होना और सभी का सुरक्छित बच <span class="">जाना </span>और अंतुले के विरुद्ध कोई कार्यवाही ना करना इस शंका को बलवती करता है जिस प्रकार नोट के बदले वोट में अहमद पटेल और अमर सिंह को नामित किया गया था, परन्तु लग रहा था की वहा विपक्च्छ का ड्रामा है परन्तु संसदीय कमेटी द्वारा दोनों आरोपियों को बगैर विशेष जांच के दोषः मुक्त कर दिया गया और किसी को भी दोषी नही ठहराया गया उससे लगता है की यह कार्य सत्ता बचाने के लिए सत्ता पक्छ के प्रभावशाली नेताओं के निर्देश पर ही किया गया होगा उसी प्रकार महगाई, मंदी, शेयर बाजार की उथल पुतल, महाराष्ट्र में राज ठाकरे की गुंडा गर्दी, हिन्दू आतंकवाद को आवश्यकता से अधिक दिखाना और बिहार के सांसदों के स्तीफे से चारों ओर से दवाब में आई सरकार के पास जनता का ध्यान मुख्य समस्याओं से हटाने के लिए यह आतंकी आक्रमण करवाया गया हो, जिसमें कुछ हद तक सरकार सफल भी रही है और इस सबकी जानकारी अंतुले को रही हो</div>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-47492344620789832292008-12-21T14:11:00.000+05:302008-12-21T15:00:31.650+05:30धर्म और राज्य<div align="justify">धर्म और राज्य का आपस में अटूट सम्बन्ध रहा है धर्म के बिना राज्य नेत्र हीन की भांति है धर्म क्या है, धर्म जो धारण किया जाय वही धर्म है, किसके द्वारा धारण किया ? हर किसी के द्वारा धारण किया जाय वही धर्म है एक मिथ्या वादी व्यक्ति भी नही चाहता है कि कोई उससे झूट बोले , तो सत्य ही धारण करने योग्य है हमारे यहाँ एक कुतिया बच्चों को जन्म देने के कुछ दिन उपरांत दुर्घटना में समाप्त हो गई थी, तो एक सुअरिया उसके बच्चों को दूध पिलाने लगी यह सभी को मनभावन लगा, यही धर्म है तुलसीदासजी ने लिखा है <span style="color:#cc0000;">'पर हित सरिस धरम नही भाई, पर पीड़ा सम नही अधमाई'</span>, धर्म काल और देश की सीमाओं से परे है पशु पक्छी प्रकृति के धर्म से संचालित होते है; परन्तु विवेक और बुद्धी के कारन मनुष्य केवल प्रकति से संचालित नही होता है इसीलिये हर सम्प्रदाय में मनुष्य को दो नियमों "<span style="color:#ff6600;">पाप</span> <span style="color:#ff6600;">और पुण्य में बाँधा गया था और स्वर्ग नर्क के रूप में दंड</span> का प्राविधान किया गया था और सम्पूर्ण समाज इन्ही दो नियमों में बंधा चला जा रहा था स्वतंत्रता के पश्चात् इस राष्ट्र को धर्म निर्पेक्छ राष्ट्र घोषित कर दिया गया, संभवतः उनका आशय पंथ निर्पेक्छ्ता से रहा होगा, परन्तु ग़लत शब्द के प्रयोग का प्रतिफल यह हुआ कि इस राष्ट्र का अधिकाँश समाज पाप पुण्य के भय से मुक्त हो गया, और उन्मुक्त हो कर अनाचार करने लगा है आज यहाँ कुछ भी अधर्म प्रतीत नही होता है धन प्राप्त करने के लिए कोई भी निकृष्ट कार्य करना पड़े स्वीकार्य है आज चारों ओर अराजकता, हत्या, लूट, बलात्कार का वातावरण सा बना हुआ प्रतीत होता है, हर कोई दुखी है, भयभीत है नित नए कड़े से कड़े कानून बनते है परन्तु सब बौने प्रतीत होते है जब तक धर्म सापेक्छ राज्य की स्थापन नही होगी यह समस्या विकराल से विकरालतम होती जायेगी</div>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-49628170323831050392008-12-18T13:04:00.000+05:302008-12-18T13:32:17.825+05:30बुश को जूता<div align="justify">इराक में अमेरिका के राष्ट्रपति को एक पत्रकार ने जो जूते फ़ेंक कर मारे वह कोई महत्व पूर्ण घटना नही है कोई भी सर फिरा व्यक्ति किसी पर भी इस प्रकार का वार कर सकता है महत्त्व पूर्ण यह है की उसके पश्चात् उस घटना को आधार बना कर इन्टरनेट गेम बनाए गए और सम्पूर्ण दुनिया ने खूब जूते मारे भारतीय टीवी चैनलों ने इस घटना को खूब प्रचारित किया इस से ऐसा प्रतीत होता है की विश्व में अधिकांश लोग अमेरिका की विस्तार वादी नीतियों के विरुद्ध है और उससे नफरत भी करते हैं अमेरिका ने जिस प्रकार समय समय पर विश्व के तमाम राष्ट्रों को डराया ओर आक्रांत किया है, लोग उसके विरुद्ध हैं कभी खतरनाक हथियारों के बहाने तो कभी आतंक वाद के बहाने विएतनाम, रूस, अपफगानिस्तान, भारत,इराक, पाकिस्तान आदि राष्ट्रों पर धौंस जमाता रहा है या आक्रमण किया है उसी का यह आक्रोश है वास्तव में अमेरिका ही सबसे अधिक गैर जिम्मेदार राष्ट्र है जिसने दो बार परमाणु बम का प्रयोग किया और दूसरे राष्ट्रों को समझाता है तालिबान के रूप में आतंक का जन्म देने वाला आतंक को समाप्त करने की बात करता है खूंखार कुत्ते पालने वाले को यदि कभी कुत्ता काट भी ले तो कोई उसे मारता नही है, केवल कुत्तों से सावधान की तख्ती लटका देता है, उसी प्रकार अमेरिका भी तालिबान को कभी समाप्त नही करना चाहेगा उसका भय दिखा कर दूसरे देशों पर आक्रमण करेगा या उस राष्ट्र की जमीन पर अपनी सेनाएं उतार देगा</div>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2362227239008394745.post-85358243399543459412008-12-17T19:27:00.000+05:302008-12-17T19:54:17.593+05:30शहादत पर आंच<div align="justify">बाटला कांड हो या मुंबई कांड वहां शहीद हुए सैन्य अधिकारियों की शहादत पर सत्ता पक्छ की ओर से जिस प्रकार संदेह व्यक्त किया गया है वह दुर्भाग्य पूर्ण है, इसकी गंभीर जांच होनी ही चाहिए की घर का भेदी लंका दावे की तर्ज पर इस में भी यहाँ के लोगों का ही हाथ तो नही है और जनता का ध्यान बांटने के लिए पाकिस्तान को दोषी बताया जा रहा हो और इसीलिये कोई ठोस कार्यवाही नही की गयी है जब सत्ता पछ ही एक मत नही है तो सम्पूर्ण राष्ट्र से क्या अपेछा की जा सकती है क्या इस विषय पर भी ध्यान दिया जाएगा की आतंकी घटना के दिन ताज होटल में विभिन्न राजनीतिक दलों के चार सांसद उपस्थित थे और सब के सब सुरक्छित बच गए यह मात्र सय्न्योग था या ....... कहीं रामायण की तरह ही हनुमानजी द्वारा पूरी लंका जलाने पर भी केवल विभीसढ़ का घर ही बच गया था, उसी की पुनरावृत्ति तो नहीं की गयी है यदि ऐसा है तो इसकी भी परिणति नोट के बदले वोट जैसी ही होगी और जांच में कुछ भी नहीं पाया जाएगा</div>surendrahttp://www.blogger.com/profile/14119727658117807547noreply@blogger.com3