Friday, January 30, 2009

चन्द्र मोहन से चाँद मोहम्मद

हरियाणा के पूर्व उप मुख्य मंत्री चन्द्र मोहन अपनी पहली पत्नी एवं बच्चों के रहते हुए दूसरा विवाह करने के लिए इस्लाम स्वीकार करके चन्द्र मोहन से चाँद मोहम्मद बन गए क्यों कि हिन्दू कानून इस प्रकार की लम्पटता की अनुमति नहीं देता है जबकि इस्लाम में एक साथ चार-चार विवाह करने की छूट है। इसी छूट का लाभ लेने के लिए चन्द्र मोहन ने इस्लाम स्वीकार किया। यह कार्य उन्होंने पहली बार किया है ऐसा नही है इसके पूर्व भी समय समय पर लोग इस सुविधा का लाभ उठाते रहे है। धर्मेन्द्र - हेमामालिनी की घटना तो सभी को स्मरण होगी। चाँद मोहम्मद का इस्लाम स्वीकारना तो समझ में आता है परन्तु अनुराधा बाली को क्या सूझा था? उन्हें क्या मिला अनुराधा से फिजा बन कर? चाँद मोहम्मद को तो चार बीबी एक साथ रखने का असीमित अधिकार मिल गया और जब किसी से मन भर जाए जो अति निर्विकार भाव से उसे तीन बार तलाक कहना है। ना तो कोई कानूनी अड़चन ना कोई गुजारे भत्ते का झंझट। हरम में स्थान खाली हो गया उसे यदि किसी हसीना पर मन आ जाए तो उससे फिर भर लो। परन्तु अनुराधा को क्या मिला? सुना है वो पढी लिखी हैं कानून की जानकार है; परन्तु उनके सर पर इश्क का भूत कुछ ऐसा सवार हुआ कि किसी की बसी बसाई गृहस्थी उजाड़ने में भी संकोच नही लगा। अब वो फिजा बन गयी हैं अब उनके समस्त अधिकार छीन गए हैं, ना तो वो अपनी इक्षा से तलाक दे सकती हैं और ना गुजारे भत्ते की मांग कर सकती हैं और ना ही एक पतेके होते दूसरा आदमी रख सकती हैं । चाँद मोहम्मद का जब तक मन चाहेगा उनके जिस्म से खेलेगा और जब मन भर जायेगा कोई दूसरी हसीना अपने हरम में ले आएगा, यदि इन्होने विरोध किया तो तीन बार तलाक का आसन मार्ग खुला है। विवाह के मात्र ५० दिन पश्चात ही संभवतः फिजा जी इस सत्यता से परिचित हो गयी हैं और इसी लिए उन्होंने आत्महत्या का मार्ग चुनने का प्रयाष किया परन्तु असफल रही आख़िर उस पत्नी की आहें भी तो पीछा कर रही होंगी जिसकी अच्छी खासी गृहस्थी इन्होने उजाड़ी है।
मुस्लिम उलेमा जहाँ छोटी छोटी बातों पर नित नए नए फतवे जारी किया करते हैं क्या उन्हें यह दिखायी नही देता है कि लोग किस प्रकार अपनी लम्पटता और कुत्सित वासनाओं की पूर्ति के लिए इस्लाम का सहारा लेते हैं, क्या यह सब इस्लाम में जायज है?

Saturday, January 17, 2009

राजनीति का पहला पाठ

आज १७ जनवरी को प्रसिद्ध नायक श्री संजय दत्त जी समाजवादी पार्टी की ओर से भारतीय गंदी राजनीती में प्रवेश करने के लिए लखनऊ आए थे। आज लखनऊ में उन्होंने रोड शो किया और राजनीती का पहला पाठ याद किया 'अराजकताऔर जाम' इसमें उनका साथ दिया राजनीति के धुरंदर माननीय मुलायम सिंघजी, अमर सिंघजी और जाया बच्चनजी ने।
ये लोग इस प्रकार के रोड शो करने के अभ्यस्त हैं इनके इस शो से किसी को कितनी भी तकलीफ हो, कितना भी कष्ट हो इनकी बला से। चारों ओर जाम ही जाम कोई बीमार व्यक्ति अस्पताल ना पहुच पाने के कारण अपने प्राण त्याग दे इनकी बला से, किसी की ट्रेन छूट जाए और वह अपना नौकरी की परीक्छा ना दे पाये इनकी बला से, कोई अपने काम पर समय से ना पहुच पाये इनकी बला से। इन्हे तो अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना है और कभी किसी नेता का रोड शो तो कभी किसी दल की रैली। लोगों की असुविधा से इन्हे ना कोई हया आती है और ना कोई संकोच होता है। यही भारतीय राजनीति का पहला पाठ है कि कुछ एसा करो जिससे अधिक से अधिक लोगों को असुविधा हो और वे आपको अधिक दिनों तक याद रख सकें। यह पाठ संजयजी ने सीख ही लिया अब आगे के दूसरे पाठ भी शीघ्र ही सीख जायेंगे और एक बेशर्म, भ्रस्ट राजनीतिक होने की भारतीय राजनीति की पावन परम्परा का निर्वहन करेंगे।

Saturday, January 10, 2009

मेंधर में शर्मनाक सैन्य पराक्रम

जिस प्रकार से ३१ दिसम्बर से ८ जनवरी तक लगभग ९ दिन तक कश्मीर के मंधेर में सेना और आतंकियों के मध्य एक लम्बी मुतभेड बे नतीजा समाप्त हो गयी और सभी आतंकी सुरक्छित भाग निकलने में सफल रहे, उससे भारतीय सेना का गौरवपूर्ण इतिहास कलंकित हुआ है। वैसे यह विषय अति संवेदनशील है परन्तु मुतभेड के समाचार जिस प्रकार प्रारंभ से ही प्रसारित होते रहे उसके पश्चात जनता को उसके परिणाम जानने और समीक्छा कराने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। समाचारों में निरंतर बताया जा रहा था की मुतभेड में तीन भारतीय जवान शहीद होगये और चार आतंकी भी ढेर कर दिए गए, तथा ८-१० आतंकियों के और होने की संभावना है जिन्हें किसी भी हाल में भागने नही दिया जाएगा। सेना विशेष रणनीति के तहत तेज आक्रमण नहीं कर रही है और कमान्डोस को भी नही उतारा जा रहा है। बाद में पता चला केवल तीन भारतीय सैनिक शहीद हुए है और कोई आतंकवादी न तो मारा गया और ना ही जिन्दा पकड़ा गया, सभी सकुशल भागने में सफल हुए। क्या यही हमारी रणनीति थी? उन्हें भागने के लिए सुरक्छित मार्ग दे दिया जाय। कहें उन आतंकियों के सम्बन्ध कुछ अति विशिष्ठ व्यक्तियों से तो नहीं रहे, जिनके पकड़े जाने से भारतीय राजनीति में भूचाल आने की संभावना थी, अतएव उन्हें भाग जाने दिया गया। या भारत पर कोई अंतर्राष्ट्रीय दवाब तो नही था? कारण जो भी हो इससे भारत की जनता और सेना का मनोबल गिरा है। जो राष्ट्र अपने घर में घुसे थोड़े से आतंकियों का कुछ नहीं बिगड़ सका वह उनके छेत्र में घुस कर उन पर कार्यवाही कैसे करेगा। इस प्रकार की किसी कार्यवाही के लिए इस्राइल जैसा शाहस और श्री लंका जैसी प्रतिबद्धता चाहिए। संभवतः हमारे राष्ट्र नेता इस बात को जानते हैं और अपनी कमजोरी को पहचानते हैं इसीलिये पाकिस्तान के विरुद्ध कोई ठोस कार्यवाही ना करके केवल बातों के गोले दाग रहे हैं और दूसरे राष्ट्रों पर निर्भर हैं। कल्पना करते हैं कोई दूसरा राष्ट्र भारत के लिए पकिस्तान को दण्डित करेगा और आतंकवादियों पर लगाम लगायेगा।

Thursday, January 8, 2009

आख़िर लोकतंत्र जीत गया

आज झारखण्ड के मुख्यमंत्री शेबुशरेन उर्फ़ 'गुरूजी' को विधान सभा उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा। एक समय उन्हें न्यायालय ने हत्या के अपराध का दोषी पाया था और आजन्म कारावास की सजा भी सुनाई थी, परन्तु अपने प्रभाव और रसूख के चलते ऊपरी न्यायालय से कमजोर और अपर्याप्त साक्छों के आधार पर निर्दोष करार दिए गए थे, और वे झारखंड के मुख्यमंत्री बन गए, जिससे सम्पूर्ण जनता स्तब्ध और अपने को ठगा सा अनुभव कर रही थी। परन्तु जिस प्रकार जनता ने चुनावों में अपना निर्णय दिया है वह एक शुभ लक्छान है, जनता ने बता दिया है की ' ये पब्लिक है सब जानती है। ऐसा प्रतीत होता है जनता ने निश्चय कर लिया है की अब वह इनके झांसे में ना आकर अपने विवेक से मतदान कर के अपराधियों और भ्रस्ट नेताओं को देश की बागडोर नही सौंपेगी। ये नेता न्यायालय और क़ानून की आंखों में धूल झोंक सकते है, परन्तु जनता को बहुत दिनों तक मूर्ख नहीं बना सकते हैं। क्या यह जागरूकता निरंतर बनी रह सकेगी और आगे आने वाले चुनावों में बाहुबली, अपराधियों और भ्रस्ट नेताओं का सफाया हो सकेगा। झारखंड के इस चुनाव परिणाम को देख कर तो ऐसा ही प्रतीत होता है।

Sunday, January 4, 2009

दिशाहीन नेतृत्व

स्वतन्त्रता के पश्चात् से इस राष्ट्र में निरंतर अराजकता और असंतोष बढ़ता चला जा रहा है, आज वो लोग जिन्होंने दासता देखी थी और उसके विरुद्ध संघर्स भी किया था यह कहते हुए पाये जाते है की इससे तो गुलाम ही अच्छे थे केवल अंग्रेजों के ही जुल्म सहने पड़ते थे वाकी जनता तो कानून का पालन करती थी, दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के ६१ वर्ष पश्चात भी यहाँ के राजनायिक राष्ट्रीय प्राथमिकताएं निर्धारित नहीं कर सके हैं, ऐसी प्राथमिकताएं जिनका अनुसरण सभी सरकारें करें चाहे वो किसी भी दल की हों, कभी गरीबी हटाओ, कभी छुआ छूत हटाओ, कभी कर्ज माफ़ करो कभी कारखाने लगाओ, कभी राष्ट्रीयकरण करो तो कभी सब प्राइवेट सेक्टर में दे दो, कभी रोजगार योजना, कभी बेकारी भत्ता, कभी पुस्ताहार योजना तो कभी विकास निधि के नाम पर लूट की छूट, कुछ भी निश्चित नही है सब सनक पर आधारित है, परिणाम सामने है किसी भी छेत्र में कोई भी कार्य संतोष जनक तरीके से पूरा नाहे हुआ है और चारों ओर आतंकवाद, विद्रोह, अशंतोश, लूट,ह्त्या, बलात्कार, डकैती का वातावरण बना हुआ है, जन सामान्य असुरक्छित है, अशंतोस बढ़ता जारहा है, हर घटना के पश्चात उसकी और कड़े शब्दों में भर्त्सना कर दी जाती है अपराधी निर्द्वंद और उन्मुक्त घूम रहें हैं, जनता का न्याय व्यवस्था से विश्वाश उठाता जारहा है, सरकारें सामान्य विरोध या मांग को ताकत से कुचलने का प्र्यास तब तक करती है जब तक वह हिंसक नहीं हो जाता है, हर समस्या से मुह मोडे रख कर सत्ता में बने रहने का उपक्रम करती रहती है, चाहे किसी प्रान्त के पुनर्गठन की मांग हो, बँगला देशी घुसपैठ का मामला हो, धर्मांतरण का मामला हो, राष्ट्रध्वज के अपमान का मामला हो, वन्देमातरम गीत का अपमान हो, सरकार शान्ति की भाषा समझती ही नही है, संवाद के लिए आवश्यक है की दोनों पक्छ एक ही भाषा जानते हों और सरकार केवल गोली की भाषा ही समझती है इसलिए अराजकता तो फैलेगी ही, जब मुख्य मंत्री अपने जन्मदिन पर तोहफे पर धन वसूली करवा रहा हो तब अपराधियों का साहस तो बढेगा ही, पहली प्राथमिकता सबको रोटी, तन ढकने को कपडा सिक्छा, सदाचार और सुरक्च्छा होनी ही चाहिए, संसाधनों का समान रूप से सम्पूर्ण राष्ट्र में बटवारा होना चाहिए नाकि प्रभावशाली नेताओं के छेत्र में ही विकास कार्य हों