भारत में अगले चुनाव घोषित हो चुके हैं और तमाम राजनीतिक दलों का दलदल सा दिखाई देने भी लगा है। इतने राजनैतिक दल देख कर किसी को भी भ्रम हो सकता है कि भारत में सुशाशन देने के लिए अलग अलग नीतिया होंगी अलग अलग उद्येश्य होंगे परन्तु यह आश्चर्यजनक किंतु सत्य है कि सभी दलों का उद्येश्य एक ही है। अपने अपने दल के प्रमुख को प्रधान मंत्री बनाना। यदि कोई ऐसी युक्ति निकल आए कि इन सभी को प्रधान मंत्री बनाया जा सके तो चुनाव की आवश्यकता ही नही रहेगी। इन दलों की ना तो कोई अलग आर्थिक नीति है, ना कोई अलग विदेश नीति है। वैसे इस का हल राज्यों में तो ढूंढा गया था ६, ६ महीने के लिए मुख्य मंत्री बना कर परन्तु अभी तक यह दो तक ही सीमित रहा हैअब प्रधान मंत्री के लिए बहुत उमीदवार है ऐसे में प्रधान मंत्री की कुर्सी हटा कर वहां प्रधान मंत्री बेंच या तखत डाल दिया जा सकता है जिसमें थोड़ा थोड़ा दब कर एक बार में ६ से ७ प्रधान मंत्री तक बैठ सकते हैं और तखत में तो १० से १५ तक बैठ सकते हैं। हर दो महीने बाद दूसरे लोगों को अवसर प्रदान कर दिया जाय। इस प्रकार बगैर चुनाव के ही राष्ट्र के उन सभी लोगों को जो सरकारी धन पर विदेश जाना चाहते हों, अपनी और अपने परिवार वालों की गंभीर बीमारियों का मुफ्त में इलाज करवाना चाहते होंएक अवसर मिल सकेगा। चुनाव में जो धन व्यर्थ होता है उसी धन से इन प्रधान मंत्रियों की कड़की दूर हो जायेगी और चुनाव प्रक्रिया में जो तमाम लोगों की जाने जाती हैं वो भी बच जायेंगी। वैसे भी जो प्रतिनिधि चुन कर जाते हैं उन्हें २०% से अधिक मत नही मिले होते हैं, ८०% लोग तो उनके विरुद्ध ही होते हैं। ५०% लोग तो चुनाव प्रक्रिया में भाग ही नही लेते, जो वोट पड़ते भी हैं उनमे काफी तादाद फर्जी वोटों की होती है। ऐसे में सभी को प्रधान मंत्री बनने का अवसर देने में बुराई भी क्या है, कम से कम प्रधान मंत्री बनने की लालसा में कोई चरण सिंह जैसा कार्य तो नही करेगा , यदि बहुत उतावला होगा तो बेंच पर ज़रा सा दब कर बैठ जायेगा और अपनी हसरत पूरी करलेगा।
Friday, March 13, 2009
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