Friday, October 19, 2012

एक था कफन खाशोट

          एक राजा था कफन खसोट, वह मुर्दों का कफन छीन लेता था, प्रजा उसके अत्याचार से दुखी थी . जब वह राजा मरने लगा उसने अपने पुत्र से कहा "बेटा तुम कुछ ऐसा करना कि लोग मेरे अत्याचारों को भूल जाएं ". पुत्र ने राजा बनते ही घोषड़ा करवा दी "अब से कफन के साथ एक कान भी देना पडेगा ", और प्रजा कहने लगी इस राजा से तो पहले वाला ही ठीक था . ठीक यही स्थिति आज के राजनैतिक दलों की है, प्रत्येक पांच वर्षों के शासन में जनता अत्याचार से कराह कर पहले वाले को अच्छा मान बैठती है, और यही क्रम चलता चला आ रहा है .
          पुरानी तमाम कहावतें और दन्त कथाएँ वर्तमान शासन पर खरी उतरती प्रतीत होती हैं, जैसे "अंधेर नगरी चौपट राजा - टके सेर भाजी टके सेर खाजा " आज भी मोटा अनाज (चना, सवां, काकुन ) महँगा -गेंहू सस्ता , तेल महँगा - डालडा सस्ता, पानी महँगा - दूध सस्ता, सब्जी महंगी - फल सस्ते, आदि .
          एक रावण था, जिसकी सोने की लंका थी, उसने गरीबों और साधू -संतों का रक्त तक निकलवा लिया   था। आज भी संसद और विधान सभाएं रावणों से भरी पडी हैं, जो असहाय जनता के रक्त की अंतिम बूँद तक पीने को तत्पर हैं . इन्होंने केवल दो घोटालों में (कामन वेल्थ और 2जी ) लग भग  ढाई लाख करोड़ रु (25000000000000) लूट लिये, जिससे उस समय 12500 टन स्वर्ण खरीदा जा सकता था, जो सोने की लंका से अधिक ही रहा होगा, जो महमूद गजनवी द्वारा लुटे गए सोमनाथ खजाने से लग भग 625  गुना अधिक रहा होगा। यह तो केवल बानगी है, कोयला लूट, जमीन लूट, और ना जाने क्या क्या? इन्होंने किसानों के खेत और विकलांगों का धन भी लूट लिया, उसे भी नहीं छोड़ा और या लुटेरे एक सड़क के आदमी से (जो इनकी नज़रों में नाली का कीड़ा है ) डर गए। रावण को उसके अपराध के लिए हम आज तक मारते चले आ रहे हैं, परन्तु इन पराभक्छी, रक्त पिपासू दुष्टों का कब संघार करेंगे?