Tuesday, August 27, 2013

अपराधी तंत्र या संत

         आज कल एक समाचार सर्वाधिक चर्चा में है 'पूज्य संत आशाराम बापू द्वारा एक नाबालिग लड़की से बलात्कार ' आप अपने टी वी के किसी समाचार चैनल पर जाएं पिछले एक सप्ताह से चौबीस घंटे यही एक समाचार दिखाया जा रहा है आखिर दर्शक बढाने की होड़ जो लगी है। आज सभी राष्ट्रिय अंतर्राष्ट्रीय समाचार इस एक समाचार के सामने बौने हो गए है। अपराध सिद्ध होगा या नहीं होगा यह तो समय बताएगा परन्तु भारतीय मीडिया ने उन्हें बलात्कारी घोषित ही कर दिया है। संत आशारामजी के करोड़ों अनुयाई और शिष्य है बगैर आरोप निश्चित या सिद्ध हुए उन पर इस प्रकार का बर्बर आरोप लगा करसबकी नजरों में उनका मान गिराने का क्या औचित्य है , यदि आरोप निश्चित या सिद्ध नहीं हुए तो उनके सम्मान की जो अपूर्णीय छति हो रही है उसकी भरपाई कौन करेगा। क्या इस अपराध के लिए इन चैनलों पर कार्यवाही की जाएगी? क्या यह कोई षड्यंत्र नहीं हो सकता है ? क्या इस घ्रडित कार्य के लिए शासन द्वारा या उसके संकेत पर उन्हें बदनाम करने का कार्य नहीं किया जा रहा है ? यह सर्व विदित है कि आशारामजी अपने प्रवचनों में कई बार भ्रष्ट तंत्र के विरुद्ध आक्रामक हो जाते हैं और भारत में कहने को तो प्रजा तंत्र है परन्तु वास्तव में राजतंत्र ही है। विशेष रूप से उन राजनैतिक दलों की सरकारों के विरुद्ध बोलना जो एक वंश या एक व्यक्ति की धरोहर हैं। केंद्र की कांग्रेस सरकार कहने को तो एक परिवार की पार्टी की सरकार नही है ; परन्तु यह सर्वज्ञ है कि इन्द्राजी के समय से यह एक ही परिवार की पार्टी बनकर रह गई है और उस दल की सरकार के विरुद्ध बोलने का परिणाम क्या हो सकता है ? रामदेवजी से अधिक कौन जान सकता है ? यदि आशारामजी ने इस प्रकार का जघन्य कृत्य किया है तो उन्हें कठोर से कठोर दंड दिया जाना चाहिए। व्यक्ति कितना भी महान हो कितना भी सचरित्र हो उससे अपराध हो सकता है और यदि अपराध हुआ है तो वह केवल और केवल अपराधी है और उसे कठोर दण्ड मिलना ही चाहिए लेकिन वह सबके लिए सामान होना चाहिए, चाहे फिर वह संत हो, जनप्रतिनिधि हो, सामान्य व्यक्ति हो, प्रभावशाली बाहुबली हो, हिन्दू हो, मुसलमान हो, मंत्री हो या संत्री हो ।  व्यक्ति के आचरण में गिरावट के लिए एक छण चाहिए , अपराध मानसिक और दिमागी कमजोरी से होता है। वह किसी में कभी भी आ सकती है। विश्वामित्र जैसे महान तपस्वी भी एक छण में पथभ्रष्ट हो गए थे। 
           उपरोक्त विषय में पुलिस  की अति तत्परता और आश्चर्य चिकत कर देने वाली कार्यवाही के कारण षड्यंत्र की बू आती है , जो पुलिस थाने के सीमा विवाद के चलते घायल व्यक्ति को घंटों चिकित्सालय नहीं ले जाती और वह घायल मर जाने को विवश हो जाता है, अक्सर पीड़ित व्यक्ति को भगा देती है और उसकी प्राथिमिकी नहीं लिखती जब तक सुविधा शुल्क नहीं दिया जाता या कोई ऊंची सिफारिश नहीं होती । वहीं इस मामले में लडकी छिंदवाडा के छात्रावाष में रहती है ,बलात्कार जोधपुर आश्रम में होता है, बलात्कार के बाद भी वह लडकी तत्काल किसी को कुछ नहीं बताती, माँता-पिता को भी नहीं, इसकी शिकायत भी जोधपुर में पुलिस से नहीं करती। कई दिन पश्चात दिल्ली में शिकायत लिखवाई जाती है और पुलिश तत्काल तत्परता से जाँच में लग जाती है। भारतीय पुलिस  इतनी तत्पर कब से हो गई, यदि वास्तव में इतनी तत्पर यह पुलिस हो जाए तो भारत से अपराध समाप्त होने में समय नहीं लगेगा। कल दिनांक २६ को सभी चैनलों पर बार बार दिखाया गया कि आशारामजी के ऊपर से बलात्कार की धारा हटा ली गई क्यों? यदि बलात्कार हुआ था तो धारा क्यों हटाई गई और नहीं हुआ था तो धारा क्यों लगाई गई। क्या सब कुछ पुलिस की मर्जी पर है या उच्च स्तरीय षड्यंत्र ?
            ऐसे एक नहीं कई प्रमाण है जब शाषन के अनाचार के विरुद्ध किसी महान से महान व्यक्ति ने कोई आचरण किया है तो उसे गंभीर परिणाम भोगने पड़े है। तमिलनाडु में शंकर नेत्रालय को लेने की इक्छा मुख्यमंत्री जयललिता की अन्तरंग सहेली शशिकला ने व्यक्त की जिसे कांची कामकोठी के शंकराचार्य पूज्य जयेंद्र सरस्वती ने ठुकरा दिया तो उन्हें ११ नवम्बर २००४ को ह्त्या के आरोप में बंदी बना लिया गया। यदि आरोप सही थे तो क्या यह एक संयोग मात्र था या षड्यंत्र ?  
               इसी प्रकार उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के एक मंत्री अमरमणि त्रिपाठी पर एक कवियित्री मधुमिता शुक्ला के साथ यौन सम्बन्ध बनाने और गर्भवती हो जाने पर ९ मई २००३ को उसकी हत्या करने का आरोप लगा तो उनको बचाने के लिए आई.आई.टी. कानपुर  के होनहार छात्र अनुज मिश्रा पर झूठा आरोप मड दिया गया इतना ही नहीं एक पंडित ने उस बच्चे का विवाह मधुमिता से कराने की झूठी गवाही भी दे दी और इसे मीडिया ने खूब चटखारे ले कर दिखाया । दैवयोग से उन तारीखों में वह अनुज अपने साथियों के साथ भ्रमण पर बाहर गया हुआ था और इस कुत्सित षड्यंत्र के विरुद्ध सभी आई.आइ.टी. के छात्र एवं अध्यापक मजबूती से खड़े हो गए इसलिए उस निर्दोष का जीवन बर्बाद होने से बच गया तथा अमरमणि को आजन्म कारावाष हुआ, यदि अनुज बाहर नहीं गया होता तो आज अनुज जेल में होता ।
                फूलन देवी का नाम सभी ने सुना है १४ फरवरी १९८१ को उसने उत्तर प्रदेश के बहमई गाँव में अन्धाधुन्त गोली बरसा कर २२ लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। उस अपराध में जब वह जेल में थी तभी १९९४ में  मुलायम सिंह की उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सभी वाद वापस ले लिए गए और उसे जेल से रिहा कर दिया गया। फूलन देवी १९९६ का समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ी और सांसद हो गई, तो अपराधों का क्या हुआ? न्याय और कानून कहाँ गया? कोई अपराधी है या नहीं यह सरकार निश्चित करती है न्याय प्रक्रिया नहीं। सरकार की इक्षानुसार साक्ष्य बनाए और मिटाए जाते हैं। 
               केंद्र सरकार के घोटालों, काले धन और दलाली विरुद्ध आवाज उठाने पर अन्ना हजारे पर किस प्रकार जुर्म ढाए गए , रामदेवजी के शांतिपूर्ण आन्दोलन पर लाठी और गोलियां बरसाईं गईं और उन पर तथा उनके साथी बालकृष्ण पर किस प्रकार अनेकानेक आरोप लगा दिए गए। क्या जो सत्ता का साथ दें उन्हें अपराध करने की छूट है ?विरोध करने पर अपराध दिखाई देने लगते हैं। इसी प्रकार अरविन्द केजरीवाल , प्रशांत भूषण, किरण वेदी आदि पर भी अचानक खूब आरोप लगाए गए और इन सभी आरोपों को मीडिया में रात - दिन नमक मिर्च लगा कर खूब दिखाया। 
              परन्तु ३ सितम्बर २००१ में जामां मस्जिद दिल्ली के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के विरुद्ध लोधी कालोनी दिल्ली में राष्ट्र विरोधी कार्य करने का केस दर्ज हुआ जिसमें न्यायलय से गैर जमानती वारंट तक निकाला गया परन्तु वे न्यायलय के समक्ष उपस्थित नहीं हुए लगभग ११ वर्ष बाद २०१२ में फिर वारंट ही नहीं निकला अपितु उन्हें भगोड़ा भी घोषित कर दिया गया परन्तु वे उपस्थित नहीं हुए। क्या इस समाचार को भी इन बिकाऊ चैनलों ने इस तत्परता से दिखाया ?
                कहीं भारतीय चैनलें हिन्दू विरोधी सरकार के साथ मिल कर सोची समझी निति के तहत हिन्दू संतों उपदेशकों को बदनाम करने के कार्य में तो नहीं लगे हैं। अभी कुछ दिन पूर्व निर्मल बाबा के विरुद्ध ऐसा ही एक अभियान इन समाचार चैनलों द्वारा छेड़ा गया और वह कार्यक्रम थोड़े समय के लिए बंद भी हो गया परन्तु फिर किस प्रकार प्रारम्भ हो गया ? प्रारम्भ ही नहीं हुआ अपितु उन्ही समाचार चैनलों द्वारा दिखाया जा रहा है जिन्होंने इसे ठगी बताया था। 

Monday, August 19, 2013

डूबता रुपया और गिरती शाख

          पहले भारत सोने की चिड़िया कहलाता था, जिसे लूटने के लिए  निरंतर विदेशी आक्रमण हुए और उन्होंने खूब लूटा भी, अंततोगत्वा लगभग १००० वर्ष की दासता और संघर्ष के पश्चात १९४७ में जब भारत स्वतंत्र हुआ तो १ रुपया १ डॉलर के बराबर था ; परन्तु १९४७ के पश्चात् जबसे भारत में देशी सरकार बनी तभी से लूट और भ्रष्टाचार की भी स्वतंत्रता मिल गई और रुपया धीरे धीरे अपनी चमक खोने लगा। डॉलर बढ़ने लगा और रुपया घटने लगा , ज्यों ज्यों काला धन बढ़ने लगा त्यों त्यों रुपए की कीमत घटने लगी।  नेताओं, तस्करों एवं व्यापारियों का गठजोड़ बनने लगा और इस देश का लाखों डॉलर हर वर्ष काले धन के रूप में भारत से बाहर विदेशों में जमा होने लगा परिणाम स्वरूप भारत की संचित पूंजी चोरी चोरी कम होने लगी।  यह कुख्यात गठजोड़ धीरे धीरे कानून से ऊपर उठ गया परिणाम स्वरुप क़ानून का भय समाप्त होने लगा और मंत्री से लेकर संतरी तक सभी सरकारी विभाग घूषखोरी और दलाली में संलिप्त होते चले गए, काला धन बढ़ता चला गया और फिर हर वर्ष करोड़ों डॉलर का धन या सोना चांदी बैंक लाकरों में बंद होने लगा, इस संचित धन की पूर्ती के लिए नए नए कर लगते चले गए ; परन्तु चोरी और काला धन इतना अधिक बढ़ रहा था कि रूपए का अवमूल्यन होता चला गया। अपराधियों और कालाबाजारियों ने देखा कि चुनाव लड़कर नेता बनने पर कानून का कोई भय नहीं रहता तो ये लोग  स्वयं चुनाव लड़कर संसद और विधान सभाओं में पहुँचने लगे। जहाँ पहले नेता अपराधियों को संरक्षण देते थे अब अपराधी ही देश के कर्णधार होने लगे और इस प्रकार  जनतंत्र के मंदिर अपराधियों के सुरक्षित अड्डे बन गए जहाँ से सीधे दलाली,तस्करी , डकैती, फिरौती, हत्या जैसे जघन्य अपराध होने लगे और इन नेताओं की सम्पन्नता बढ़ती गई जिसके कारण लाखों करोड़ डालर हर वर्ष या तो बहार चले गए या बैंक लाकरों में बंद होने लगे। देश में घुन लग चुका था जो शनै: शनै: रुपए को चाटने लगा और इस देश की छवि एक महा भ्रष्ट देश के रूप में विश्व पटल पर उभरने लगी। पूरे संसार में यहाँ के लोगों को हिकारत की नज़र से देखा जाने लगा रूपए के साथ यह राष्ट्र भी अपनी गरिमा खोने लगा। 
             इस दलाली और चोरी का इन नेताओं को ऐसा चस्का लगा कि अधिकाँश मंत्री लाखों करोड़ की दलाली और चोरी के आरोपों में घिर गए और तो और सर्वाधिक सम्मानित और गरिमामय प्रधानमंत्री का पद भी इस कालिख से मुक्त नहीं रह सका।  खेल हों,रेल हो,सैनिक साज सामान हो,कोयला हो, रेत हो, गरीबों का अनाज हो, स्टाम्प पेपर हों, चीनी हो यूरिया हो हर जगह चोरी बढ़ती गई क़ानून और दंड का भय समाप्त हो चुका  है, हया और शर्म तो कब की मर गई न्यायालय के अंकुश को भी उखाड़ फेंका। त्रस्त जनता के शांतीपूर्ण आन्दोलन को लाठी और बन्दूक से दबा दिया(अन्ना हजारे और रामदेवजी के आन्दोलनों का हश्र जग जाहिर है) और बिल्कुल निरंकुश होकर लूट चालू कर दी। यह स्वयं तक सीमित नहीं रहा जनता को भी अपने रंग में रंगने का प्रयास किया गया। 
             जनता की गाढ़ी कमाई को मुफ्त में लुटाया जाने लगा, सांसद निधि के नाम पर खुली लूट मची , मनरेगा और मद्यान्ह  भोजन द्वारा व्यक्ति को अकर्मण्य बनाया जाने लगा और मुफ्तखोरी की आदत डाली जाने लगी , उद्यमशीलता समाप्त होने लगी, सस्ते अनाज द्वारा और कर्जे माफ करके लोगों में  'यावद जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत' अर्थात कर्ज लो और मौज करो का भाव जागृत किया गया जिससे लोगों में आपराधिक प्रवृत्ति बढी है ; और जो धन मूल सुविधाओं यथा बिजली , पानी, परिवहन आदि पर व्यय होना चाहिए था वह वोट के लिए जनता को घूष देने में व्यय कर दिया , जिससे सत्ता निरंतर बनी रहे और लूट का सिलसिला  निरंतर चलता रहे। यदि मूल सुविधाएँ बढ़ती तो कृषक को खेती का समुचित मूल्य मिलता ,उद्योग धंधे बढ़ते तो रोजगार के अवसर बढ़ते।  हर प्रकार का उत्पाद यहाँ होता तो हर छोटी मोटी उपयोग की वस्तु विदेशी कम्पनियों से नहीं खरीदनी पड़ती और देश का पैसा देश में रहता। क्या हम शरबत,साबुन, पापड़,चटनी  टी वी ,फ्रिज जैसी चीजें भी बनाने में सक्षम नहीं हैं। मूल सुविधाएं होती तो हमारे उत्पाद सस्ते भी होते जिसे हम निर्यात करके विदेशी मुद्रा कमाते ; परन्तु  फिर नेताओं को लूट का अवसर नहीं मिलता। 
                 अब प्रश्न उठता है कि क्या सरकार को जन कल्याणकारी कार्य नहीं करने  चाहियें ? अवश्य करने चाहियें; परन्तु यहाँ भावना ही गलत है, भावना वोटकी  है, प्रचार की  है, सत्ता की  है, अभी उत्तराखंड त्रासदी पर जो सहायता राशि भेजी गई उसका उद्येश्य सहायता नहीं प्रचार था , इसीलिये जब तक झंडी नहीं दिखाई गई सामग्री नहीं भेजी जा सकी, उस पर बैनर लगाना आवश्यक था भले ही उस देरी में सामान खराब हो गया । रूपए का मूल्य आज भी बिलकुल नहीं गिरा है, संभवतः अब तक अरबों करोड़ डॉलर जो विदेशी बैंकों में जमा है क्यों कि हाल के वर्षों में केवल केंद्र सरकार के जो घोटाले सामने आए उनमें से प्रत्येक कई लाख करोड़ का है, और जो नहीं खुले वह अलग फिर राज्य सरकारों के घोटाले, सरकारी कार्यालयों में हर छोटे बड़े कार्य के लिए दी जाने वाली घूष , दलाली, फिरौती, आदि जघन्य कार्यों से अर्जित अकूत धन वह भी पिछले ६६ वर्षों का। यदि  उसे वापस ले आया जाए और उससे भी अधिक मूल्य का सोना चांदी काले धन के रूप में तिजोरियों में पड़ा है ; यदि यह सब चलन में आजाए तो फिर पहले जैसी स्थिती या उससे अच्छी हो सकती है ; क्यों कि सरकार के आंकड़े और प्रयाष बताते हैं कि यदि विदेशी मुद्रा का आगमन होगा तो रुपए की सेहत सुधरेगी, इसके लिए सरकार यहाँ के छोटे से छोटे धंधे में विदेशी निवेश आमंत्रित करने को आतुर है यदि उपरोक्त धन आ जाए तो इस प्रकार के पागलपन के कार्य नहीं करने पड़ेंगे ; परन्तु यह करेगा कौन ? ऐसा लगता है सर्वाधिक काला धन देश में और विदेशों में इन नेताओं का ही है; तभी तो विदेशों में जमा धन हो या देश का काला धन उसे निकालने के नाम पर सब चुप हो जाते हैं, सबको सांप सूंघ जाता है ।