नागरवाला से वाहनवती तक एक लम्बा समय व्यतीत हो चुका है। केवल नाम बदले हैं शेष सब कुछ वैसा ही है। सुना था इतिहास अपने आप को दोहराता है; लेकिन इतनी शीघ्र दोहराएगा अपेक्षा नहीं थी। २१ मई १९७१ को सोनिया गांधी की सास और भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्द्रागांधी की आवाज में एक फ़ोन स्टेट बैंक के पार्लियामेंट स्ट्रीट शाखा के वरिष्ठ कैशिअर वेदप्रकाश महरोत्रा के पास आता है कि मैं रुश्तम सोहराब नागरवाला को भेज रही हूँ उसे अविलम्ब ६० लाख रु दे दें। नागरवाला रा. में कप्तान थे और इन्द्रागांधी के विशवास पात्र थे। नागरवाला बैंक पहुंचे और फ़ोन के अनुसार उनको ६० लाख रु दे दिए गए, और वे वह रु लेकर निकल गए। जब महरोत्रा प्रधानमंत्री कार्यालय से ६० लाख रु की रसीद लेने पहुंचे तो बताया गया इन्द्राजी ने कोई रुपया नहीं मंगाया था। कैशिअर के पैरों तले जमीन खिसक गई, उसने पुलिश थाने में प्रथिमिकी दर्ज करवाई, पुलिश तत्काल हरकत में आई और उसी दिन नागरवाला को बंदी बना लिया गया और लगभग पूरा धन बरामद हो गया। न्यायालय में महरोत्रा और नागरवाला ने आश्चर्यजनक रूप से अपना अपराध मान लिया और अति तत्परता से मात्र १० मिनट में ही न्यायालय की सुनवाई समाप्त हो गई और नागरवाला को चार वर्ष का करावाष का दंड दे दिया गया, न तो कैशिअर से पूछा गया कि उसने इतनी बड़ी धनराशि बगैर किसी रषीद के या लिखित आदेश के क्यों दे दी और न ही यह पता किया गया कि नागरवाला इन्द्राजी की आवाज निकाल भी सकता है या नहीं। नागरवाला ने अपराध स्वीकार किया और उसे सही मानकर दण्डित कर दिया गया, इतना ही नहीं बाद में जब नागरवाला ने कुछ कहने की इक्षा व्यक्त की तो संदिग्ध परिस्थितियों में उसकी मृत्यु हो गई और इस सम्पूर्ण घटना की जांच के लिए नियुक्त जांच अधिकारी डी.के. कश्यप की भी संदिग्ध तरीके से कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई अब किसका सहस था जो जांच करके वास्तविकता को सामने ला पाता और वही हुआ वास्तविक सच कभी सामने नहीं आया। (http://archive.tehelka.com/story_main34.asp?filename=Ne201007TheNAGARWALA.asp)
यह मात्र एक संयोग है या कुछ और कि गांधी परिवार की और देश की शसक्त महिला (इन्द्रागांधी की बहु) सोनिया गाँधी की की आवाज में अभी ५ सितम्बर २०१३ को एक फोन भारत के महाधिवक्ता (एटार्नी जनरल ) जी. ई. वाहनवती को न्यूयार्क से आया और उन्हें निर्देश दिया गया कि कोयला घोटाले से सम्बंधित मामले में न्यायालय में बहुत तत्परता न दिखाएँ और इस केस की गति को धीमा रखें, जरूरत से अधिक कर्मठ बनने की आवश्यकता नहीं है। जितना कहा जा रहा है उतना करें वर्ना अपना पद छोड़ दें। ध्यान रहे कि उस समय सोनियाजी न्यूयार्क में अपना इलाज कराने गई हुई थीं। वाहनवती यदि बात मान लेते और अपना पद छोड़ देते या इस केस की सुनवाई में शिथिलता वर्तते तो कोई बात ही नहीं उठती ; परन्तु उन्होंने इस फोन काल के विषय में बता दिया और बात बिगड़ गई अब फर्जी काल के लिए किसी को तो बलि का बकरा बनाया ही जाएगा, आखिर मामला सीधा गांधी परिवार से जुड़ा है। उपरोक्त दोनों फोन कालों में समानता है दोनों गांधी परिवार से सम्बंधित हैं, दोनों घोटालों से सम्बंधित हैं। कांग्रेस का पुराना इतिहास रहा है कि वह अपने अपराधों को छिपाने में और अपने अपराधी लोगों को बचाने में सिद्ध हस्त है, फिर चाहे नागरवाला कांड हो, बोफोर्स दलाली कांड हो, कोयला घोटाला हो या आदर्श घोटाले सहित अनेकानेक घोटालों के दोषियों को बचाया गया है। चाहे १९८४ के दंगों में लगभग २७०० सिखों की हत्या के दोषी भगत हों, जगदीश टाइटलर हों या सज्जन कुमार और बात जब गांधी परिवार से सम्बंधित हो तो चाहे बाड्रा का जमीन घोटाला हो या ३ दिसंबर २००६ को अमेठी में राहुल गांधी और उनके दोस्तों द्वारा २४ वर्ष की लडकी सुकन्या से किया गया सामूहिक बलात्कार का मामला हो पूरी पार्टी बेशर्मी के साथ बचाव में आजाती है।(http://shashi-dubey.blogspot.in/2013/03/rahul-gandhi-involved-in-rape.html) जिस प्रकार अपराधी जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध न्यायालय के आदेश को अंगूठा दिखा कर अध्यादेश पारित करके अपने दल के राशिद मसूद सहित तमाम अपराधियों को बचाने का षड्यंत्र किया जा रहा है, वह इस दल की सहज अपराधी मानसिकता और व्यवहार को समझने के लिया पर्याप्त है।