भारत में स्वतन्त्रता के ६१ वर्स पश्चात् भी सर्व शिक्छा की बात उसी प्रकार चल रही है जिस प्रकार आजादी के समय चली थी वास्तव में इस बात का प्रचार और प्रदर्शन अधिक है परन्तु इच्छा शक्ति का नितांत आभाव है, सर्व शिक्छा माने सभी को शिक्छा नही अपितु गरीबों को शिक्छा यही भाव भारत सरकार का रहा है, और इसे कार्यान्वित कराने के स्थान पर ऐसा प्रयास किया जा रहा है वोट के लिए यह दिखाना आवश्यक है और सरकार वही कर रही है यदि सम्पूर्ण राष्ट्र में पहली से पांचवी जमात तक एक प्रकार के विद्यालय खोले जाते और उन्ही में सभी बच्चे अध्ययन करते तो आज प्राइमरी विद्यालयों की यह दुर्दशा नही होती और आम नागरिक का प्राथमिक शिक्छा के नाम पर इस प्रकार शोषण नही होता इस प्रकार की व्यवस्था के लिए धन की कोई कमी नही है केवल गैर योजना व्यय को और सरकारी व्यय को कम करके यह सब किया जा सकता है आज सभी को ज्ञात है की प्राईमरी विद्यालयों की क्या स्थिति है इसी लिए कोई अपने बच्चों को वहां पढ़ने भेजना नही चाहता है
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