Saturday, April 11, 2009

१९८४ के हत्यारे डायर

यद्यपि १९४७ में भारत कहने को स्वतंत्र हो गया परन्तु यहाँ की सत्ता एक बार फिर जिनके पास आई वो अंग्रेजों के कम जालिम या जल्लाद नही निकले, उनके कार्य करने का तरीका और न्याय प्रडाली भी अंग्रजों की तरह ही है जनता के लिए कुछ और तो नेताओं के लिए कुछ और उसका ताजा उदाहरण है १९८४ के सिखों के हत्यारों को राष्ट्र की सबसे विश्व्स्य्नीय गुप्तचर संस्था द्वारा निरपराध घोषित कर देना। यदि हम इतिहास के पन्नों को पलटें और दासता के उस काले दिन का स्मरण करें, जब १३ अप्रैल १९१९ को अमृतसर के जलियाँ वाला बाग़ में चल रही एक शान्ति पूर्ण सभा में एकत्रित लगभग २००० निहत्थे और निरपराध लोगों पर जनरल डायर ने अंधाधुंध गोलियाँ बरसा कर सैकडों लोगों को मौत के मुह में धकेल दिया था, और अंग्रेज सरकार ने उसे कोई सजा नही दी थी। लोगों के सब्र का बाँध टूटा और ८ अप्रैल १९२९ को सरदार भगत सिंह ने अस्सेम्ब्ली के गलियारे में बम फ़ेंक कर सरकार के बहरे कानो को जगाने का प्रयास किया; परन्तु व्यर्थ रहा अंत में वही हुआ जो नही होना चाहिए था २१ वर्ष पश्चात लोगों ने क़ानून अपने हाथ में लिया और सात समुन्दर पार जा कर एक बहादुर शहीद ऊधम सिंह ने इंग्लैंड की धरती पर कैक्स्तों हाल में १३ मार्च १९४० को हत्यारे जनरल डायर को गोलियों से भून कर राष्ट्रिय अपमान का बदला ले लिया।
१३ अप्रैल १९१९ से लेकर ८ अप्रैल १९२९ तक का इतिहास फिर दोराने का प्रयास किया गया है। ३१ अक्टूबर १९८४ को देश की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की ह्त्या कर दी गयी, कहते हैं उसमें एक सिक्ख का हाथ था और बस कांग्रेस के निर्देशन में दिल्ली सहित सम्पूर्ण राष्ट्र में सिक्खों का बर्बरता पूर्वक कत्ले आम किया गया, उन्हें जिंदा जलाया गया और यह सब कांग्रेसी नेताओं के समक्च्छ उनके निर्देशन में हुआ और यह नंगा नाच एक दो घंटे नही पूरे तीन दिनों तक चला। भारत का बहादुर परन्तु शान्ति प्रिय सिक्ख समुदाय २५ वर्स तक यहाँ की न्याय प्रडाली पर भरोसा किए रहा; परन्तु हद तब हो गयी जब १९८४ के ह्त्या कांड के दोषियों को सजा देने के स्थान पर उन्हें sansad में pahunchaane का marg prasast कर दिया गया और nirparaadhee भी घोषित कर दिया गया तब prtikriyaa swaroop सरदार भगत सिंह की तरह बहरे कानों को सुनाने के लिए एक patrkaar ने grahmantree पर जूता फ़ेंक कर मारा, उसका उद्येश्य ना तो गृहमंत्री को अपमानित करना था और ना ही उन्हें छाती पहुचाने का था। यदि अभी भी यह साकार नही चेती तो कहीं फिर किसी ऊधम सिंह का उदय ना हो और १३ मार्च १९४० की घटना की पुनरावृत्ति ना हो यह इस सरकार को देखना है सिक्ख समुदाय को नही। जब जनता को न्याय का भरोसा नही रहता है तभी गुजरात और कंधमाल जैसी घटनाएँ होती है। जहाँ प्रधान मंत्री स्वयं इस राष्ट्र के संसाधानूं पर पहला अधिकार एक विशेष समुदाय का बताता है, जहाउसी समुदाय के दवाब में सर्व्च्च न्यायलय के निर्णय को बदल दिया जाता हो, जहाँ एक व्यक्ति के दोष के लिए सरकार द्वारा स्वयं सम्पूर्ण समुदाय कीअ संघार कराने की परिपाटी डाली गयी हो वहां गोधरा कांड की प्रतिक्रया क्या होनी चाहिए थी, स्वामी लाक्सामानानंद की ह्त्या की प्रतिक्रिया पूर्व की प्रतिक्रिया का अनुसरण मात्र है । यदि लोगों में कानून का भय और विश्वाश उत्पन्न करना है तो जनता और shaasak दोनों के लिए समान क़ानून लागू कराने होंगे अन्यथा इन नेताओं को जूतों से भी भयानक कुछ और झेलना पडेगा।

Friday, March 13, 2009

प्रधान मंत्री की बेंच

भारत में अगले चुनाव घोषित हो चुके हैं और तमाम राजनीतिक दलों का दलदल सा दिखाई देने भी लगा है। इतने राजनैतिक दल देख कर किसी को भी भ्रम हो सकता है कि भारत में सुशाशन देने के लिए अलग अलग नीतिया होंगी अलग अलग उद्येश्य होंगे परन्तु यह आश्चर्यजनक किंतु सत्य है कि सभी दलों का उद्येश्य एक ही है। अपने अपने दल के प्रमुख को प्रधान मंत्री बनाना। यदि कोई ऐसी युक्ति निकल आए कि इन सभी को प्रधान मंत्री बनाया जा सके तो चुनाव की आवश्यकता ही नही रहेगी। इन दलों की ना तो कोई अलग आर्थिक नीति है, ना कोई अलग विदेश नीति है। वैसे इस का हल राज्यों में तो ढूंढा गया था ६, ६ महीने के लिए मुख्य मंत्री बना कर परन्तु अभी तक यह दो तक ही सीमित रहा हैअब प्रधान मंत्री के लिए बहुत उमीदवार है ऐसे में प्रधान मंत्री की कुर्सी हटा कर वहां प्रधान मंत्री बेंच या तखत डाल दिया जा सकता है जिसमें थोड़ा थोड़ा दब कर एक बार में ६ से ७ प्रधान मंत्री तक बैठ सकते हैं और तखत में तो १० से १५ तक बैठ सकते हैं। हर दो महीने बाद दूसरे लोगों को अवसर प्रदान कर दिया जाय। इस प्रकार बगैर चुनाव के ही राष्ट्र के उन सभी लोगों को जो सरकारी धन पर विदेश जाना चाहते हों, अपनी और अपने परिवार वालों की गंभीर बीमारियों का मुफ्त में इलाज करवाना चाहते होंएक अवसर मिल सकेगा। चुनाव में जो धन व्यर्थ होता है उसी धन से इन प्रधान मंत्रियों की कड़की दूर हो जायेगी और चुनाव प्रक्रिया में जो तमाम लोगों की जाने जाती हैं वो भी बच जायेंगी। वैसे भी जो प्रतिनिधि चुन कर जाते हैं उन्हें २०% से अधिक मत नही मिले होते हैं, ८०% लोग तो उनके विरुद्ध ही होते हैं। ५०% लोग तो चुनाव प्रक्रिया में भाग ही नही लेते, जो वोट पड़ते भी हैं उनमे काफी तादाद फर्जी वोटों की होती है। ऐसे में सभी को प्रधान मंत्री बनने का अवसर देने में बुराई भी क्या है, कम से कम प्रधान मंत्री बनने की लालसा में कोई चरण सिंह जैसा कार्य तो नही करेगा , यदि बहुत उतावला होगा तो बेंच पर ज़रा सा दब कर बैठ जायेगा और अपनी हसरत पूरी करलेगा।

Friday, January 30, 2009

चन्द्र मोहन से चाँद मोहम्मद

हरियाणा के पूर्व उप मुख्य मंत्री चन्द्र मोहन अपनी पहली पत्नी एवं बच्चों के रहते हुए दूसरा विवाह करने के लिए इस्लाम स्वीकार करके चन्द्र मोहन से चाँद मोहम्मद बन गए क्यों कि हिन्दू कानून इस प्रकार की लम्पटता की अनुमति नहीं देता है जबकि इस्लाम में एक साथ चार-चार विवाह करने की छूट है। इसी छूट का लाभ लेने के लिए चन्द्र मोहन ने इस्लाम स्वीकार किया। यह कार्य उन्होंने पहली बार किया है ऐसा नही है इसके पूर्व भी समय समय पर लोग इस सुविधा का लाभ उठाते रहे है। धर्मेन्द्र - हेमामालिनी की घटना तो सभी को स्मरण होगी। चाँद मोहम्मद का इस्लाम स्वीकारना तो समझ में आता है परन्तु अनुराधा बाली को क्या सूझा था? उन्हें क्या मिला अनुराधा से फिजा बन कर? चाँद मोहम्मद को तो चार बीबी एक साथ रखने का असीमित अधिकार मिल गया और जब किसी से मन भर जाए जो अति निर्विकार भाव से उसे तीन बार तलाक कहना है। ना तो कोई कानूनी अड़चन ना कोई गुजारे भत्ते का झंझट। हरम में स्थान खाली हो गया उसे यदि किसी हसीना पर मन आ जाए तो उससे फिर भर लो। परन्तु अनुराधा को क्या मिला? सुना है वो पढी लिखी हैं कानून की जानकार है; परन्तु उनके सर पर इश्क का भूत कुछ ऐसा सवार हुआ कि किसी की बसी बसाई गृहस्थी उजाड़ने में भी संकोच नही लगा। अब वो फिजा बन गयी हैं अब उनके समस्त अधिकार छीन गए हैं, ना तो वो अपनी इक्षा से तलाक दे सकती हैं और ना गुजारे भत्ते की मांग कर सकती हैं और ना ही एक पतेके होते दूसरा आदमी रख सकती हैं । चाँद मोहम्मद का जब तक मन चाहेगा उनके जिस्म से खेलेगा और जब मन भर जायेगा कोई दूसरी हसीना अपने हरम में ले आएगा, यदि इन्होने विरोध किया तो तीन बार तलाक का आसन मार्ग खुला है। विवाह के मात्र ५० दिन पश्चात ही संभवतः फिजा जी इस सत्यता से परिचित हो गयी हैं और इसी लिए उन्होंने आत्महत्या का मार्ग चुनने का प्रयाष किया परन्तु असफल रही आख़िर उस पत्नी की आहें भी तो पीछा कर रही होंगी जिसकी अच्छी खासी गृहस्थी इन्होने उजाड़ी है।
मुस्लिम उलेमा जहाँ छोटी छोटी बातों पर नित नए नए फतवे जारी किया करते हैं क्या उन्हें यह दिखायी नही देता है कि लोग किस प्रकार अपनी लम्पटता और कुत्सित वासनाओं की पूर्ति के लिए इस्लाम का सहारा लेते हैं, क्या यह सब इस्लाम में जायज है?

Saturday, January 17, 2009

राजनीति का पहला पाठ

आज १७ जनवरी को प्रसिद्ध नायक श्री संजय दत्त जी समाजवादी पार्टी की ओर से भारतीय गंदी राजनीती में प्रवेश करने के लिए लखनऊ आए थे। आज लखनऊ में उन्होंने रोड शो किया और राजनीती का पहला पाठ याद किया 'अराजकताऔर जाम' इसमें उनका साथ दिया राजनीति के धुरंदर माननीय मुलायम सिंघजी, अमर सिंघजी और जाया बच्चनजी ने।
ये लोग इस प्रकार के रोड शो करने के अभ्यस्त हैं इनके इस शो से किसी को कितनी भी तकलीफ हो, कितना भी कष्ट हो इनकी बला से। चारों ओर जाम ही जाम कोई बीमार व्यक्ति अस्पताल ना पहुच पाने के कारण अपने प्राण त्याग दे इनकी बला से, किसी की ट्रेन छूट जाए और वह अपना नौकरी की परीक्छा ना दे पाये इनकी बला से, कोई अपने काम पर समय से ना पहुच पाये इनकी बला से। इन्हे तो अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना है और कभी किसी नेता का रोड शो तो कभी किसी दल की रैली। लोगों की असुविधा से इन्हे ना कोई हया आती है और ना कोई संकोच होता है। यही भारतीय राजनीति का पहला पाठ है कि कुछ एसा करो जिससे अधिक से अधिक लोगों को असुविधा हो और वे आपको अधिक दिनों तक याद रख सकें। यह पाठ संजयजी ने सीख ही लिया अब आगे के दूसरे पाठ भी शीघ्र ही सीख जायेंगे और एक बेशर्म, भ्रस्ट राजनीतिक होने की भारतीय राजनीति की पावन परम्परा का निर्वहन करेंगे।

Saturday, January 10, 2009

मेंधर में शर्मनाक सैन्य पराक्रम

जिस प्रकार से ३१ दिसम्बर से ८ जनवरी तक लगभग ९ दिन तक कश्मीर के मंधेर में सेना और आतंकियों के मध्य एक लम्बी मुतभेड बे नतीजा समाप्त हो गयी और सभी आतंकी सुरक्छित भाग निकलने में सफल रहे, उससे भारतीय सेना का गौरवपूर्ण इतिहास कलंकित हुआ है। वैसे यह विषय अति संवेदनशील है परन्तु मुतभेड के समाचार जिस प्रकार प्रारंभ से ही प्रसारित होते रहे उसके पश्चात जनता को उसके परिणाम जानने और समीक्छा कराने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। समाचारों में निरंतर बताया जा रहा था की मुतभेड में तीन भारतीय जवान शहीद होगये और चार आतंकी भी ढेर कर दिए गए, तथा ८-१० आतंकियों के और होने की संभावना है जिन्हें किसी भी हाल में भागने नही दिया जाएगा। सेना विशेष रणनीति के तहत तेज आक्रमण नहीं कर रही है और कमान्डोस को भी नही उतारा जा रहा है। बाद में पता चला केवल तीन भारतीय सैनिक शहीद हुए है और कोई आतंकवादी न तो मारा गया और ना ही जिन्दा पकड़ा गया, सभी सकुशल भागने में सफल हुए। क्या यही हमारी रणनीति थी? उन्हें भागने के लिए सुरक्छित मार्ग दे दिया जाय। कहें उन आतंकियों के सम्बन्ध कुछ अति विशिष्ठ व्यक्तियों से तो नहीं रहे, जिनके पकड़े जाने से भारतीय राजनीति में भूचाल आने की संभावना थी, अतएव उन्हें भाग जाने दिया गया। या भारत पर कोई अंतर्राष्ट्रीय दवाब तो नही था? कारण जो भी हो इससे भारत की जनता और सेना का मनोबल गिरा है। जो राष्ट्र अपने घर में घुसे थोड़े से आतंकियों का कुछ नहीं बिगड़ सका वह उनके छेत्र में घुस कर उन पर कार्यवाही कैसे करेगा। इस प्रकार की किसी कार्यवाही के लिए इस्राइल जैसा शाहस और श्री लंका जैसी प्रतिबद्धता चाहिए। संभवतः हमारे राष्ट्र नेता इस बात को जानते हैं और अपनी कमजोरी को पहचानते हैं इसीलिये पाकिस्तान के विरुद्ध कोई ठोस कार्यवाही ना करके केवल बातों के गोले दाग रहे हैं और दूसरे राष्ट्रों पर निर्भर हैं। कल्पना करते हैं कोई दूसरा राष्ट्र भारत के लिए पकिस्तान को दण्डित करेगा और आतंकवादियों पर लगाम लगायेगा।

Thursday, January 8, 2009

आख़िर लोकतंत्र जीत गया

आज झारखण्ड के मुख्यमंत्री शेबुशरेन उर्फ़ 'गुरूजी' को विधान सभा उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा। एक समय उन्हें न्यायालय ने हत्या के अपराध का दोषी पाया था और आजन्म कारावास की सजा भी सुनाई थी, परन्तु अपने प्रभाव और रसूख के चलते ऊपरी न्यायालय से कमजोर और अपर्याप्त साक्छों के आधार पर निर्दोष करार दिए गए थे, और वे झारखंड के मुख्यमंत्री बन गए, जिससे सम्पूर्ण जनता स्तब्ध और अपने को ठगा सा अनुभव कर रही थी। परन्तु जिस प्रकार जनता ने चुनावों में अपना निर्णय दिया है वह एक शुभ लक्छान है, जनता ने बता दिया है की ' ये पब्लिक है सब जानती है। ऐसा प्रतीत होता है जनता ने निश्चय कर लिया है की अब वह इनके झांसे में ना आकर अपने विवेक से मतदान कर के अपराधियों और भ्रस्ट नेताओं को देश की बागडोर नही सौंपेगी। ये नेता न्यायालय और क़ानून की आंखों में धूल झोंक सकते है, परन्तु जनता को बहुत दिनों तक मूर्ख नहीं बना सकते हैं। क्या यह जागरूकता निरंतर बनी रह सकेगी और आगे आने वाले चुनावों में बाहुबली, अपराधियों और भ्रस्ट नेताओं का सफाया हो सकेगा। झारखंड के इस चुनाव परिणाम को देख कर तो ऐसा ही प्रतीत होता है।

Sunday, January 4, 2009

दिशाहीन नेतृत्व

स्वतन्त्रता के पश्चात् से इस राष्ट्र में निरंतर अराजकता और असंतोष बढ़ता चला जा रहा है, आज वो लोग जिन्होंने दासता देखी थी और उसके विरुद्ध संघर्स भी किया था यह कहते हुए पाये जाते है की इससे तो गुलाम ही अच्छे थे केवल अंग्रेजों के ही जुल्म सहने पड़ते थे वाकी जनता तो कानून का पालन करती थी, दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के ६१ वर्ष पश्चात भी यहाँ के राजनायिक राष्ट्रीय प्राथमिकताएं निर्धारित नहीं कर सके हैं, ऐसी प्राथमिकताएं जिनका अनुसरण सभी सरकारें करें चाहे वो किसी भी दल की हों, कभी गरीबी हटाओ, कभी छुआ छूत हटाओ, कभी कर्ज माफ़ करो कभी कारखाने लगाओ, कभी राष्ट्रीयकरण करो तो कभी सब प्राइवेट सेक्टर में दे दो, कभी रोजगार योजना, कभी बेकारी भत्ता, कभी पुस्ताहार योजना तो कभी विकास निधि के नाम पर लूट की छूट, कुछ भी निश्चित नही है सब सनक पर आधारित है, परिणाम सामने है किसी भी छेत्र में कोई भी कार्य संतोष जनक तरीके से पूरा नाहे हुआ है और चारों ओर आतंकवाद, विद्रोह, अशंतोश, लूट,ह्त्या, बलात्कार, डकैती का वातावरण बना हुआ है, जन सामान्य असुरक्छित है, अशंतोस बढ़ता जारहा है, हर घटना के पश्चात उसकी और कड़े शब्दों में भर्त्सना कर दी जाती है अपराधी निर्द्वंद और उन्मुक्त घूम रहें हैं, जनता का न्याय व्यवस्था से विश्वाश उठाता जारहा है, सरकारें सामान्य विरोध या मांग को ताकत से कुचलने का प्र्यास तब तक करती है जब तक वह हिंसक नहीं हो जाता है, हर समस्या से मुह मोडे रख कर सत्ता में बने रहने का उपक्रम करती रहती है, चाहे किसी प्रान्त के पुनर्गठन की मांग हो, बँगला देशी घुसपैठ का मामला हो, धर्मांतरण का मामला हो, राष्ट्रध्वज के अपमान का मामला हो, वन्देमातरम गीत का अपमान हो, सरकार शान्ति की भाषा समझती ही नही है, संवाद के लिए आवश्यक है की दोनों पक्छ एक ही भाषा जानते हों और सरकार केवल गोली की भाषा ही समझती है इसलिए अराजकता तो फैलेगी ही, जब मुख्य मंत्री अपने जन्मदिन पर तोहफे पर धन वसूली करवा रहा हो तब अपराधियों का साहस तो बढेगा ही, पहली प्राथमिकता सबको रोटी, तन ढकने को कपडा सिक्छा, सदाचार और सुरक्च्छा होनी ही चाहिए, संसाधनों का समान रूप से सम्पूर्ण राष्ट्र में बटवारा होना चाहिए नाकि प्रभावशाली नेताओं के छेत्र में ही विकास कार्य हों