Wednesday, December 31, 2008

वाणी की स्वतंत्रता

सर्व प्रथम सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं, किसी भी बात की स्वतन्त्रता का तात्पर्य किसी दूसरे को कष्ट पहुचाना कदापि नही है परन्तु इन माननीय जनप्रतिनिधियों को कौन समझाए की उनकी असयंत वाणी से न केवल इस राष्ट्र की जनता दिग्भ्रमित होती है अपितु किसी का चरित्र हनन भी होता है और इन की विश्वसनीयता भी समाप्त होती है २००८ इसी प्रकार की बातों के लिए भी स्मरण किया जायेगा, दिल्ली की मुख्मंत्री शीला दिक्सित का यह कहना की 'लड़कियों को अधिक रोमांचकारी नही होना चाहिए' ,राज ठाकरे का उत्तर भारतियों के प्रति लगातार विष वमन करना, भीम सिंह द्बारा मुफ्ती मोहम्मद सईद पर अक्छरधाम के आतंकियों को सन्रक्छन देने का आरोप लगाना, अंतुले और अमर सिंह द्बारा आतंकियों के विरुद्ध संघर्स करते हुए वीर सहीदों की सहादत पर शंका करना, दिग्विजय सिंह और श्रीप्रकाश जैसवाल द्वारा आतंकवादियों द्बारा फिरौती की मांग के विषय में बोल कर सम्पूर्ण राष्ट्र को दिग्भ्रमित करने का प्रयास करना और इसी प्रकार भारतीय जनता पार्टी के नकवी द्वारा शहीदों को श्रद्धांजली देने वाली बहनों के लिए अभद्र टिप्पडी करना, विनय कटियार द्बारा यह कहना की मुंबई के आतंकी एक कांग्रेसी नेता के यहाँ ठहरे थे, आदि अनेक घाव है जो ये माननीय निरंतर देते रहते हैं, क्या इनकी इस वाणी पर संयम लगाने का कोई तरीका नही है यदि अनर्गल प्रलाप तीन प्रकार के लोग करते है तो उसका प्रभाव किसी पर नही पड़ता है , १- अबोध बच्चा (जो ये हैं नहीं), २- पागल(दिमागी रूप से), ३- सनकी या मानसिक विच्छिप्त ये लोग इनमें से किस श्रेणी में आते है, और यदि इनमें से कुछ हैं तो क्या इन्हें जनप्रतिनिधि होना चाहिए

Monday, December 29, 2008

चुनाव सुधार

आज जनप्रतिनिधियों की अराजकता एवं गुंडा गर्दी जिस प्रकार बढ़ गयी है, उससे जन सामान्य अत्यधिक भयभीत और असुरक्छित अनुभव करता है, उसकी एक बानगी बसपा विधायक शेखर तिवारी द्वारा मुख्य मंत्री मायावती के जन्म दिन पर देने के लिए चन्दा ना देने पर एक अभियंता की पीट पीट कर हत्या कर देना है रक्छक ही भक्छक बन गया है, यथा राजा तथा प्रजा, इसीलिये चारों ओर अपराध, अत्याचार और अनाचार का बोल बाला है ,इसके लिए जन प्रतिनिधि कानून में कठोर प्राविधान बना कर इन नेताओं पर अंकुश लगाना परम आवश्यक है, उसके लिए निम्न सुझाव प्रस्तुत है
  1. सभी को मत देना आवश्यक कर दिया जाय परन्तु उसके पूर्व मत पत्र में 'इनमें से कोई नही ' का खाना जोड़ा जाय और यदि इस खाने में ३०% या अधिक मत पड़ जाएँ तो उन सभी प्रत्यासियों को अगले ६ वर्स के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाय
  2. इनको मात्र जन प्रतिनिधि ही रहने दिया जाय, इनका वशेष रूतबा और सभी विशेष अधिकार तथा सुविधाएं समाप्त कर दी जाय
  3. हर महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व के लिए योग्यता निर्धारित कर दी जाय और मंत्री से लेकर संतरी तक सभी की जवाब देही सुनिश्चित की जाए
  4. जन प्रतिनिधियों को महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व देने के पूर्व उनकी योग्यता, चरित्र एवं आपराधिक प्रवृत्ति की सूछ्म जांच कराई जाय तथा उनकी एवं उनके निकट सम्बन्धियों की चल अचल संपत्ति की अति सूछ्म जांच कराई जाय और वह उत्तरदायित्व छोड़ने पर पुन्हा जांच कराई जाय यदि जांच बाद में ग़लत पायी जाय तो जांच अधिकारी के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही की जाय
  5. विकास निधि आदि तत्काल समाप्त कर दी जाय और इनको पेंशन केवल उन्ही को प्रदान की जाय जो लगातार १५ वर्स तक जन प्रतिनिधि रहा सकें

मुंबई हमलों के पश्चात जो लोगों का क्रोध उत्पन्न हुआ था उसे बनाए रखा जाना आवश्यक है, यदि ये सुझाव ठीक है तो आप विद्वान् और प्रभावशाली लोग इन्हे और धार दार बना कर अपने प्रभाव का प्रयोग कर प्रचारित करें और राष्ट्रपति, चुनाव आयुक्त तथा मुख्य न्यायाधीश को व्यक्तिगत रूप से नए वर्स में करोड़ों करोड़ों पोस्टकार्ड भेज कर दवाब बनाए और एक स्वास्थ चर्चा सम्पूर्ण राष्ट्र में करें, अन्यथा वह दिन बहुत दूर नही है जब जनसामान्य का धैर्य छूट जायेगा और सम्पूर्ण राष्ट्र एक अराजकता की चपेट में आजायेगा

Friday, December 26, 2008

निरीह या चालाक सरकार

मुंबई आतंकी आक्रमण को एक माह व्यतीत हो गया जनता का नेताओं के प्रति क्रोध भी ठंडा पड़ने लगा है अंतुले ने जिस प्रकार पाकिस्तान के राष्ट्रपति के स्वर में स्वर मिला कर इस घटना में पाकिस्तान का हाथ होने पर संदेह व्यक्त किया है और केन्द्रिय सत्ता ने उसे सामान्य तरीके से टालने का प्रयास किया वह अंतुले को सही सिद्ध करता हुआ लगता है क्या यह वोट बैंक के भय के कारण हुआ है, क्या समस्त मुस्लिम समाज अंतुले के विचारों से सहमत है निश्चित नहीं क्यों की इस आतंकवादी घटना के विरुद्ध जिस प्रकार सम्पूर्ण राष्ट्र एक साथ उठ खड़ा हुआ उसमें मुस्लिम समाज और उलेमा भी थे, यहाँ तक की आतंकियों के मृत शरीर को कब्रिस्तान में स्थान देने तक से भी मना कर दिया उसके पश्चात मुस्लिम समाज के अंतुले के साथ होने का कोई प्रश्न ही नही उठता है फिर सरकार अंतुले के विरुद्ध कार्यवाही करने में क्यों हिचक रही है कहीं इस आतंकी घटना के पीछे यहाँ के प्रभाव शाली नेताओं के ही हाथ तो नहीं है और अंतुले के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही करने से उसके खुल जाने का भय हो उस दिन ताज होटल में चार सांसदों का होना और सभी का सुरक्छित बच जाना और अंतुले के विरुद्ध कोई कार्यवाही ना करना इस शंका को बलवती करता है जिस प्रकार नोट के बदले वोट में अहमद पटेल और अमर सिंह को नामित किया गया था, परन्तु लग रहा था की वहा विपक्च्छ का ड्रामा है परन्तु संसदीय कमेटी द्वारा दोनों आरोपियों को बगैर विशेष जांच के दोषः मुक्त कर दिया गया और किसी को भी दोषी नही ठहराया गया उससे लगता है की यह कार्य सत्ता बचाने के लिए सत्ता पक्छ के प्रभावशाली नेताओं के निर्देश पर ही किया गया होगा उसी प्रकार महगाई, मंदी, शेयर बाजार की उथल पुतल, महाराष्ट्र में राज ठाकरे की गुंडा गर्दी, हिन्दू आतंकवाद को आवश्यकता से अधिक दिखाना और बिहार के सांसदों के स्तीफे से चारों ओर से दवाब में आई सरकार के पास जनता का ध्यान मुख्य समस्याओं से हटाने के लिए यह आतंकी आक्रमण करवाया गया हो, जिसमें कुछ हद तक सरकार सफल भी रही है और इस सबकी जानकारी अंतुले को रही हो

Sunday, December 21, 2008

धर्म और राज्य

धर्म और राज्य का आपस में अटूट सम्बन्ध रहा है धर्म के बिना राज्य नेत्र हीन की भांति है धर्म क्या है, धर्म जो धारण किया जाय वही धर्म है, किसके द्वारा धारण किया ? हर किसी के द्वारा धारण किया जाय वही धर्म है एक मिथ्या वादी व्यक्ति भी नही चाहता है कि कोई उससे झूट बोले , तो सत्य ही धारण करने योग्य है हमारे यहाँ एक कुतिया बच्चों को जन्म देने के कुछ दिन उपरांत दुर्घटना में समाप्त हो गई थी, तो एक सुअरिया उसके बच्चों को दूध पिलाने लगी यह सभी को मनभावन लगा, यही धर्म है तुलसीदासजी ने लिखा है 'पर हित सरिस धरम नही भाई, पर पीड़ा सम नही अधमाई', धर्म काल और देश की सीमाओं से परे है पशु पक्छी प्रकृति के धर्म से संचालित होते है; परन्तु विवेक और बुद्धी के कारन मनुष्य केवल प्रकति से संचालित नही होता है इसीलिये हर सम्प्रदाय में मनुष्य को दो नियमों "पाप और पुण्य में बाँधा गया था और स्वर्ग नर्क के रूप में दंड का प्राविधान किया गया था और सम्पूर्ण समाज इन्ही दो नियमों में बंधा चला जा रहा था स्वतंत्रता के पश्चात् इस राष्ट्र को धर्म निर्पेक्छ राष्ट्र घोषित कर दिया गया, संभवतः उनका आशय पंथ निर्पेक्छ्ता से रहा होगा, परन्तु ग़लत शब्द के प्रयोग का प्रतिफल यह हुआ कि इस राष्ट्र का अधिकाँश समाज पाप पुण्य के भय से मुक्त हो गया, और उन्मुक्त हो कर अनाचार करने लगा है आज यहाँ कुछ भी अधर्म प्रतीत नही होता है धन प्राप्त करने के लिए कोई भी निकृष्ट कार्य करना पड़े स्वीकार्य है आज चारों ओर अराजकता, हत्या, लूट, बलात्कार का वातावरण सा बना हुआ प्रतीत होता है, हर कोई दुखी है, भयभीत है नित नए कड़े से कड़े कानून बनते है परन्तु सब बौने प्रतीत होते है जब तक धर्म सापेक्छ राज्य की स्थापन नही होगी यह समस्या विकराल से विकरालतम होती जायेगी

Thursday, December 18, 2008

बुश को जूता

इराक में अमेरिका के राष्ट्रपति को एक पत्रकार ने जो जूते फ़ेंक कर मारे वह कोई महत्व पूर्ण घटना नही है कोई भी सर फिरा व्यक्ति किसी पर भी इस प्रकार का वार कर सकता है महत्त्व पूर्ण यह है की उसके पश्चात् उस घटना को आधार बना कर इन्टरनेट गेम बनाए गए और सम्पूर्ण दुनिया ने खूब जूते मारे भारतीय टीवी चैनलों ने इस घटना को खूब प्रचारित किया इस से ऐसा प्रतीत होता है की विश्व में अधिकांश लोग अमेरिका की विस्तार वादी नीतियों के विरुद्ध है और उससे नफरत भी करते हैं अमेरिका ने जिस प्रकार समय समय पर विश्व के तमाम राष्ट्रों को डराया ओर आक्रांत किया है, लोग उसके विरुद्ध हैं कभी खतरनाक हथियारों के बहाने तो कभी आतंक वाद के बहाने विएतनाम, रूस, अपफगानिस्तान, भारत,इराक, पाकिस्तान आदि राष्ट्रों पर धौंस जमाता रहा है या आक्रमण किया है उसी का यह आक्रोश है वास्तव में अमेरिका ही सबसे अधिक गैर जिम्मेदार राष्ट्र है जिसने दो बार परमाणु बम का प्रयोग किया और दूसरे राष्ट्रों को समझाता है तालिबान के रूप में आतंक का जन्म देने वाला आतंक को समाप्त करने की बात करता है खूंखार कुत्ते पालने वाले को यदि कभी कुत्ता काट भी ले तो कोई उसे मारता नही है, केवल कुत्तों से सावधान की तख्ती लटका देता है, उसी प्रकार अमेरिका भी तालिबान को कभी समाप्त नही करना चाहेगा उसका भय दिखा कर दूसरे देशों पर आक्रमण करेगा या उस राष्ट्र की जमीन पर अपनी सेनाएं उतार देगा

Wednesday, December 17, 2008

शहादत पर आंच

बाटला कांड हो या मुंबई कांड वहां शहीद हुए सैन्य अधिकारियों की शहादत पर सत्ता पक्छ की ओर से जिस प्रकार संदेह व्यक्त किया गया है वह दुर्भाग्य पूर्ण है, इसकी गंभीर जांच होनी ही चाहिए की घर का भेदी लंका दावे की तर्ज पर इस में भी यहाँ के लोगों का ही हाथ तो नही है और जनता का ध्यान बांटने के लिए पाकिस्तान को दोषी बताया जा रहा हो और इसीलिये कोई ठोस कार्यवाही नही की गयी है जब सत्ता पछ ही एक मत नही है तो सम्पूर्ण राष्ट्र से क्या अपेछा की जा सकती है क्या इस विषय पर भी ध्यान दिया जाएगा की आतंकी घटना के दिन ताज होटल में विभिन्न राजनीतिक दलों के चार सांसद उपस्थित थे और सब के सब सुरक्छित बच गए यह मात्र सय्न्योग था या ....... कहीं रामायण की तरह ही हनुमानजी द्वारा पूरी लंका जलाने पर भी केवल विभीसढ़ का घर ही बच गया था, उसी की पुनरावृत्ति तो नहीं की गयी है यदि ऐसा है तो इसकी भी परिणति नोट के बदले वोट जैसी ही होगी और जांच में कुछ भी नहीं पाया जाएगा

सर्व शिक्छा

भारत में स्वतन्त्रता के ६१ वर्स पश्चात् भी सर्व शिक्छा की बात उसी प्रकार चल रही है जिस प्रकार आजादी के समय चली थी वास्तव में इस बात का प्रचार और प्रदर्शन अधिक है परन्तु इच्छा शक्ति का नितांत आभाव है, सर्व शिक्छा माने सभी को शिक्छा नही अपितु गरीबों को शिक्छा यही भाव भारत सरकार का रहा है, और इसे कार्यान्वित कराने के स्थान पर ऐसा प्रयास किया जा रहा है वोट के लिए यह दिखाना आवश्यक है और सरकार वही कर रही है यदि सम्पूर्ण राष्ट्र में पहली से पांचवी जमात तक एक प्रकार के विद्यालय खोले जाते और उन्ही में सभी बच्चे अध्ययन करते तो आज प्राइमरी विद्यालयों की यह दुर्दशा नही होती और आम नागरिक का प्राथमिक शिक्छा के नाम पर इस प्रकार शोषण नही होता इस प्रकार की व्यवस्था के लिए धन की कोई कमी नही है केवल गैर योजना व्यय को और सरकारी व्यय को कम करके यह सब किया जा सकता है आज सभी को ज्ञात है की प्राईमरी विद्यालयों की क्या स्थिति है इसी लिए कोई अपने बच्चों को वहां पढ़ने भेजना नही चाहता है

Tuesday, December 16, 2008

राज नेता बनाम जनतंत्र

मुंबई आतंकवादी घटना के पश्चात इन राज नेताओं का जिस प्रकार सम्पूर्ण राष्ट्र में एक साथ विरोध हुआ ओर उसे जनतंत्र के विरोध के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया वह दुखद है जब कि चुनावों में भाग ले कर जनता ने स्पष्ट संदेश दे दिया कि यहाँ की जनता को जन तंत्र में तो विश्वास है परन्तु इन भ्रस्ट एवं अपराधी प्रवृति के नेताओं में विश्वास नही है, यदि इन लोगों का आचरण नही बदलता है तो कहीं ऐसा न हो कि यह मौखिक और प्रदर्शनात्मक विरोध हिंसक विरोध में बदल जाए, उस स्थिति में उनके सुरक्छा गार्ड भी उनकी सुरक्छा ना करके जनता का ही साथ देंगे क्यों कि वे भी इनके अन्याय से व्यथित हैं इस स्थिति को बचाना है तो जनता को अधिकार देना होगा कि वहा अपने गुस्से को बैलेट पर उतार सके, इसके लिए बैलेट में एक और खाना बनाना ही होगा 'इनमें से कोई नही' और यदि इस खाने में ३०% से अधिक मत पड़ जायें तो सभी प्रत्याशियों को अगले ६ वर्स तक के लिए किसी भी चुनाव के अयोग्य घोषित कर दिया जाय और चुनाव में धन का प्रयोग कम से कम हो चुनाव जीतने वाले नेताओं की सम्पति की सूछ्म जांच हो, उनके विशेष अधिकार और लूट के अवसर समाप्त करें और उनके सुरक्छा गार्ड मुक्त करें

Sunday, December 14, 2008

नेता, अपराध और भ्रस्टाचार

भारत में दुर्भाग्य से इन तीनो (नेता, अपराध एवं भ्रस्टाचार) का अटूट सम्बन्ध है स्वतंत्रता के पश्चात से ही नेताओं के अपराध एवं भ्रस्टाचार पर अंकुश लगाने के स्थान पर इसे बढ़ाने का ही उपक्रम किया गया और अँधा बांटे रेबडी फिर फिर अपने को देय की कहावत को चरितार्थ करते हुए उन्हें अनावश्यक सुविधाएँ और विशेस अधिकार प्रदान कर दिए गए जिसके कारण भ्रष्ट एवं अपराधी प्रवृत्ती के जन प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ने लगी और आज संभवता कोई भी जन प्रतिनिधि सामान्य सदाचार और सत्य निष्ठां के माप दण्डों पर खरा नही उतरता है इसी बात का जन आक्रोश अभी अभी सम्पूर्ण राष्ट्र में दिखाई भी दिया जन प्रतिनिधियों को हर स्थान पर विशेष कोटा देने की क्या आवश्यकता थी, आज अपराध और भ्रस्टाचार की जड़ संसद निधि है जिसमें हजारों करोड़ रुपये व्यर्थ में गैर योजना खर्च पर व्यय होता है या यों कहें कमीशन के रूप में जन प्रतिनिधियों कों बांटा जाता है उनके लिए न्याय व्यवस्था अलग सी प्रतीत होती है पहले एक जन प्रितिनिधि को हत्या का अपराधी पाया जाता है फिर कुछ समय पश्चात् बेदाग़ छूट जाते हैं और मंत्री बन जाते हैं एक अपराधी को कोलकोता में बलात्कार एवं हत्या के आरोप में म्रत्यु दंड दिया जाता है और महा महिम उसकी दया की भीख पर विचार करने से भी मना कर देते हैं वहीं एक आतंकी के परिवार को चाय पिलाई जाती है क्यों की उसकी पैरवी नेता लोग कर रहे थे उसी प्रकार के हत्या एवं बलात्कार के अपराध में एक जन प्रतिनिधि विचारा धीन हैं क्या उनक अपराध सिद्ध हो पायेगा निश्चित नहीयहाँ की पुलिश ने तो उनके निर्देश पर आई आई टी कानपुर के एक विद्यार्थी को ही अपराधी घोषित कर दिया था और उसका विवाह भी मधुमिता से दिखा दिया था उस पंडित को भी सामने कर दिया था जिसने विवाह करवाया था परन्तु जन विरोध के चलते वह बच्चा म्रतुदंड से बच गया था एक डकैत फूलन देवी की कहानी तो सब को ज्ञात है जिसे जन प्रतिनिधि की अनुसंशा पर अपराध मुक्त कर दिया गया आज जन सामान्य में यह धारणा बन गयी है की किसी भी छोटे या बड़े अपराध के पीछे किसी न किसी नेता का परोक्छ या अप्रोक्छ हाथ होता है जब तक जन प्रितिनिधियों को यह निधि मिलाती रहेगी और उन्हें विसेशाधिकार प्राप्त रहेंगे इस राष्ट्र का पतन होता ही जाएगा, सामान्य जन भी अपराधी एवं भ्रस्त होता जाएगा क्यों की वह अपने प्रतिनिधियों का ही अनुकरण करेगा

Thursday, December 4, 2008

आतंकवाद

भारत सरकार कह रही है कि दस आतंकी बहार से आए और उन्होंने तीन दिक् तक पूरे राष्ट्र को बंधक जैसा बना लिया क्या यह बात किसी के भी गले उतर सकती है इस हमले में यहाँ के स्थनीय लोग उनसे मिले नही थे या उनकी परोक्छ या अपरोछ रूप से सहायता नही कर रहे थे आज इस राष्ट्र का यह दुर्भाग्य है कि अधिकांश दुर्दांत अपराधी या तो स्वयं नेता हैं या उन्हें नेताओं का संरक्छान प्राप्त है जिन का जमीर केवल पैसा है, उनके लिए किसी की जान लेना एक खेल मात्र है कश्मीर में भीम सिंह ने मुफ्ती मोहम्मद सईद पर गंभीर आरोप लगायें हैं कि अच्छर धाम मन्दिर के आतंकी उनके यहाँ रुके थे यह एक गंभीर बात है यदि यह झूट है तो किसी का भी इस प्रकार चरित्र हनन एक गंभीर अपराध है और यदी यह सत्य है तो इस प्रकार के आतंकी आक्रमण होते रहेंगे और ये नेता इसी प्रकार दिखावटी विलाप करते रहेंगे वे स्वयं तो कमांडो के मध्य सुरक्छित हैं, सामान्य जनता तो मरती ही रहती है क्या कभी वह दिन आएगा जब जनता इनके पारिवारिक जनो को सांत्वना के लिए चेक देगी, जब ऐसा होगा तभी शायद ये लोग सुधर सकेंगे

Tuesday, December 2, 2008

उत्तरदायित्व

मुंबई आतंकी आक्रमण के पश्चात् कुछ मंत्रीयों के त्याग पत्र को सहादत की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है वास्तव में यह ना काफी है, जिस प्रकार एक कर्मचारी की बड़ी गलती के लिए उस की जाँच करा कर उसे दण्डित किया जाता है, उसी प्रकार इस इतनी बड़ी घटना के लिए जो देश द्रोह की श्रेणी में आती है के लिए भी जाँच कर के उत्तरदायी और दोषी मंत्रियों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमें दर्ज किए जाने चाहिए और कम से कम यह तो निश्चित ही होना चाहिए कि इन लोगों को भविष्य में कम से कम १० वर्स तक कोई महत्व पूर्ण उत्तरदायित्व ना सौंपा जाय

Monday, December 1, 2008

नेता उवाच

मुंबई में आतंकी हमले से तो बहादुर जवानो ने दो दो हाथ कर लिए और उन्हें परास्त भी कर दिया अब बारी है नेताओं की जो अपनी असंयत वाणी से जले पर नमक छिड़क रहे हैं वास्तव में उन लोगों से इससे अधिक की अपेच्छा भी नही की जासकती है यह इस राष्ट्र का दुर्भाग्य है कि हम वर्त्तमान में इस राष्ट्र के अनाचारी, भ्रस्टाचारी एवं अयोग्य कर्णधारों के अनाचार को सहने के अतिरिक्त कुछ भी नही कर सकते चुनाव में भी आपको प्रस्तावित उम्मीदवारों में से किसी एक को चुनने की बाध्यता होती है और चुनाव में कोई सदाचारी व्यक्ति उम्मीदवार हो ही नही सकता यदि किसी ने ऐसा दुस्साहस किया तो उसको मोक्छ प्रदान कर दिया जाएगा जनता को चाहिए इन राजनीतिज्ञों का सामाजिक बहिस्कार करें, उनके किसी भासड को सुनने ना जायें, उनके आने पर उनका स्वागत ना करें, उनसे बात ना करें और चुनाव आयोग को बाद्य करें कि चुनाव प्रक्रिया में सुधार करते हुए मत पत्र में एक और खाना इनमें से कोई नही का बनाए और यदि किसी छेत्र में इस खाने में ३०% या अधिक मत दान हो जाए तो सभी प्रत्यासियों को अगले ६ वर्स के लिए किसी भी चुनाव के अयोग्य ठहरा दिया जाय तो शायद जनता के हाथ में कुछ ताकत आए

Sunday, November 30, 2008

अभी अभी भारत पर एक अभूतपूर्व आतंकी आक्रमण हुआ जिस पर भारत के कर्णधारों ने बहुत ही ठंडी और अलग अलग प्रतिक्रिया व्यक्त की, ऐसा बिल्कुल नही लगा कि वह लोग बहुत गंभीर हैं ऐसा प्रतीत होता है कि यदि इस प्रकार का कोई आक्रमण उन लोगों पर होता है तभी वह गंभीर होते हैं सामान्य लोग तो मरते ही रहते हैं इस राष्ट्र में नेताओं को छोड़ कर संभवतः कोई कहीं पर भी सुरक्षित नही है सड़क पर, मैदान में, नगर में, ग्राम में, बस में, ट्रेन में, हवाई जहाज में, घर में, होटल में, देश की राजधानी में कहीं भी(नेता को छोड़ कर जिनकी सुरक्छा में गार्ड रहते हैं) स्त्री, पुरूष,बालक, वृद्ध किसी को भी कोई भी कभी भी मार् सकता है, सता सकता है, मरने वाले के परिजनों को कुछ रूपए देने की घोसडा कर दी जाती है